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कौन हैं प्रोफेसर डॉ. निसार उल हसन? LG ने दिया था 'टिकिंग टाइम बम' का टैग, जानें 'डी गैंग' आतंकी मॉड्यूल कनेक्शन

डॉ. निसार का नाम एक अंतर-राज्यीय आतंकी मॉड्यूल में आया है. यह जैश-ए-मोहम्मद का 'सफेदपोश' ग्रुप है. सफेदपोश मतलब ऐसे लोग जो अच्छी नौकरियां करते हैं, समाज में सम्मान पाते हैं, लेकिन चुपके से आतंकवाद की मदद करते हैं. जांच एनआईए (नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) कर रही है.

कौन हैं प्रोफेसर डॉ. निसार उल हसन? LG ने दिया था टिकिंग टाइम बम का टैग, जानें डी गैंग आतंकी मॉड्यूल कनेक्शन
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( Image Source:  ANI, X : @theskindoctor13 )
रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Published on: 15 Nov 2025 11:57 AM

श्रीनगर के एक बड़े अस्पताल एसएमएचएस में मेडिसिन विभाग के पुराने असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. निसार उल हसन फिर से खबरों में आ गए हैं. वजह है एक बड़ी आतंकी साजिश की जांच. यह साजिश दिल्ली के लाल किले में धमाका करने और फरीदाबाद में आतंक फैलाने की थी. इसमें जैश-ए-मोहम्मद नाम के आतंकी संगठन का एक खास मॉड्यूल शामिल है, जिसे 'सफेदपोश' मॉड्यूल कहते हैं. मतलब ऐसे लोग जो बाहर से सम्मानजनक दिखते हैं, जैसे डॉक्टर या प्रोफेसर, लेकिन अंदर से आतंकवाद में मदद करते हैं.

जांच में डॉ. निसार का नाम आया है, इसलिए सबकी नजर उन पर है. डॉ. निसार जम्मू-कश्मीर के सोपोर इलाके के अचबल गांव से आते हैं. यह गांव कभी आतंकवाद के लिए बहुत बदनाम था. उन्होंने 1991 में श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री ली. फिर 2001 में शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से जनरल मेडिसिन में एमडी की पढ़ाई पूरी की. यानी वे एक अच्छे और पढ़े-लिखे डॉक्टर हैं. लेकिन उनके जीवन में हमेशा विवाद रहे हैं.

2023 में नौकरी से निकाल दिया

एक तरफ वे मरीजों का इलाज करते थे, दूसरी तरफ उनकी राजनीतिक सोच अलगाववादी मानी जाती थी. अलगाववादी मतलब जो कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं. इसी वजह से नवंबर 2023 में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के प्रशासन ने उन्हें सरकारी नौकरी से निकाल दिया. इसके लिए अनुच्छेद 311(2)(सी) का इस्तेमाल किया गया, जो कहता है कि अगर कोई व्यक्ति राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों में शामिल है, तो उसे बिना पूरी जांच के भी नौकरी से हटाया जा सकता है. उपराज्यपाल ने उन्हें 'टिकिंग करता टाइम बम' तक कहा, मतलब ऐसा व्यक्ति जो कभी भी बड़ा खतरा बन सकता है.

डॉ. निसार का विवादास्पद करियर और राजनीतिक झुकाव

डॉ. निसार एसएमएचएस अस्पताल में असिस्टेंट प्रोफेसर थे. लेकिन उनका नाम हमेशा विवादों में रहा सुरक्षा एजेंसियां सालों से उन पर नजर रखती थीं, क्योंकि उनके बयान और विचार अलगाववादी लगते थे. वे कश्मीर डॉक्टर्स एसोसिएशन (डीएके) के अध्यक्ष भी रहे. इस पद पर रहते हुए उन्होंने कई बार सरकार के खिलाफ आवाज उठाई. आइए कुछ बड़े घटनाओं को समझते हैं:

मई 2013 की हड़ताल: उस समय जम्मू-कश्मीर में नकली दवाओं का बड़ा घोटाला हुआ था. घटिया दवाओं से कई मरीज मर गए/ डॉ. निसार ने डॉक्टरों की हड़ताल बुलाई. यह हड़ताल इसलिए शुरू हुई क्योंकि सरकार नकली दवाएं रोकने में नाकाम थी. लेकिन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जैसे अलगाववादी समूहों ने इसका समर्थन किया, तो हड़ताल राजनीतिक हो गई. लोग इसे स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ बगावत मानने लगे.

