Begin typing your search...

Pride Month: जब सड़कों पर उतरा गर्व, क्यों जून बना LGBTQIA+ समुदाय की आवाज़ का महीना

LGBTQIA+ एक ऐसा शब्द है, जो उन सभी लोगों की पहचान और समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है जो पारंपरिक लिंग (gender) और यौनिकता (sexuality) की परिभाषाओं से अलग हैं. LGBTQIA+ समुदाय दुनिया के हर हिस्से में मौजूद है, लेकिन इतिहास में इन्हें अक्सर अनदेखा किया गया, भेदभाव का शिकार बनाया गया और हाशिए पर रखा गया.

Pride Month: जब सड़कों पर उतरा गर्व, क्यों जून बना LGBTQIA+ समुदाय की आवाज़ का महीना
X
( Image Source:  META AI )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 3 Dec 2025 5:35 PM IST

सन 1969 का जून महीना था. न्यूयॉर्क शहर की गर्म, उमस भरी रातें थीं. अमेरिका में समलैंगिक (LGBTQIA+) लोगों के लिए जीवन आसान नहीं था. उन्हें अपने अस्तित्व को छुपाकर जीना पड़ता था. प्यार छिपाना पड़ता था, पहचान छिपानी पड़ती थी. उन दिनों समलैंगिक होना कानून के खिलाफ समझा जाता था. LGBTQIA+एक ऐसा शब्द है जो उन सभी लोगों की पहचान और समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है जो पारंपरिक लिंग और सेक्सुएलिटी की परिभाषाओं से अलग हैं लोगों को नौकरी से निकाला जाता था, परिवार से निकाल दिया जाता था और लोगों के बीच अपमान करते थे.

वहीं, न्यूयॉर्क के ग्रीनविच विलेज में एक छोटा-सा बार स्टोनवॉल इन था. यह जगह LGBTQIA+ समुदाय के लिए एक सुरक्षित जगह मानी जाती थी. एक कोना जहां वे बिना डर के एक-दूसरे से मिल सकते थे. हंस सकते थे और एक पल के लिए दुनिया की सख़्ती को भूल सकते थे. लेकिन ये आज़ादी स्थायी नहीं थी.

28 जून 1969 वो रात जिसने इतिहास बदल दिया

एक सामान्य-सी रात थी, लेकिन अचानक पुलिस वहां छापा मारने पहुंची. ऐसा पहली बार नहीं था, जब पुलिस अकसर LGBTQ+ बार्स पर छापे डालती थी, लोगों को बिना वजह गिरफ्तार करती थी. मगर इस बार कुछ अलग हुआ. भीड़ ने चुपचाप सिर झुकाकर घुटने टेकने से इनकार कर दिया.

जैसे ही पुलिस ने बार में मौजूद लोगों को खींचना शुरू किया, भीड़ ने प्रतिरोध करना शुरू किया. मार्शा पी. जॉनसन नाम की एक ट्रांसजेंडर महिला को उस विरोध की पहली चिंगारी माना जाता है. वहां मौजूद लोगों ने कहा अब बहुत हो गया.

6 दिनों तक चले स्टोनवॉल दंगे

वो एक रात का विरोध 6 दिन तक चला. सड़कों पर LGBTQ+ समुदाय के लोग इकट्ठा हुए. नारे लगे, पोस्टर उठे. यह एक क्रांति बन चुकी थी. पुलिस, सरकार और समाज को पहली बार ज़ोर से सुनाई दिया. हम भी इंसान हैं. हमें बराबरी चाहिए. इस आंदोलन को स्टोनवॉल रायट्स कहा गया और यही घटना आज के प्राइड मंथ की नींव बनी.

तो जून ही क्यों?

साल भर बाद 28 जून 1970 को, स्टोनवॉल दंगों की पहली वर्षगांठ पर न्यूयॉर्क में पहला "गे प्राइड मार्च" निकाला गया. लोगों ने रंग-बिरंगे झंडे उठाए, अपने प्रेम को खुलेआम जिया और नारे लगाए. धीरे-धीरे यह परंपरा दुनिया भर में फैल गई और फिर, जून महीना LGBTQ+ समुदाय के गर्व, आज़ादी और बराबरी के जश्न का प्रतीक बन गया.

आज प्राइड मंथ का मतलब क्या है?

आज प्राइड मंथ सिर्फ जश्न नहीं है. ये याद दिलाने का समय है कि आज़ादी की ये राह आसान नहीं थी. कि बहुत-से लोगों ने अपनी जान दी ताकि आज कोई खुलकर जी सके. लड़ाई अभी पूरी नहीं हुई. कई जगह LGBTQ+ लोगों के अधिकार अब भी छीने जाते हैं. प्राइड मंथ हमें सिखाता है कि प्यार जैसा भी हो सच्चा हो तो इज्ज़त के क़ाबिल होता है.

अगला लेख