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पितृभूमि है गया, यहीं पर क्यों पितरों के तर्पण का विधान?

पौराणिक ग्रंथों में पितरों के तर्पण के लिए उचित स्थान के तौर पर केवल गया का ही नाम लिया गया है. मत्स्य पुराण में इस तीर्थ को पितृ तीर्थ बताते हुए कहा गया है कि यह पांच कोस का है और इस पांच कोस में किए गए पिंडदान का पूरा फल पितरों को मिलता है.

पितृभूमि है गया, यहीं पर क्यों पितरों के तर्पण का विधान?
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पिंडदान
स्टेट मिरर डेस्क
by: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 19 Sept 2024 6:17 PM

पितरों के तर्पण के लिए धरती पर बिहार के गया को सर्वश्रेष्ठ स्थान माना गया है. खुद भगवान श्रीराम भी लंका से लौटने के बाद अपने पिता चक्रवर्ती जी महाराज दशरथ को पिंडदान के लिए माता सीता के साथ यहां आए थे. गरुड़ पुराण के मुताबिक गया में किया गया पिंडदान पितरों को सहज प्राप्त होता है. पिंडदान के लिए गया के महत्व को विष्णु पुराण और वायु पुराण में बताया गया है. वायु पुराण में तो यहां तक कह दिया गया कि संपूर्ण 15 किमी का गया क्षेत्र में तीर्थ भूमि है और इस 15 किमी के दायरे में कहीं भी पिंडदान किया जाए तो संपूर्ण पिंड पितर पाते हैं और अपने वंशजों पर कृपा बरसाते हैं.

इसी प्रकार मत्स्य पुराण में गया को पितृतीर्थ कहकर संबोधित किया गया है. इस पुराण में के मुताबिक गया पितरों के लिए पिंडदान के लिए कुछ स्थान चिन्हित किए गए हैं. इन स्थानों को पिंड वेदी कहा गया है. करीब 1500 साल पहले तक यहां पिंड बेदियों की संख्या 365 हुआ करती थीं. हालांकि बाद में कुछ मुस्लिम शासकों की वजह से और कुछ अंग्रेजी शासनकाल में खत्म हो गईं. ऐसे में अब महज 50 के करीब पिंड वेदियां रह गई हैं. इन पिंड वेदियों श्री विष्णुपद, फल्गु नदी और अक्षयवट प्रमुख हैं. पौराणिक ग्रंथों में गया तीर्थ को पांच कोस का बताया गया है. कहा गया है कि इस पांच कोस के दायरे में कोई भी व्यक्ति अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करता है तो उसके 21 पीढ़ियां तृप्त होती हैं.

21 पीढ़ियों को मिलता है लाभ

इसमें 7 पीढ़ियां पिता की यानी खुद की, तीन पीढ़ियां माता की और 7 पीढ़ियां पत्नी की शामिल हैं. फिर ये सभी 21 पीढ़ियों के पूर्वज अपने वंशज पर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. गरुड़ पुराण के मुताबिक इस प्रकार पिंडदान से खानदान में लगा पितृदोष हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाता है. शास्त्रों में गया में पिंडदान करने के संबंध एक और बड़ी बात कही गई है. कहा गया है कि यहां पर कोई काल निषिद्ध नहीं है. इसका मतलब यह कि आप साल में कभी भी आकर यहां अपने पूर्वजों को पिंडदान कर सकते हैं. यहां तक कि अधिकमास, जन्मदिन, गुरु-शुक्र के अस्त होने, गुरु वृहस्पति के सिंह राशि में होने पर भी यहां पिंडदान किया जा सकता है. वहीं गया के बाहर इन तिथियों में श्राद्ध कर्म वर्जित है.

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