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Pitru Paksha 2024: जानें कब कर सकते हैं पिंडदान? पितृपक्ष में इन बातों का रखें ध्यान

पितृपक्ष का समय अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने के लिए विशेष रूप से अहम माना जाता है. इसे अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए पूजा और तर्पण का समय माना जाता है.

Pitru Paksha 2024: जानें कब कर सकते हैं पिंडदान? पितृपक्ष में इन बातों का रखें ध्यान
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( Image Source:  Meta AI: Representative Image )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 14 Oct 2025 5:26 PM IST

पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध का खास महत्व है. माना जाता है कि श्राद्ध द्वारा न केवल नाराज पितरों को मनाया जा सकता है बल्कि यह समय अपने पूर्वजों का आशीर्वाद पाने के लिए भी अच्छा होता है.पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं.

यह समय अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रकट करने के लिए विशेष रूप से माना जाता है। इसे अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए पूजा और तर्पण का समय माना जाता है।हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक विशेष समय होता है, जब लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. यह अवधि आश्वयुज मास की पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक होती है. यह आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर के महीने में आती है. पितृपक्ष कीअंतिम तिथि अमावस्या को "महालय अमावस्या" कहा जाता है, जो इस अवधि का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है.पितृपक्ष के दौरान सही विधि के साथ किया गया श्राद्ध और तर्पण परिवार के लिए अच्छा माना जाता है.

कब से शुरू हैं पितृपक्ष?

साल 2024 में 17 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध है, लेकिन 18 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध से ही पितृ पक्ष की शुरुआत मानी जाएगी. यह तिथि 2 अक्टूबर को समाप्त होगी.

कब करें पिंडदान?

यदि परिवार में पितृ दोष की स्थिति हो, जैसे कि जीवन में लगातार परेशानियां आ रही हों, तो पिंडदान करने से राहत मिल सकती है. इसलिए महालय अमावस्या यानी पितृपक्ष का आखिरी दिन पिंडदान करने के लिए बेहद शुभ माना जाता है.

पितृपक्ष का महत्व

हिंदू धर्म में माना जाता है कि इस समय अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने से वे संतुष्ट होते हैं और परिवार के लिए आशीर्वाद प्रदान करते हैं.इस समय को अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद के लिए पूजा और तर्पण का समय माना जाता है.

पितृपक्ष के दौरान क्या नहीं करना चाहिए?

यह समय श्रद्धा और शांति का होता है. इसलिए पितृपक्ष के दौरान मांस, शराब या अन्य तामसिक वस्तुओं का सेवन करने से बचना चाहिए. पितृपक्ष के दौरान घर और पूजा स्थल की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए. रोजाना घर में पूजा करें, ताकि शांति का माहौल बना रहे.

गोधूलि वेला (सांझ का समय) में विशेष रूप से पूजा करने से भी पितृ दोष दूर हो सकता है. इस समय को पितरों के लिए खास माना जाता है.पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष दान और यज्ञ करना प्रभावी हो सकता है. इसमें ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, या धन का दान शामिल हो सकता है.

नोट- यह लेख सामान्य जानकारी के मुताबिक लिखा गया है. इसकी पुष्टि StateMirror नहीं करता है.


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