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गया नहीं जा पाए, फिर कहां करें पितरों को पिंडदान?

पौराणिक ग्रंथों में तो गया के अलावा किसी अन्य स्थान पर तर्पण का प्रावधान नहीं मिलता, लेकिन उत्तर पौराणिक ग्रंथों में कुछ स्थान तय किए गए हैं, जहां श्राद्ध कर्म किए जा सकते हैं. हालांकि इसके लिए कुछ समय निर्धारित किए गए हैं.

गया नहीं जा पाए, फिर कहां करें पितरों को पिंडदान?
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पिंडदान
स्टेट मिरर डेस्क
by: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 19 Sept 2024 6:27 PM

गया नहीं जा पाए, फिर कहां करें पितरों को पिंडदानपौराणिक ग्रंथों में तो पिंडदान के लिए स्थान विशेष में केवल गया के बारे में ही बताया गया है. चूंकि दक्षिण के राज्यों से गया की दूरी ज्यादा हो जाती है. ऐसे में दक्षिण भारत के लोग गया की यात्रा मुश्किल से कर पाते हैं. ऐसे में उत्तर पौराणिक ग्रंथों में इस समस्या का समाधान करते हुए कुछ स्थान चिन्हित किए गए हैं. व्यवस्था दी गई कि इन स्थानों पर एक विशेष संकल्प मंत्र ‘गयायां दत्तमक्षय्यमस्तु’ पढ़ते हुए यदि पिंडदान किया जाए तो पिंड निश्चित रूप से पितरों को मिल जाता है. है. गया के बाहर पिंडदान के लिए चिन्हित इन स्थानों में देवभूमि उत्तराखंड में हरिद्वार के नारायणी शिला और केदारनाथ धाम का वर्णन मिलता है.

मान्यता है कि यहां तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसी प्रकार मथुरा में यमुना किनारे बोधिनी तीर्थ, विश्रंती तीर्थ और वायु तीर्थ पर भी पिंडदान का प्रावधान किया गया है. इन तीनों स्थानों पर पिंडदान से पितर खुश होकर अपने वंशजों की समस्या का हरण करते हैं. तीसरा स्थान मध्य प्रदेश में महाकाल नगरी उज्जैन को बताया गया है. उज्जैन में शिप्रा के तट पर पिंडदान को लेकर कहा गया है कि यहां किए तर्पण का पूरा फल पितरों को मिलता है. पितरों पर महाकाल की कृपा होती है. इसी क्रम में प्रयागराज के त्रिवेणी तट पर पिंडदान का महत्व बताते हुए कहा गया है कि इससे पितरों के पाप धुल जाते हैं. ऐसा होते ही उन्हें जन्म मरण के चक्र से भी मुक्ति मिल जाती है.

पिंडदान के लिए अयोध्या और काशी को भी श्रेष्ठ स्थानों में जगह मिली है. अयोध्या में सरयू तट पर भात कुंड और काशी में गंगा तट पर पितरों के लिए पिंडदान किया जाता है. वहीं ओडिशा में जगन्नाथ पुरी के अलावा राजस्थान में पुष्कर और हरियाणा में कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर में भी पिंडदान का महत्व बताया गया है. कहा गया है कि इन स्थानों पर तर्पण करने से वंशजों को तृप्ति मिलती है और वह खुश होकर आशीर्वाद देते हैं. इन ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि यदि कोई वंशज अपनी शारीरिक, आर्थिक या किसी अन्य कारण से उपर बताए गए स्थानों पर नहीं जा पाता तो उसे निकटतम सरोवर या नदी के किनारे बैठकर पिंडदान करना चाहिए.

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