क्या है आर्टिकल 337 जिसकी वजह से राहुल गांधी पर मंडराया जेल जाने का खतरा, ये है बड़ी वजह
Rahul Gandhi News: जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत 2 साल या उससे अधिक की सजा होने पर राहुल गांधी की सांसदी जा सकती है. यदि कोर्ट में यह साबित होता है कि उन्होंने वोटर लिस्ट से जुड़ा कोई जालसाजी की है तो धारा 337 के तहत उन पर केस चल सकता है. दोषी साबित होने पर उन्हें 7 साल तक की जेल, जुर्माना और सांसद पद गंवाने का खतरा भी हो सकता है.
Rahul Gandhi Controversy: चुनाव आयोग मतदाता सूची में हेरफेर और चुनावी प्रक्रियाओं में अनियमितताओं को लेकर लंबे अरसे से कांग्रेस सासंद राहुल गांधी के निशाने पर है. वह कई बार चुनाव आयोग पर केंद्र का पक्ष लेने और उसी के इशारे पर काम करने का भी आरोप लगा चुके हैं. राहुल गांधी बिहार में चुनाव आयोग द्वारा संचालित 'एसआईआर' को लेकर ईसी (EC) के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए हैं. इस बीच उन्होंने कर्नाटक में डबल वोटिंग का मुद्दा भी उठाया था, लेकिन इस मामले में चुनाव आयोग द्वारा कानूनी स्टैंड लेने के बाद से वह फंसते नजर आ रहे हैं. चुनाव आयोग ने उनसे सबूत मांगे हैं.
चुनाव आयोग के इस रुख के बाद राहुल गांधी पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 337 के तहत जेल जाने का खतरा मंडरा रहा है. यही वजह है कि लोग यह जानना चाहते हैं कि आर्टिकल 337 क्या है? इसकी कानूनी महत्ता क्या है? राहुल गांधी के खिलाफ ये मामला क्यों चर्चा में है? भविष्य में इसके क्या नतीजे हो सकते हैं और राहुल गांधी पर इसका कैसा असर होगा?
राहुल गांधी बड़ा दावा
दरअसल, कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कर्नाटक में डबल वोटिंग मुद्दा उठाया था. उन्होंने चुनाव आयोग के रिकॉर्ड हवाला देते हुए दावा किया था कि शगुन रानी नाम की एक महिला के पास दो-दो वोटर आईडी कार्ड हैं. चुनाव आयोग के दस्तावेज के अनुसार शगुन रानी ने दो बार वोटिंग किया. ऐसा इसलिए कि पोलिंग बूथ ऑफिसर का टिक मार्क लगा है, जो यह साबित करता है कि शगुन रानी ने दो बार वोट किया. अब यही राहुल गांधी के गले की फांस बनता नजर आ रहा है.
नोटिस जारी, EC ने मांगे सबूत
दूसरी तरफ चुनाव आयोग का कहना है कि यह पूरी कहानी ही राहुल गांधी के दावों के उलट है. कर्नाटक के चीफ इलेक्शन कमिश्नर ने राहुल गांधी को इस मुद्दे पर नोटिस जारी किया है. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी से पूछा है कि जो दावा आपने किया है, उसका सबूत दीजिए. कर्नाटक के मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है कि हमने जो जांच की है, उसके मुताबिक शगुन रानी नाम की महिला ने दो वार वोट नहीं किया. अब सवाल यह है कि यदि राहुल गांधी का दावा गलत पाया गया तो क्या होगा? बताया जा रहा है कि राहुल गांधी पर आर्टिकल 337 के तहत कार्रवाई हो सकती है.
BNS की धारा 337 है क्या?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 337 एक गंभीर अपराध से संबंधित है. जब भी कोई व्यक्ति सरकारी दस्तावेज या कोर्ट रिकॉर्ड की जालसाजी करता है तो उस पर ये धारा पुलिस लगा सकती है. जैसे कोई शख्स अगर वोटर आईडी, आधार कार्ड, जन्म-मृत्यु या विवाह रजिस्टर, सरकारी प्रमाण पत्र, कोर्ट की कार्यवाही के रिकॉर्ड, पावर ऑफ अटॉर्नी जैसे दस्तावेज से छेड़छाड़ यानी उसे गैर कानूनी तरीके से बदलने की कोशिश या सरकारी संस्था या अफसरों की छवि खराब करे, तो वो इस नियम के तहत सजा का पात्र माना जाएगा. चुनाव आयोग के मुताबिक अगर राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के दस्तावेज को गलत तरह से पेश किया है.
बीएनएस की धारा 337 के तहत दोषी पाए जाने पर संबंधित शख्स को नियमानुसार तय अवधि के लिए सात साल जेल की सजा हो सकता है. उस पर आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है. इस धारा का उल्लंघन गैर जमानती अपराध है. प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट इस तरह के मामले की सुनवाई कर सकता है.
क्या कहता है कानून?
बीएनएस की धारा 337 कहता है कि यदि कोई व्यक्ति ऐसे किसी डॉक्यूमेंट को जाली साबित करने में दोषी पाया जाता है, चाहे वह डॉक्यूमेंट कागजी हो या इलेक्ट्रॉनिक, तो उसे 7 साल तक की कठोर कारावास की सजा दी जा सकती है. उस पर असीमित जुर्माना भी लगाया जा सकता है. कानून विशेषज्ञों के मुताबिक यह अपराध गैर-जमानती है. यानी दोषी पाए जाने पर गिरफ्तारी के बाद कोर्ट से ही जमानत लेनी होगी.
सियासी करियर पर कितना पड़ेगा असर?
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत 2 साल या उससे अधिक की सजा होने पर संसद या विधानसभा की सदस्यता जा सकती है. राहुल गांधी के मामले में यदि जांच और कोर्ट में यह साबित होता है कि उन्होंने वोटर लिस्ट से जुड़ा कोई जाली डॉक्यूमेंट बनाया या इस्तेमाल किया, तो धारा 337 के तहत उन पर केस चल सकता है. दोषी साबित होने पर उन्हें 7 साल तक की जेल, जुर्माना, और सांसद पद गंवाने का खतरा भी हो सकता है. वास्तव में ऐसा हुआ तो उन्हें चुनाव लड़ने से भी वंचित किया जा सकता है.
चुनाव आयोग को करना होगा ये काम
इस मामले राहुल गांधी को सजा तभी संभव है, जब चुनाव आयोग कोर्ट में यह तय करे कि डॉक्यूमेंट जान बूझकर जाली बनाया गया या सिर्फ गलती से शामिल हुआ. सबूत की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष पर होगी. दोष साबित होने पर सजा और जुर्माने की मात्रा अदालत तय करेगी.





