मिंता देवी की फोटो की टीशर्ट पहनकर विपक्षी सांसद ने किया प्रदर्शन, जानें कौन और क्या है मामला?
बिहार में SIR को लेकर विपक्ष लगातार सवाल खड़े कर रही है. अब उन्होंने संसद के भीतर एक अनोखा प्रदर्शन किया, जिसमें सांसदों ने एक टी-शर्ट पहनी थी, जिस पर Minta Devi लिखा हुआ था. दरअसल यह 124 साल की महिला है, जिनका पहली बार वोटर लिस्ट में नाम जुड़ा है.
बिहार में इन दिनों चल रहे मतदाता सूची SSR अभियान के दौरान डेटा एंट्री में गंभीर लापरवाहियां सामने आ रही हैं. एक तरफ कई योग्य मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए हैं, तो दूसरी ओर गलत जानकारी जोड़ने की शिकायतें भी लगातार मिल रही हैं.
आज संसद के भीतर एक अनोखा नजारा देखने को मिला. बिहार से आए विपक्षी सांसदों ने सादे कपड़ों की जगह एक खास टी-शर्ट पहन रखी थी. उस पर बड़े-बड़े अक्षरों में MINTA DEVI लिखा था. 124 साल की महिला का नाम पहली बार वोटर लिस्ट में एड किया गया.
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124 साल की 'नई वोटर'
पूरा मामला बिहार के सिवान जिले के दरौंदा विधानसभा क्षेत्र, सिसवा कला पंचायत के अरजानीपुर गांव से जुड़ा है. यहां की मतदाता सूची में एक नया नाम जोड़ा गया. मिंता देवी, जिनकी उम्र बताई गई 124 साल. और खास बात ये कि इतनी उम्र के बावजूद, यह उनका पहला वोट होने वाला था. इस असामान्य तथ्य ने सभी को हैरान कर दिया.
कौन है मिंता देवी?
NDTV की पड़ताल में सामने आया कि मिंता देवी की असली उम्र महज 35 साल है. वह अरजानीपुर गांव के धनंजय कुमार सिंह की पत्नी हैं. दरअसल, ऑनलाइन फॉर्म भरते समय उम्र गलत दर्ज हो गई और उसकी वजह से उनका जन्म वर्ष 1900 दिखने लगा. बूथ संख्या 94 के बूथ लेवल अधिकारी उपेंद्र शाह ने भी इस गलती को माना है और बताया कि यह डेटा एंट्री की गलती थी, जिसे जल्द ही सुधारा जाएगा.
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"एक गलती नहीं, सिस्टम की खराबी है"
स्थानीय प्रशासन ने इस गलती को केवल एक इंसानी भूल बताया है. लेकिन विपक्ष इसे बड़ी लापरवाही मानता है. उनका कहना है कि अगर ऐसी सरल गलतियां हो रही हैं, तो इससे चुनाव की साफ़गोई और निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं. सांसदों का कहना है कि यह सिर्फ एक छोटी सी गलती नहीं है, बल्कि बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण (SIR) के दौरान कई लोगों के नाम हटाए जाने और गलत जानकारी जोड़ी जाने की शिकायतें लगातार आ रही हैं.
चुनाव आयोग की सफाई
विवाद बढ़ता देख चुनाव आयोग ने प्रतिक्रिया दी. उनका कहना था कि तकनीकी गलतियां सामान्य हैं और इन्हें सुधारने की एक तय प्रक्रिया मौजूद है. मगर विपक्ष का आरोप है कि गलत डेटा से मतदाता अधिकारों का हनन हो सकता है और चुनाव की विश्वसनीयता पर असर पड़ता है.
सवाल अब भी कायम हैं...
क्या ऐसी गलतियों को केवल तकनीकी त्रुटि कहकर टाल दिया जाना चाहिए? मतदाता सूची जैसे संवेदनशील दस्तावेज़ में इतनी बड़ी गड़बड़ी कैसे हुई? और क्या चुनाव आयोग की निगरानी प्रक्रिया पर्याप्त है? 124 साल की यह 'नई वोटर' अब देश की लोकतांत्रिक प्रणाली के सामने एक मुश्किल सवाल बन कर खड़ी है.





