विंध्यवासिनी मंदिर नहीं हैं शक्तिपीठ! फिर क्यों हैं माता की इतनी मान्यता?
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां विंध्यवासिनी वास्तव में भगवान नारायण की योगमाया है और यशोदा के गर्भ के रास्ते द्वापर युग में धरती पर आईं. उसी समय से वह भगवान नारायण के वरदान के मुताबिक अपने भक्तों का कल्याण करती आ रही है.

उत्तर भारत में मां विंध्यवासिनी को जीवंत माना गया है. पौराणिक ग्रंथों में माता के इस स्थान को लेकर बड़ी बड़ी बातें कहीं गई हैं. दावा किया जाता है कि इस स्थान से आज तक कोई भक्त निराश नहीं लौटा. माता के इस मंदिर को बहुत चमत्कारिक भी माना जाता है. ग्रंथों में यहां तक कहा गया है कि दिव्यांग लोग भी माता के इस दरबार में आने के बाद अपने पैरों पर चलकर घर लौटे हैं. बावजूद इसके, क्या आप जानते हैं कि माता का यह मंदिर शक्तिपीठ नहीं है? यदि ऐसा है तो फिर माता की इतनी मान्यता क्यों है? इन सवालों का जवाब जानने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि आखिर शक्तिपीठ है क्या. शिवपुराण और देवी पुराण के मुताबिक जब माता सती ने पिता दक्ष प्रजापति के दरबार में अपने पति भगवान शिव का अपमान देखा तो वह योगाग्नि में कूद गई थीं.
वहीं जब ये खबर भगवान शिव को मिली तो वह कुपित हो गए और कुंड से माता का शरीर निकालकर पूरी सृष्टि में तांडव करने लगे थे. ऐसे हालात में प्रलय की स्थिति बन गई थी. उस समय सृष्टि को बचाने के लिए भगवान नारायण ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए. यह टुकड़े धरती पर जहां जहां गिरे, वह सभी स्थान शक्तिपीठ कहे गए. उस समय भगवान नारायण ने भगवान शिव के क्रोध को शांत करते हुए कहा कि इन सभी स्थानों पर माता जीवंत रूप में रहेंगी और अपने भक्तों का कल्याण करती रहेंगी. चूंकि मिर्जापुर स्थित विंध्यवासिनी मंदिर में माता सती का कोई अंग नहीं गिरा था, इसलिए इस मंदिर को शक्तिपीठ नहीं माना गया है. अब दूसरा सवाल यह कि शक्तिपीठ नहीं तो शक्तिपीठ जैसी मान्यता?
मिर्जापुर में नहीं गिरे माता सती के अंग
इस सवाल का जवाब श्रीमद भागवत, मार्कंडेय पुराण और देवी भागवत में मिलता है. श्रीमद भागवत के मुताबिक भगवान नारायण ने कृष्णावतार से ठीक पहले अपनी योगमाया को यशोदा के गर्भ के रास्ते धरती पर भेज दिया था. वहीं खुद कंस के कारागार में बंद माता देवकी के गर्भ से प्रकट हुए. पैदा होते ही भगवान को बसुदेव जी गोकुल ले आए और यहां से योगमाया को ले जाकर देवकी के गोद में रख दिया. यह खबर कंस को मिली तो वह दौड़ते हुए कारागार में आया और देवकी की गोद से मासूम बच्ची को छीन कर शिला पर पटक दिया. लेकिन उसी समय चमत्कार हो गया. कंस के हाथों से छूटने के बाद यह बच्ची शिला पर गिरने के बजाय आकास में चली गई और कंस की मौत की भविष्यवाणी करने के बाद विंध्याचल पर्वत पर बैठ गई. उसी समय से उन्हें विंध्यवासिनी के नाम से जाना जाता है. उस समय भगवान नारायण ने माता को वरदान दिया था कि जो भी भक्त मनोयोग से माता की उपासना करेगा, उसकी झोली भरेगी और माता युग युगांतर तक अपने भक्तों का कल्याण करती रहेंगी.