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शहरों में बढ़ रहा Hobosexual रिलेशनशिप का नया ट्रेंड! मोहब्बत के मकान में कैसे जानें पार्टनर के दिल में आपके लिए क्या

महंगे किराए और बढ़ती अकेलेपन के बीच शहरों में ‘Hobosexual रिलेशनशिप’ का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है. ऐसे रिश्तों में लोग प्यार नहीं, बल्कि सिर छुपाने की जगह और सहारे की तलाश में जुड़ते हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यह प्यार से ज़्यादा ज़रूरत का रिश्ता होता है, जहाँ असली सवाल होता है- आपका पार्टनर आपको चाहता है या सिर्फ आपके घर को?

शहरों में  बढ़ रहा Hobosexual रिलेशनशिप का नया ट्रेंड! मोहब्बत के मकान में कैसे जानें पार्टनर के दिल में आपके लिए क्या
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सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Published on: 28 Oct 2025 10:48 PM

हम अक्सर सोचते हैं कि प्यार का मतलब सिर्फ तितलियों का एहसास, पहली किस और हाथों में हाथ डालकर टहलना है. लेकिन हकीकत तब सामने आती है जब दो लोग एक साथ रहने लगते हैं. तब प्यार के साथ किराया बांटना, बिल चुकाना और कभी-कभी किसी का बोझ उठाना भी रिश्ते का हिस्सा बन जाता है.

इंडिया टुडे में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, जैसे-जैसे मेट्रो शहरों में रहना महंगा होता जा रहा है, वैसे-वैसे एक नए तरह का रिश्ता जन्म ले रहा है-'होबोसेक्शुअल रिलेशनशिप'. यह वह रिश्ता है, जहां प्यार के साथ-साथ एक शरण और संसाधन की तलाश भी जुड़ी होती है. सवाल यह उठता है. क्या आपका पार्टनर सच में आपसे प्यार करता है या वह सिर्फ आपकी सुविधा का इस्तेमाल कर रहा है?

क्या है ‘होबोसेक्शुअलिटी’?

मनोचिकित्सक और गेटवे ऑफ हीलिंग की संस्थापक डॉ. चांदनी टुगनैत बताती हैं, “होबोसेक्शुअलिटी लालच नहीं, बल्कि जरूरत से पैदा होती है. एक ‘गोल्ड डिगर’ जहां योजना बनाकर रिश्ता बनाता है, वहीं ‘होबोसेक्शुअल’ किसी की शरण में इसलिए जाता है क्योंकि उसके पास कोई और रास्ता नहीं होता. डॉ. टुगनैत के अनुसार, आज के शहरी जीवन में जहां किराया आसमान छू रहा है, नौकरी अस्थिर है और अकेलापन महामारी बन चुका है, ऐसे में कई लोग रिश्ते को सुरक्षा और सहारे के रूप में देखते हैं.

प्यार या निर्भरता?

पहली नजर में होबोसेक्शुअल रिलेशनशिप ‘गोल्ड डिगिंग’ जैसा लग सकता है- वित्तीय निर्भरता, असंतुलन और इमोशनल बोझ. लेकिन दोनों की मानसिकता में फर्क है. डॉ. टुगनैत कहती हैं, “गोल्ड डिगर अधिकार और लाभ की भावना से प्रेरित होता है, जबकि होबोसेक्शुअल डर और असुरक्षा से. एक सुरक्षा चाहता है, दूसरा शोहरत.” वह आगे कहती हैं, “दोनों में अधूरी जरूरतें झलकती हैं, लेकिन उनकी मनोविज्ञानिक जड़ें बिल्कुल अलग हैं.”

कैसे पहचानें असली मोहब्बत और दिखावटी प्यार

तो आखिर कैसे समझें कि आपका पार्टनर सच्चा है या सिर्फ सुविधा के लिए आपके साथ है? डॉ. टुगनैत कहती हैं — जवाब “निरंतरता और पारस्परिकता” में छिपा है. “सच्चा प्यार भावनात्मक उपस्थिति, प्रयास और जिम्मेदारी से दिखता है, न कि सिर्फ पैसों से. जब कोई इंसान कठिन समय में भी आपके साथ खड़ा होता है, वही सच्चा साथी होता है,” उन्होंने कहा.

उन्होंने दो कहानियां साझा कीं. एक शख्स ने महसूस किया कि जैसे ही उसने खर्च करना बंद किया, पार्टनर का प्यार भी खत्म हो गया. दूसरे मामले में, एक महिला ने आर्थिक कठिनाई के दौरान अपने साथी की देखभाल की और साबित किया कि भावनात्मक निवेश पैसों से कहीं बड़ा होता है.

क्या ऐसे रिश्ते सफल हो सकते हैं?

'हाँ, बिल्कुल,” डॉ. टुगनैत कहती हैं. अगर दोनों पार्टनर ईमानदारी से पैसे, स्पेस और शक्ति पर बात करें, तो ऐसा रिश्ता संतुलित हो सकता है. “निर्भरता अगर ईमानदारी से इंटरडिपेंडेंस (आपसी सहारा) में बदल जाए, तो रिश्ता मजबूत बनता है. लेकिन अगर इसमें अपराधबोध या छिपा गुस्सा शामिल हो जाए, तो यह विषैला हो सकता है,” उन्होंने समझाया. उन्होंने कहा, “हर संकट से अपने पार्टनर को ‘बचाने’ की कोशिश न करें. सीमाएं तय करें, जागरूक रहें, और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दें. दया का मतलब खुद का बलिदान नहीं होता.”

फर्क क्या है: सर्वाइवल बनाम स्ट्रैटेजी

अंत में डॉ. टुगनैत कहती हैं, “होबोसेक्शुअल सुरक्षा, छत और साथीपन चाहता है; गोल्ड डिगर पैसा, ताकत या शोहरत चाहता है.” जहां होबोसेक्शुअल स्थिरता के लिए आभारी होता है, वहीं गोल्ड डिगर विलासिता को अपना अधिकार मानता है. “आप इसे छोटी-छोटी बातों में पहचान सकते हैं. आभार, ईमानदारी और योगदान में,” वह कहती हैं. “होबोसेक्शुअल अपनी कमजोरी स्वीकार करता है, जबकि गोल्ड डिगर दिखावे से उसे छुपाता है.”

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