Begin typing your search...

'महिलाओं को एक हत्या की मिले छूट', क्या आपने कभी सोचा है कि अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा? आइए जानते हैं...

हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है, लेकिन इस बार NCP नेता रोहिणी खडसे ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र ने देशभर में बहस छेड़ दी. उन्होंने मांग की कि महिलाओं को 'एक हत्या की छूट' दी जाए, जिससे कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए. अगर ऐसा हुआ, तो पुलिस और न्याय प्रणाली का क्या महत्व रह जाएगा? क्या अन्याय का सामना करने वालों को कानून हाथ में लेने की अनुमति मिलनी चाहिए? आइए इस खबर पर एक नजर डालते हैं मिल सकता है आपके सवालों का जवाब...

महिलाओं को एक हत्या की मिले छूट, क्या आपने कभी सोचा है कि अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा? आइए जानते हैं...
X
सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Updated on: 10 March 2025 1:23 AM IST

8 मार्च को हर साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है, जहां महिलाओं की उपलब्धियों की सराहना की जाती है और उनकी कहानियों पर चर्चा होती है. लेकिन इस बार, NCP नेता रोहिणी खडसे के राष्ट्रपति को लिखे पत्र ने पूरे देश में हलचल मचा दी. उन्होंने मांग की कि 'महिलाओं को एक हत्या की छूट' दी जाए.' यह बयान सामने आते ही चारों तरफ बहस छिड़ गई. क्या सच में ऐसा होना चाहिए? हर दिन देश में अपराध की चौंकाने वाली घटनाएं होती हैं, कानून व्यवस्था की चुनौतियां बनी रहती हैं. अगर सरकार ने इस तरह की छूट दी, तो क्या पुलिस और न्याय प्रणाली का कोई मतलब रह जाएगा?

इस बयान के बाद एक बड़ा सवाल उठता है – अगर किसी के साथ अन्याय होता है, तो क्या उसे कानून हाथ में लेने की इजाजत मिलनी चाहिए? क्या इसका मतलब यह होगा कि हर कोई अपने हिसाब से इंसाफ करने लगे और कानून का अस्तित्व खत्म हो जाए? इस तरह की सोच किसी भी समाज के लिए घातक साबित हो सकती है. गुस्सा और बदले की भावना कभी-कभी स्वाभाविक हो सकती है, लेकिन क्या एक जिम्मेदार राजनेता या किसी भी व्यक्ति को ऐसा बयान देना सही कहा जाएगा?

1. क्या हत्या की छूट से महिलाओं को न्याय मिलेगा?

महिलाओं के खिलाफ अपराध निश्चित रूप से गंभीर मुद्दा है. कई बार न्याय पाने के लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ता है. लेकिन क्या इसका समाधान ये है कि महिलाओं को किसी की भी हत्या करने की छूट मिल जाए? अगर ऐसा हुआ तो न्यायपालिका, पुलिस और संविधान का कोई अर्थ ही नहीं रहेगा. फिर हर कोई अपने हिसाब से न्याय करेगा और बदले की भावना से हत्याएं होने लगेंगी. ये तो एक अराजकता (Anarchy) की स्थिति होगी.

2. अगर हर किसी को बदला लेने की छूट मिल जाए तो क्या होगा?

अगर किसी महिला के साथ अन्याय हुआ और उसे "एक हत्या करने की छूट" मिल जाए, तो फिर अपराध के अन्य मामलों में भी यही नियम लागू होगा? अगर किसी मजदूर को उसका वेतन न मिले, तो क्या उसे अपने मालिक की हत्या करने की छूट मिलेगी? अगर किसी व्यक्ति के साथ धोखा हो जाए, तो क्या उसे हत्यारा बनने का हक मिल जाएगा? अगर हम इस तर्क को सही मान लें, तो समाज में हिंसा और क्रूरता का नया दौर शुरू हो जाएगा. फिर देश में कानून की कोई अहमियत नहीं रह जाएगी.

3. क्या महिलाओं को मजबूत बनाने का यही तरीका है?

महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment) का मतलब है कि महिलाओं को शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा और न्याय तक पहुंच मिले. लेकिन हत्या की छूट का मतलब होगा कि हम उन्हें हिंसा के रास्ते पर धकेल रहे हैं. अगर हर महिला को किसी को मारने की छूट मिल जाए, तो फिर ये तय कैसे होगा कि किसका अपराध इतना बड़ा था कि उसे मौत दी जाए? क्या यह महिलाओं को न्याय दिलाने का सही तरीका है? अगर महिलाओं को सही मायनों में ताकतवर बनाना है, तो उन्हें शिक्षा, अवसर और आत्मरक्षा के साधन देने होंगे, न कि किसी को मारने का लाइसेंस.

4. असली समाधान क्या है?

अगर महिलाओं की सुरक्षा और न्याय की बात करें, तो सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए, जैसे कि –

1 तेजी से न्याय दिलाने के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट

2 सख्त कानून और सख्त सजा का प्रावधान

3 महिलाओं के लिए आत्मरक्षा की ट्रेनिंग और सुरक्षा बढ़ाना

4 सोशल मीडिया और साइबर क्राइम के मामलों में सख्त कार्रवाई

रोहिणी खडसे जी, आपका गुस्सा जायज हो सकता है, लेकिन समाधान गलत है. अगर महिलाओं के खिलाफ अन्याय को रोकना है, तो कानून को मजबूत करना होगा, न कि उसे खत्म करने की मांग करनी होगी. कानून हाथ में लेने की छूट किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार नहीं की जा सकती.

India News
अगला लेख