केरल की नर्स निमिषा प्रिया को यमन में फांसी से क्यों नहीं बचा पा रही भारत सरकार? जानिए पूरी कहानी
केरल की नर्स निमिषा प्रिया को यमन में 2017 में एक स्थानीय बिजनेसमैन की हत्या के मामले में 16 जुलाई को फांसी दी जानी है. भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने सभी प्रयास कर लिए हैं लेकिन अब मामला उसके नियंत्रण से बाहर है क्योंकि यमन के हूती प्रशासन से भारत के औपचारिक कूटनीतिक संबंध नहीं हैं. शरीया कानून के तहत 'ब्लड मनी' के जरिए माफी की संभावना थी, लेकिन पीड़ित परिवार ने बातचीत से इनकार कर दिया.

Nimisha Priya Yemen execution: केरल की रहने वाली 38 वर्षीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन में 2017 में एक स्थानीय बिजनेसमैन की हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया है और उनकी फांसी 16 जुलाई 2025 को तय की गई है. इस बीच, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने हर संभव प्रयास कर लिए हैं, लेकिन अब हालात उसके नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं.
भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटारमणी ने सुप्रीम कोर्ट को सोमवार को बताया कि सरकार एक हद तक ही जा सकती है और वह हद पार कर चुकी है. हर चैनल का इस्तेमाल किया जा चुका है, लेकिन कुछ काम नहीं आया. भारत ने यमन के प्रभावशाली शेख से भी संपर्क किया, जिनसे उम्मीद थी कि वो स्थानीय प्रशासन को मनाएंगे, लेकिन अब तक कोई आधिकारिक आश्वासन नहीं मिला है.
‘ब्लड मनी’ भी नहीं बनी समाधान
यमन के हूती शासित क्षेत्र में शरिया कानून लागू है, जिसके अनुसार हत्या के मामलों में दोषी को माफ किया जा सकता है, यदि मृतक के परिवार को आर्थिक मुआवजा यानी 'ब्लड मनी' दी जाए. निमिषा के परिवार ने भारी रकम जुटाकर पीड़ित परिवार को मनाने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कोई संवाद करने से इनकार कर दिया. हूती प्रशासन ने भी बातचीत में दिलचस्पी नहीं दिखाई और इसे 'इज्जत का मामला' बताया.
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता संगठन 'सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल' की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि विदेशी देश के मामले में कोई आदेश देना मुश्किल है. ऐसे आदेश को मानने वाला कौन होगा? कोर्ट ने अगली सुनवाई 18 जुलाई को तय की है, लेकिन कहा कि अगर उससे पहले कोई प्रगति होती है, तो सूचित किया जाए.
क्या है पूरा मामला?
निमिषा प्रिया ने 2008 में यमन में नौकरी के लिए कदम रखा था. शुरुआत में अस्पतालों में नर्स के तौर पर काम करने के बाद उन्होंने एक स्थानीय नागरिक तलाल अब्दो महदी के साथ मिलकर क्लिनिक शुरू किया. बाद में उन्होंने आरोप लगाया कि महदी उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था और उनका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया था. पासपोर्ट वापस पाने की कोशिश में उन्होंने उसे बेहोश करने के लिए दवा दी, लेकिन उसकी ओवरडोज से मौत हो गई. यमन की राजधानी सना की अदालत ने 2020 में उन्हें मौत की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में हूती प्रशासन की सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल ने भी बरकरार रखा.
निमिषा की मां की संघर्षपूर्ण यात्रा
निमिषा की मां प्रेमा कुमारी पिछले एक साल से सना में रहकर बेटी के लिए माफी की गुहार लगा रही हैं. भारत सरकार की यात्रा पर रोक की वजह से उन्हें हाईकोर्ट से विशेष अनुमति लेकर यमन जाना पड़ा था. अब भारत और निमिषा के परिवार की उम्मीदें हूती प्रशासन की दया पर टिकी हैं- जहां ना कूटनीतिक संबंध हैं और ना ही स्पष्ट संवाद की कोई गारंटी.