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जानिए लखनऊ की शान टुंडे कबाबी की कहानी, वर्ल्ड के टॉप 100 दिग्गज रेस्तरां में मिला है छठा स्थान

1905 में अकबरी गेट, चौक के पास पुराने शहर में बेस हाजी मुराद अली ने एक छोटी सी दूकान से शुरुआत की थी. जिन्हें ट्रैवल गाइड टेस्ट एटलस में वर्ल्ड के टॉप 100 दिग्गज रेस्तरां की लिस्ट में छठा स्थान हासिल किया है.

जानिए लखनऊ की शान टुंडे कबाबी की कहानी, वर्ल्ड के टॉप 100 दिग्गज रेस्तरां में मिला है छठा स्थान
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( Image Source:  Create By AI )
रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Updated on: 11 Nov 2025 3:13 PM IST

लखनऊ की शान टुंडे कबाबी ने ट्रैवल गाइड टेस्ट एटलस में वर्ल्ड के टॉप 100 दिग्गज रेस्तरां की लिस्ट में छठा स्थान हासिल किया है. पांचवें नंबर पर एकमात्र भारतीय रेस्तरां केरल के कोझिकोड में पैरागॉन है.पॉपुलर लिस्ट में शामिल चार अन्य रेस्तरां में कोलकाता में 'पीटर कैट' (10वां), मुरथल में 'अमरीक शुकदेव ढाबा' (16वां), बेंगलुरु में 'मावली टिफिन रूम' (32वां) और दिल्ली में 'करीम' (84वां) शामिल हैं.

1905 में अकबरी गेट, चौक के पास पुराने शहर में बेस हाजी मुराद अली ने एक छोटी सी दूकान से शुरुआत की थी. टुंडे कबाबी प्राइवेट लिमिटेड चलाने वाले मोहम्मद उस्मान कहते हैं. दिल्ली में अमीनाबाद, कपूरथला, दुबग्गा, लुलु मॉल, चांदनी चौक और करामा, दुबई में एक स्टोर है. यह अल्लाह की कृपा है, मेरे दादा की मेहनत है जिसे मेरे पिता हाजी रईस अहमद और मैंने 62 साल की उम्र में अपने चार बेटों के साथ परंपरा को आगे बढ़ाया. हम पूरे भारत और विदेशों में विस्तार कर सकते थे, लेकिन हम फ्रेंचाइजी नहीं देते क्योंकि हम क्वालिटी बनाए रखने में विश्वास करते हैं, वह भी किफायती मूल्य पर, जो लोगों के लिए हमारी सेवा और जिम्मेदारी है.'

ऐसे पड़ा नाम

रईस अहमद के पिता हाजी मुराद अली को पतंग उड़ाने का बहुत शौक था. एक बार पतंग उड़ाते समय उनका हाथ टूट गया। जिसे बाद में काटना पड़ा. जब मुराद अली का पतंग उड़ाने से शौक खत्म हो गया तो वह अपने पिता के साथ दुकान पर बैठने लगे। टुंडे होने के कारण यहां कबाब खाने आने वाले लोग इसे टुंडे के कबाब कहने लगे और यहीं से इसका नाम टुंडे कबाब पड़ गया.

नई रेसिपीज पर काम किया

अकबरी गेट के पास फूड ज्वाइंट, जो परिवार के बीच बंट गया है, उसके भाई मोहम्मद रिजवान द्वारा चलाया जाता है. उस्मान स्वीकार करते हैं कि कवाब में उनके घर की महिलाओं द्वारा तैयार किए जाने वाले मसाले डाले जाते है. जिससे इसका स्वाद इतना खास हो जाता है. यह लोगों का प्यार ही है जो हमें बेहतर करने के लिए इंस्पायर्ड करता है. हमने धीरे-धीरे अपना मेन्यू बढ़ाया है और नई रेसिपीज पर काम किया है और फूड लवर्स ने उन्हें खुले हाथों से स्वीकार किया है. अमीनाबाद स्टोर के एंट्री गेट पर प्रसिद्धि की दीवार और बड़ी वीडियो दीवार पर उस्मान की मशहूर हस्तियों के साथ तस्वीरें हैं जिनमें दिवंगत स्टार दिलीप कुमार, सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान और कई अन्य शामिल हैं. खाने-पीने के शौकीन लोग तस्वीरें खिंचवाते नजर आ रहे हैं. हालांकि वह कभी मसालों के बारें में किसी को जानकारी नहीं देते हैं. यहां तक उन्होंने अपनी बेटियों को भी मसालों और कवाब बनाने के तरीके को नहीं बताया.

क्या है पूरी कहानी

लखनऊ के टुंडे कबाब की कहानी पिछली सदी की शुरुआत से शुरू होती है, जब 1905 में यहां अकबरी गेट में पहली बार एक छोटी सी दुकान खोली गई थी. दुकान के मालिक 70 वर्षीय रईस अहमद के मुताबिक, उनके पूर्वज भोपाल के नवाब के घर में रसोइया हुआ करते थे. नवाब को खाने-पीने का बहुत शौक था, लेकिन उम्र के साथ उनके दांत खराब हो गए और खाने-पीने में दिक्कत होने लगी. बढ़ती उम्र के साथ भी नवाब साहब और उनकी पत्नी की खाने-पीने की आदत नहीं छूटी, इसलिए उनके लिए ऐसे कबाब बनाने का विचार आया जिसे बिना दांतों के भी आसानी से खाया जा सके. इसके लिए गोश्त को बारीक पीसकर उसमें पपीता मिलाकर ऐसा कबाब बनाया जाता था जो मुंह में रखते ही पिघल जाता था. पेट को स्वस्थ रखने और स्वाद के लिए मसाले चुन-चुन कर डाले जाते थे. इसके बाद हाजी परिवार भोपाल से लखनऊ आया और अकबरी गेट के पास गली में एक छोटी सी दुकान शुरू की. हाजी जी के कबाब की प्रसिद्धि इतनी तेजी से फैली कि शहर भर से लोग कबाब का स्वाद लेने के लिए यहां आने लगे। इस प्रसिद्धि का असर यह हुआ कि इन कबाबों को जल्द ही अवध के शाही कबाब का दर्जा मिल गया.

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