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वैकुंठ के द्वारपाल से राक्षस बनने तक, जानिए रावण और कुम्भकर्ण की अनसुनी कहानी!

पौराणिक कथाओं में जय और विजय भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम के द्वारपाल थे. एक बार ब्रह्मा जी के चार पुत्र – सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार – विष्णु से मिलने पहुंचे. जब उन्होंने अंदर जाने की कोशिश की, तो जय-विजय ने उन्हें रोक दिया

वैकुंठ के द्वारपाल से राक्षस बनने तक, जानिए रावण और कुम्भकर्ण की अनसुनी कहानी!
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स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 30 Nov 2024 10:03 PM

पौराणिक कथाओं में जय और विजय भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम के द्वारपाल थे. एक बार ब्रह्मा जी के चार पुत्र – सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार – विष्णु से मिलने पहुंचे. जब उन्होंने अंदर जाने की कोशिश की, तो जय-विजय ने उन्हें रोक दिया और कहा, "इस समय प्रवेश की अनुमति नहीं है."

इस पर चारों ऋषि क्रोधित हो गए और जय-विजय को श्राप दे दिया कि वे जन्म और मृत्यु के चक्र में बंध जाएंगे. श्राप के बाद जय-विजय व्यथित होकर रोने लगे. उनकी आवाज सुनकर भगवान विष्णु बाहर आए और पूरा घटनाक्रम जानकर बोले, "मैं श्राप को समाप्त नहीं कर सकता, लेकिन इससे मुक्त होने का उपाय बता सकता हूं."

भगवान विष्णु ने दिए दो विकल्प

भगवान ने जय-विजय से कहा, "तुम या तो सात बार मेरे भक्त के रूप में जन्म लोगे, या तीन बार मेरे शत्रु के रूप में." जय-विजय ने तीन बार शत्रु के रूप में जन्म लेना चुना ताकि वे जल्दी मुक्त होकर वैकुंठ लौट सकें.

पहला जन्म: हिरणाक्ष और हिरण्यकश्यपु

जय-विजय ने पहले जन्म में हिरणाक्ष और हिरण्यकश्यपु के रूप में जन्म लिया. हिरणाक्ष ने धरती को समुद्र में डुबो दिया, जिसे बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लिया और हिरणाक्ष का वध किया. हिरण्यकश्यपु, जो भगवान विष्णु का विरोधी था, को विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर मार डाला.

दूसरा जन्म: रावण और कुम्भकर्ण

त्रेता युग में जय-विजय ने रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्म लिया. अपने पराक्रम से दोनों ने धरती और स्वर्ग में हाहाकार मचा दिया. भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लेकर उनका अंत किया.

तीसरा जन्म: शिशुपाल और दंतवक्र

द्वापर युग में जय-विजय शिशुपाल और दंतवक्र बने. उन्होंने अधर्म का रास्ता अपनाया और भगवान कृष्ण के विरोधी बन गए. अंततः भगवान कृष्ण ने उनका वध कर दिया.

इस तरह तीन जन्म पूरे करने के बाद जय-विजय श्राप से मुक्त हो गए और वैकुंठ लौटकर फिर से द्वारपाल बन गए.

इस कथा से सीख: भगवान के भक्त या शत्रु, हर किसी का अंत उनके ही हाथों होता है.

डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसके सही या गलत होने की पुष्टि नहीं करते.

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