पहली बार कब और किसका हुआ श्राद्ध? महाभारत में मिलता है प्रसंग
पौराणिक ग्रंथों में श्राद्ध का महत्व तो बताया गया है, लेकिन कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि पहली बार किसने और किसका श्राद्ध किया. हालांकि उत्तर पौराणिक ग्रंथों में इसका जिक्र पहली बार बाल्मिकी रामायण में और फिर महाभारत में मिलता है.

पितृपक्ष चल रहा है. कोई अपने पितरों को तिलांजलि दे रहा तो कोई विधि विधान के साथ तर्पण और पिंडदान कर रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि पहली बार किसने और किसको पिंडदान किया. यदि नहीं तो, यहां हम बता देते हैं. पौराणिक ग्रंथों में तो यह वर्णन मिलता है कि पिंडदान यानी तर्पण यानी श्राद्ध कैसे करते हैं. हालांकि इसमें यह कहीं जिक्र नहीं मिलता कि श्राद्ध की शुरुआत किसने की. हालांकि श्राद्ध करने का प्रसंग पहली बार बाल्मिकी रामायण और फिर महाभारत के अलावा श्रीमद भागवत में मिलता है.
रामायण ग्रंथ के मुताबिक भगवान राम जब रावण वध कर अयोध्या लौटे तो वह माता सीता के साथ अपने पिता चक्रवर्ती महाराज दशरथ के श्राद्ध के लिए गया तीर्थ गए थे. यह प्रसंग भगवान राम के अश्वमेघ यज्ञ से पहले का है. इस दौरान उन्होंने अपने पिता के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन कराया था और दक्षिणा भी दी थी. इससे पहले जब भगवान राम वन में थे और भरत के साथ महात्मा वशिष्ठ भी गए थे. उस समय भगवान राम ने चित्रकूट में अपने पिता के निमित्त पिंडदान किया था. इसी प्रकार, महाभारत में कथा आती है कि युद्ध खत्म होने के बाद पहली बार युधिष्ठिर ने भीष्म पितामाह से लेकर दुर्योधन तक अपने खानदान के सभी मृतात्माओं को पिंडदान किया था.
युधिष्ठिर ने दिया था कुंती को शाप
वह इन सभी मृतात्माओं का श्राद्ध कर ही रहे थे कि वहीं पर मौजूद माता कुंती ने युधिष्ठिर से कर्ण के लिए भी पिंडदान करने को कहा. यह सुनकर कर युधिष्ठिर को थोड़ा अटपटा लगा. उन्होंने सवाल किया कि कर्ण उनके परिवार का नहीं, खानदान का नहीं, जाति का नहीं तो फिर उसका श्राद्ध वो कैसे कर सकते हैं. उनके इस सवाल पर कुंती ने पहली बार युधिष्ठिर के सामने कर्ण के जन्म की पूरी कथा बताया. कहा कि कर्ण उनका बड़ा भाई था. यह सुनकर युधिष्ठिर माता कुंती से नाराज हो गए थे और उन्होंने उसी समय माता कुंती को शाप दिया था कि कोई भी माता अपने पेट में कोई बात छिपा नहीं सकती. यही वजह है कि महिलाओं को कोई भी बात बता दी जाए तो वह जल्द ही सबको पता चल जाती है.