मई 2014 में निलंबन: उस समय उमर अब्दुल्ला की सरकार थी. डॉ. निसार पर आरोप लगा कि वे उपद्रव भड़का रहे हैं और देशद्रोही बयान दे रहे हैं. उन्होंने सरकारी कर्मचारियों से कहा कि चुनाव ड्यूटी का बहिष्कार करें, टैक्स मत दें, और 'आजादी की संस्थाओं को मजबूत करें.' सरकार ने उन्हें नौकरी से सस्पेंड कर दिया. सुरक्षा एजेंसियां उन पर और सख्ती से नजर रखने लगी. लेकिन बाद की सरकारों पहले एनसी-कांग्रेस की, फिर पीडीपी-भाजपा की ने सिर्फ निलंबन जारी रखा, कोई और सजा नहीं दी.

चार साल बाद बहाली: पूरे चार साल निलंबित रहने के बाद, अगस्त 2018 में राज्यपाल शासन के समय उन्हें फिर नौकरी पर वापस ले लिया गया. उस समय उन्होंने अपने बयानों को सिर्फ स्वास्थ्य मुद्दों तक सीमित रखा. कोई राजनीतिक बात नहीं की.

2018 से 2023 तक शांति, फिर बर्खास्तगी

2018 से 2023 तक डॉ. निसार ने सार्वजनिक रूप से कोई विवादास्पद बात नहीं की. वे सिर्फ मेडिसिन और स्वास्थ्य के मुद्दों पर बोलते रहे. लेकिन उनके पुराने बयान और अलगाववादी सोच फिर से चर्चा में आई. सुरक्षा एजेंसियों ने सबूत इकट्ठा किए. आखिरकार 2023 में उपराज्यपाल ने उन्हें 'राष्ट्र-विरोधी' बताकर नौकरी से हमेशा के लिए निकाल दिया. उपराज्यपाल ने कहा कि ऐसे लोग 'टिकट करता टाइम बम' हैं मतलब बाहर से शांत दिखते हैं, लेकिन अंदर से खतरा पैदा कर सकते हैं.

अब नई जांच: 'सफेदपोश' आतंकी मॉड्यूल

अब डॉ. निसार का नाम एक अंतर-राज्यीय आतंकी मॉड्यूल में आया है. यह जैश-ए-मोहम्मद का 'सफेदपोश' ग्रुप है. सफेदपोश मतलब ऐसे लोग जो अच्छी नौकरियां करते हैं, समाज में सम्मान पाते हैं, लेकिन चुपके से आतंकवाद की मदद करते हैं. जांच एनआईए (नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) कर रही है. इसमें दिल्ली के लाल किले में बम ब्लास्ट की साजिश और फरीदाबाद में आतंक फैलाने की योजना शामिल है. डॉ. निसार पिछले कई सालों से फरीदाबाद के अल फलाह विश्वविद्यालय में जनरल मेडिसिन के प्रोफेसर थे. जांच में उनका नाम इसलिए आया क्योंकि साजिश के कथित मास्टरमाइंड डॉ. मोहम्मद उमर नबी उनके साथ जुड़े हैं. डॉ. उमर नबी एक साल से ज्यादा समय तक डॉ. निसार के अधीन जूनियर डॉक्टर के रूप में काम कर चुके थे. जांचकर्ता दोनों के बीच के रिश्तों की गहराई से पड़ताल कर रहे हैं, क्या डॉ. निसार जानबूझकर मदद कर रहे थे? या सिर्फ संयोग है? यह अभी साफ नहीं है.

पत्नी का बचाव और हिरासत की बात

डॉ. निसार की पत्नी डॉ. सुरैया ने इंडिया टुडे से फोन पर बात की. उन्होंने अपने पति का पूरा बचाव किया और कहा कि डॉ. निसार और डॉ. उमर नबी के बीच रिश्ते अच्छे नहीं थे. डॉ. निसार को उमर की बार-बार गैरहाजिरी पसंद नहीं थी. उमर मरीजों की अच्छे से देखभाल नहीं करते थे और छात्रों को ठीक से नहीं पढ़ाते थे. इसी झगड़े की वजह से उमर को दूसरे वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. डॉ. सुरैया ने यह भी कहा कि उनके पति फरार नहीं हैं, जैसा कुछ खबरें बता रही हैं. बल्कि एनआईए ने उन्हें औपचारिक रूप से हिरासत में लिया है. यूनिवर्सिटी के कई छात्रों और टीचर्स से भी पूछताछ हो रही है यानी जांच अभी चल रही है, और डॉ. निसार सहयोग कर रहे हैं.

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