बच्चे को हर बात पर डांटने से बच्चे, पड़ता है गलत प्रभाव
बच्चों की परवरिश में संयम और समझदारी बहुत जरूरी है. माता-पिता के सकारात्मक और सहयोगी रवैये से बच्चे बेहतर व्यक्तित्व और मानसिक मजबूती के साथ विकसित हो सकते हैं.

बच्चों की परवरिश करना हर माता-पिता के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी होती है. सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अनुशासित और संस्कारवान बनें. हालांकि, कई बार यह अनुशासन सख्त व्यवहार और लगातार डांट-फटकार में बदल जाता है, जो बच्चे के मानसिक और भावनात्मक विकास पर नकारात्मक असर डाल सकता है. अगर बच्चे को बार-बार डांटा और धमकाया जाए, तो इससे उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है. आइए जानते हैं कि बच्चों पर इस तरह के व्यवहार के क्या साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं.
आत्मविश्वास की कमी
अगर बच्चों को हर छोटी-बड़ी बात पर डांटा जाता है, तो उनका आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है. बार-बार फटकार सुनने वाले बच्चे निर्णय लेने में हिचकिचाते हैं और अपनी क्षमताओं पर भरोसा खो देते हैं. आत्मविश्वास की कमी के कारण वे जीवन में नए अवसरों का लाभ उठाने से डरते हैं. यह उनके शैक्षिक, सामाजिक और पेशेवर जीवन को भी प्रभावित कर सकता है.
डिप्रेशन और मानसिक तनाव
लगातार डांटने और धमकाने का प्रभाव बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ सकता है. ऐसे बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं. डिप्रेशन में बच्चा या तो बहुत अधिक खाने लगता है या बिल्कुल खाना बंद कर देता है. यह उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर नकारात्मक असर डालता है.
भावनात्मक दूरी
माता-पिता का सख्त रवैया बच्चों और उनके बीच भावनात्मक दूरी पैदा कर सकता है. बार-बार डांटने से बच्चे माता-पिता से अपने दिल की बात करने में हिचकिचाते हैं. वे धीरे-धीरे खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं और घर का माहौल उन्हें तनावपूर्ण लगने लगता है. इससे बच्चों के मन में माता-पिता के प्रति दूरी और अविश्वास पैदा हो सकता है.
विद्रोही स्वभाव
बच्चों को बार-बार धमकाने से वे विद्रोही स्वभाव के हो सकते हैं. ऐसे बच्चे बड़े होने पर माता-पिता की बातों को अनदेखा करना शुरू कर देते हैं. वे सही और गलत का फैसला खुद करने की कोशिश करते हैं, जिससे उनके भविष्य में गलत निर्णय लेने की संभावना बढ़ जाती है.
कैसे बचें इस व्यवहार से?
बच्चों को डांटने के बजाय प्यार और समझदारी से उनकी गलतियों को सुधारें.
उनकी बातों को ध्यान से सुनें और उन्हें यह महसूस कराएं कि आप उनके साथ हैं.
सकारात्मक प्रोत्साहन दें और अच्छे कामों के लिए उनकी तारीफ करें.
अनुशासन सिखाने के लिए संवाद का सहारा लें, न कि धमकाने का.