Balochistan में क्यों भड़की आग? क्या PoK का है कोई कनेक्शन?
बलूचिस्तान में बढ़ती हिंसा और PoK को लेकर भारत-पाकिस्तान के बयानों के बीच क्या कोई गहरा कनेक्शन है? क्या पाकिस्तान को वाकई PoK पर कोई फैसला लेना पड़ेगा?

OPINION | बलूचिस्तान में हालिया हिंसा और PoK (Pakistan Occupied Kashmir) को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ती बयानबाज़ी ने नए सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या इन दोनों मुद्दों के बीच कोई गहरा कनेक्शन है? क्या पाकिस्तान को वाकई डर है कि अगर उसने PoK पर कोई कदम नहीं उठाया तो बलूचिस्तान उसके हाथ से निकल सकता है? क्या भारत की चुप्पी के पीछे कोई रणनीति छुपी हुई है, या फिर यह सिर्फ एक संयोग है कि जब-जब PoK का मुद्दा गरमाया है, तब-तब बलूचिस्तान में हिंसा बढ़ी है?
2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में पहली बार बलूचिस्तान का ज़िक्र किया था. उन्होंने कहा था कि बलोच, गिलगित और PoK के लोग भारत का धन्यवाद कर रहे हैं. यह पहली बार था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान के मसले पर खुलकर बात की थी. क्या यह पाकिस्तान के लिए एक संकेत था कि अगर वह कश्मीर को लेकर अपनी रणनीति नहीं बदलेगा तो उसे बलूचिस्तान में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है? या फिर यह सिर्फ एक मानवीय बयान था, जिसमें वहां हो रहे कथित मानवाधिकार उल्लंघनों की बात कही गई थी?
इसके बाद से भारतीय नेताओं के कई बयान सामने आए, जो PoK को लेकर पाकिस्तान के लिए लगातार दबाव बनाते नज़र आए. गृह मंत्री अमित शाह ने 2024 में कहा था कि "PoK हमारा था, है और रहेगा." रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी 2024 में कहा था कि "PoK के लोग खुद भारत में शामिल होना चाहेंगे." क्या यह बयान महज़ चुनावी राजनीति थी, या फिर इसके पीछे कोई रणनीतिक सोच थी? क्या यह पाकिस्तान के लिए एक अप्रत्यक्ष संदेश था कि अगर वह PoK पर अड़ा रहेगा, तो उसे अपने अंदरूनी मामलों में और भी अधिक अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है?
दूसरी ओर, पाकिस्तान ने कई बार भारत पर बलोच विद्रोहियों को समर्थन देने का आरोप लगाया है. 2016 में कुलभूषण जाधव की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान ने दावा किया था कि वह RAW के एजेंट हैं और बलूचिस्तान में भारत की ओर से 'हस्तक्षेप' कर रहे थे. भारत ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि जाधव को ईरान से अगवा किया गया था. यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गया और भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी चुनौती दी. लेकिन सवाल वही है – अगर भारत बलूचिस्तान में सक्रिय नहीं है, तो पाकिस्तान बार-बार यह आरोप क्यों लगाता है? क्या यह पाकिस्तान की अपनी अंदरूनी नाकामी को छुपाने का एक तरीका है, या फिर इसमें कुछ सच्चाई भी है?
मार्च 2025 में बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने Jaffar Express ट्रेन को हाईजैक कर लिया, जिसमें 26 लोग मारे गए. पाकिस्तान ने तुरंत भारत पर आरोप मढ़ दिया, लेकिन कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया. यह पहली बार नहीं था जब पाकिस्तान ने भारत पर ऐसे आरोप लगाए. लेकिन अगर भारत बलोच विद्रोहियों को समर्थन नहीं दे रहा है, तो BLA के हमले बढ़ क्यों रहे हैं? क्या यह पाकिस्तान की अपनी विफलताओं का नतीजा है, या फिर इसमें बाहरी तत्वों की कोई भूमिका है?
भारत ने कभी भी सार्वजनिक रूप से बलूचिस्तान में किसी भी प्रकार की इन्वॉल्वमेंट को स्वीकार नहीं किया है. लेकिन कुछ घटनाएं इस दिशा में सोचने पर मजबूर करती हैं. 2016 में मोदी का बलूचिस्तान पर ज़िक्र, बलोच नेताओं को भारत में वीज़ा देने की पेशकश, और पाकिस्तान के बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों को इंटरनेशनल फोरम पर उठाना – क्या यह सिर्फ एक कूटनीतिक चाल है, या फिर इसके पीछे कोई लंबी रणनीति छुपी है?
इस पूरे घटनाक्रम में चीन भी एक अहम खिलाड़ी है. CPEC (China-Pakistan Economic Corridor) बलूचिस्तान से होकर गुजरता है और यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए आर्थिक रूप से बेहद अहम है. अगर बलूचिस्तान में अस्थिरता बनी रहती है, तो इसका असर CPEC पर भी पड़ सकता है. क्या यह भी एक कारण हो सकता है कि बलूचिस्तान का मुद्दा बार-बार गरमाया जाता है? क्या भारत के लिए यह एक अवसर हो सकता है कि वह पाकिस्तान को अंदर से कमजोर करे और उसके रणनीतिक साझेदार चीन को भी मुश्किल में डाले?
इन सवालों के जवाब फिलहाल स्पष्ट नहीं हैं. अगर भारत सच में बलूचिस्तान में किसी भी प्रकार की गतिविधियों में शामिल है, तो इसका सबूत अभी तक सामने क्यों नहीं आया? अगर पाकिस्तान का दावा सही है, तो वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसे साबित क्यों नहीं कर पाया? और अगर भारत बलूचिस्तान को लेकर गंभीर नहीं है, तो फिर उसके नेता इस मुद्दे को बार-बार क्यों उठाते हैं?
क्या पाकिस्तान वाकई PoK को लेकर कोई बड़ा फैसला लेने के लिए मजबूर हो सकता है? क्या बलूचिस्तान में बढ़ती हिंसा और PoK को लेकर भारत का आक्रामक रुख एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं? या फिर यह सिर्फ एक संयोग है कि जब-जब PoK का मुद्दा ज़ोर पकड़ता है, तब-तब बलूचिस्तान में तनाव बढ़ जाता है?
अभी इन सवालों के जवाब मिलना मुश्किल है, लेकिन इतना ज़रूर है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दे और भी ज़्यादा गरमाने वाले हैं। क्या पाकिस्तान अपने अंदरूनी हालात को संभाल पाएगा, या फिर यह किसी बड़े बदलाव की शुरुआत है?
Disclaimer: यह लेख लेखक के अपने विचार हैं. इसमें दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों और नेताओं के बयानों पर आधारित है. इसका उद्देश्य केवल विश्लेषण और विचार-विमर्श को प्रोत्साहित करना है, न कि किसी निष्कर्ष पर पहुँचना.