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सिद्धारमैया-डीके शिवकुमार के बीच क्या है विवाद? दिल्ली दरबार में खत्म हो सकती है कड़वाहट; पढ़ें ढाई-ढाई साल के वादे की कहानी

कर्नाटक में सत्ता संग्राम चरम पर: सिद्धारमैया–शिवकुमार दिल्ली दरबार में आमने-सामने, क्या कांग्रेस ने 2023 का “ढाई-ढाई साल” का वादा किया था? कर्नाटक कांग्रेस में नेतृत्व संकट गहराता जा रहा है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार को दिल्ली दरबार ने तलब किया है, ताकि 2023 में हुए कथित “ढाई–ढाई साल” के सत्ता-विभाजन समझौते पर पैदा हुए विवाद को सुलझाया जा सके. शिवकुमार समर्थक दावा कर रहे हैं कि हाईकमान ने मौखिक रूप से वादा किया था, जिसे अब निभाया नहीं जा रहा. वहीं सिद्धारमैया खेमे का कहना है कि कोई औपचारिक समझौता नहीं था. कांग्रेस हाईकमान पर अब संतुलित समाधान खोजने का दबाव बढ़ गया है.

सिद्धारमैया-डीके शिवकुमार के बीच क्या है विवाद? दिल्ली दरबार में खत्म हो सकती है कड़वाहट; पढ़ें ढाई-ढाई साल के वादे की कहानी
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( Image Source:  ANI )
नवनीत कुमार
By: नवनीत कुमार

Published on: 29 Nov 2025 8:23 AM

कर्नाटक कांग्रेस के भीतर पिछले कई महीनों से हो रहा विवाद अब निर्णायक चरण में पहुंच गया है. पार्टी हाईकमान ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार दोनों को तत्काल नई दिल्ली बुलाकर यह साफ संकेत दे दिया है कि अब नेतृत्व संकट को और लंबा नहीं खींचा जा सकता. सत्ता का यह टकराव महज़ पद की लड़ाई नहीं, बल्कि उस राजनीतिक “शब्द” की कसौटी बन चुका है, जिसके बारे में दावा है कि वह 2023 में गठित सरकार की नींव में रखा गया था.

सवाल बड़ा है- क्या वास्तव में कांग्रेस ने शिवकुमार को आधे कार्यकाल के लिए सत्ता हस्तांतरण का वादा किया था? और यदि किया था, तो अब उसे निभाने में हिचक किस बात की है? यही अस्पष्टता कर्नाटक कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति को गहरे संकट में धकेल रही है, जो अब दिल्ली की देहरी पर आ खड़ी हुई है.

किसने दिया था वादा और किसे?

कांग्रेस के कई वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं कि 2023 विधानसभा चुनावों के बाद शीर्ष नेताओं की एक बैठक में मौखिक रूप से पावर-शेयरिंग पर सहमति बनी थी. ढाई साल सिद्धारमैया और बाकी ढाई साल शिवकुमार. यह तय तो हुआ, लेकिन कभी आधिकारिक नहीं बनाया गया. अब शिवकुमार द्वारा “5–6 नेताओं के बीच सीक्रेट डील” का खुलासा आग में घी का काम कर गया है.

दो खेमों की दो कहानियां

सिद्धारमैया खेमे के अनुसार कोई “बाध्यकारी” समझौता नहीं था. न लिखित सहमति, न औपचारिक घोषणा. सब कुछ आलाकमान के विवेक पर था और यही स्थिति आज भी है. वहीं शिवकुमार समर्थक इसे मात्र “वादा” नहीं, बल्कि पार्टी की विश्वसनीयता का प्रश्न बताते हैं, “अगर पार्टी ने कहा था, तो निभाना ही चाहिए.”

शिवकुमार के दबाव की राजनीति

शिवकुमार बीते हफ्तों में बेहद मुखर, पर बयानबाज़ी में संयमित नज़र आए हैं. बिना सीधे कुछ कहे लगातार अपने समर्थकों को संकेत दे रहे हैं कि समय आ गया है कि हाईकमान वादा निभाए. उनके रहस्यमयी पोस्ट और बयानों ने पार्टी के भीतर उनकी दबी हुई नाराज़गी को सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बना दिया है.

सिद्धारमैया का पलट-वार

सिद्धारमैया बार-बार यह दोहरा रहे हैं कि उनकी निष्ठा हाईकमान के आदेश से ऊपर नहीं. उन्होंने खुले तौर पर कहा है कि चाहे जो भी हो अंतिम निर्णय सोनिया–राहुल–खड़गे का ही माना जाएगा. यह संदेश साफ है कि वह पीछे हटने के लिए तैयार नहीं, पर टकराव भी नहीं चाहते.४

दिल्ली में नाश्ते पर बातचीत, पर क्या निकलेगा हल?

हाईकमान के निर्देश के बाद सिद्धारमैया ने शिवकुमार को शनिवार सुबह नाश्ते पर बुलाया. दोनों के बीच बातचीत होगी, लेकिन असल मोड़ तभी आएगा जब इन दोनों के बयान से ज्यादा दिल्ली दरबार की चुप्पी टूटेगी.

2024 की तैयारी पर संकट का साया

कर्नाटक कांग्रेस अगले चुनाव से पहले अपनी यूनिट को स्थिर करना चाहती है. आलाकमान के सामने चुनौती है कि दोनों नेताओं को खुश रखना, संगठन बचाना और जनता के सामने मतभेदों को बाहर न आने देना. लेकिन अब शिवकुमार को नज़रअंदाज़ करना लगभग असंभव हो गया है.

कौन बनेगा मुख्यमंत्री?

दोनों गुटों के समर्थक लगातार खुले तौर पर सरकार गिरने, नेतृत्व बदलने और वादा निभाने की मांग कर रहे हैं. इससे सरकार की स्थिरता को लेकर संशय बढ़ रहा है, जो कांग्रेस की छवि पर भी असर डाल सकता है.

अंतिम फैसला दिल्ली का

पूरे घटनाक्रम का मूल प्रश्न यही है कि क्या कांग्रेस आलाकमान 2023 के कथित वादे को मान्यता देगा? या फिर पार्टी राजनीतिक मजबूरियों के चलते मौजूदा व्यवस्था को ही जारी रखेगी? दिल्ली की बैठक अब सिर्फ समाधान नहीं, बल्कि कांग्रेस की विश्वसनीयता का इम्तिहान बन चुकी है.

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