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अब प्राइवेट पार्ट में भी प्लास्टिक! फर्टिलिटी को खतरा, रिसर्च ने खोली आंखें- नहीं पैदा कर पाएंगे बच्चे

माइक्रोप्लास्टिक्स मुख्य रूप से दो रास्तों से हमारे शरीर में घुसते हैं पहला हवा में सांस लेने से दूसरा खाने-पीने के ज़रिए. एक रिपोर्ट के अनुसार, औसतन एक इंसान हर हफ्ते लगभग 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगल रहा है.

अब प्राइवेट पार्ट में भी प्लास्टिक! फर्टिलिटी को खतरा, रिसर्च ने खोली आंखें- नहीं पैदा कर पाएंगे बच्चे
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रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Updated on: 4 July 2025 6:54 PM IST

आज के समय में माइक्रोप्लास्टिक्स यानी प्लास्टिक के बहुत छोटे-छोटे कण पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन चुके हैं. ये इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें आंखों से देखना मुश्किल है, लेकिन इनका असर हमारे शरीर के हर हिस्से में देखा जा रहा है. अब एक नई रिसर्च में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि ये माइक्रोप्लास्टिक कण इंसानों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम तक पहुंच चुके हैं, जो बच्चों को जन्म देने की क्षमता पर बुरा असर डाल सकते हैं. ह्यूमन रिप्रोडक्शन नाम के एक मशहूर मेडिकल जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, साइंटिस्ट ने 22 पुरुषों और 29 महिलाओं के शरीर से लिए गए नमूनों की जांच की. उन्होंने पाया कि 55% पुरुषों के सीमेन (वीर्य) में और 69% महिलाओं के ओवरी फ्लूइड (अंडाशय द्रव) में माइक्रोप्लास्टिक के कण मौजूद थे. इस रिसर्च को यूरोपियन सोसाइटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन एंड एम्ब्रायोलॉजी की एनुअल मीटिंग में पेश किया गया.

किन प्लास्टिक कणों की मौजूदगी मिली?

शुक्राणु वाले नमूनों में सबसे ज़्यादा जो माइक्रोप्लास्टिक पाए गए, वे थे:

PTFE (टेफ्लॉन) – 41% नमूनों में

पॉलीस्टायरीन (स्टायरोफोम जैसा) – 14%

पॉलीएथिलीन टेरेफ्थेलेट (पॉलिएस्टर में इस्तेमाल होता है) – 9%

नायलॉन – 5%

पॉलीयूरीथेन (फोम में उपयोग होने वाला) – 5%

स्वास्थ्य पर क्या असर डाल सकते हैं ये कण?

शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी इंसानों पर इनके असर को लेकर पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन जानवरों पर हुए टेस्ट में देखा गया है कि माइक्रोप्लास्टिक्स सूजन पैदा कर सकते हैं, डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं, हार्मोनल गड़बड़ी कर सकते हैं कोशिकाओं को जल्दी बूढ़ा कर सकते हैं. मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एमिलियो गोमेज-सांचेज़ का कहना है कि अभी यह साबित नहीं हुआ है कि ये कण सीधे अंडाणु या शुक्राणु को नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन इनकी मौजूदगी चिंता का कारण जरूर है. शोधकर्ता इस रिपोर्ट को एक चेतावनी की तरह देख रहे हैं। डॉ. गोमेज कहते हैं, 'यह घबराने का समय नहीं है, लेकिन सतर्क रहने की ज़रूरत है. माइक्रोप्लास्टिक एक ऐसा कारण हो सकता है जो प्रजनन क्षमता पर असर डालता है.

किन रास्तों से अंदर जा रहा है प्लास्टिक

माइक्रोप्लास्टिक्स मुख्य रूप से दो रास्तों से हमारे शरीर में घुसते हैं पहला हवा में सांस लेने से दूसरा खाने-पीने के ज़रिए. एक रिपोर्ट के अनुसार, औसतन एक इंसान हर हफ्ते लगभग 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगल रहा है- यानी साल भर में करीब 250 ग्राम, जो एक भरी हुई खाने की थाली के बराबर है. इटली के वैज्ञानिकों ने भी 18 महिलाओं के अंडाशय द्रव की जांच की और पाया कि उनमें से 14 महिलाओं के अंदर माइक्रोप्लास्टिक मौजूद थे. शोधकर्ता लुइगी मोंटानो ने इसे 'बेहद चिंताजनक' बताया है. अब तो माइक्रोप्लास्टिक गर्भाशय, प्लेसेंटा (गर्भनाल), और यहां तक कि मानव अंडकोष में भी पाए जा चुके हैं.

क्या कर सकते हैं बचाव के लिए?

कैसे किया जा सकता है बचाव

वैज्ञानिकों ने कुछ आसान से उपाय सुझाए हैं जिनसे माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क को कम किया जा सकता है

-प्लास्टिक की जगह कांच की बोतलें इस्तेमाल करें

-माइक्रोवेव में प्लास्टिक कंटेनर में खाना गर्म न करें

-खाने-पीने में प्लास्टिक की चीजों का कम से कम इस्तेमाल करें

-ताजे और प्राकृतिक भोजन को प्राथमिकता दें

-एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करें

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