जब नहीं थे पेड़-पौधे तो क्या था ऑक्सीजन का सोर्स? समुद्र की गहराइयों में छुपा हमारा फ्यूचर!
पेड़-पौधों से पहले पृथ्वी पर ऑक्सीजन की कमी नहीं थी. समुद्र की गहराई में जीवित रहने वाले जीवों ने कैसे किया इसका इस्तेमाल, और अब यह हमारी जिंदगी में क्या बदलाव ला सकता है?

अगर आप सोचते हैं कि ऑक्सीजन सिर्फ पेड़-पौधे से मिलती है, तो शायद आप गलत सोचते हैं. बचपन से यही सिखाया गया है कि पेड़-पौधे ऑक्सीजन का मेन सोर्स हैं, लेकिन जब पृथ्वी पर हरे-भरे पेड़-पौधे नहीं थे, तब भी ऑक्सीजन का कोई सोर्स जरूर रहा होगा? अगर ऐसा नहीं होता, तो समुद्र की गहराइयों में रहने वाले जीवों और दूसरे ऑर्गनिज़म कैसे सांस लेते थे?
असल में, समुद्र की गहराइयों में कुछ यूनिक जीवों ने ऑक्सीजन के लिए एक अलग तरीका अपनाया है. वहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती, तो इन जीवों ने केमिकल रिएक्शन के जरिए ऑक्सीजन बनाई है, जिसे ‘केमोसिंथेसिस’ कहते हैं. इस प्रोसेस से समुद्र में रहने वाले जीव ऑक्सीजन लेते हैं और अपना जीवन बनाए रखते हैं.
ऑक्सीजन के पहले सोर्स: पौधों से पहले की पृथ्वी
बहुत समय पहले, जब पृथ्वी पर बड़े पौधे नहीं थे, तब वातावरण में ऑक्सीजन का लेवल काफी कम था. शुरुआती लाइफ जैसे बैक्टीरिया और अणु बिना ऑक्सीजन के ही जी रहे थे. इन्हें 'एरोबिक' (oxygen-free) लाइफ कहा जाता था, और इनकी एनर्जी का सोर्स सूरज की रोशनी या किसी केमिकल रिएक्शन से आता था. इन सिंपल जीवों ने बहुत पहले ऑक्सीजन बनाने के तरीके खोजे थे.
तब एक खास प्रोसेस, जिसे ‘फोटोसिंथेसिस’ कहते हैं, ने अपनी शुरुआत की. पृथ्वी पर पहली बार समुद्र में मौजूद माइक्रोऑर्गनिज़म ने सूरज की रोशनी, पानी और CO2 से ऑक्सीजन बनाना शुरू किया. इसे 'साइनोबैक्टीरिया' ने सबसे पहले किया, और धीरे-धीरे समुद्र में रहने वाले छोटे जीवों के लिए यह एक जरूरी प्रोसेस बन गया. इन छोटे जीवों ने ऑक्सीजन रिलीज करना शुरू किया, जिससे समुद्र में और बाद में पृथ्वी के एटमॉस्फियर में बदलाव आना शुरू हुआ.
समुद्र के जीव: गहरे पानी में ऑक्सीजन का रहस्य
समुद्र की गहराइयों में जिंदगी कुछ अलग तरीके से चलती है. जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाती, वहां पेड़-पौधों की तरह फोटोसिंथेसिस करने का सवाल ही नहीं उठता. तो क्या गहरे समुद्र में रहने वाले जीवों के पास कोई और तरीका था? हाँ, ये जीव 'केमोसिंथेसिस' नामक प्रोसेस का इस्तेमाल करते हैं. यह वही तरीका है, जिसमें जीव किसी रासायनिक पदार्थ, जैसे कि हाइड्रोजन सल्फाइड, से ऊर्जा और ऑक्सीजन प्रोडूस करते हैं.
समुद्र की गहराइयों में मौजूद ज्वालामुखी के पास रहने वाले जीवों के पास केमिकल एनर्जी होती है. ये एनर्जी उनके लिए एक लाइफलाइन बन जाती है, क्योंकि यहां कोई सूरज की रोशनी नहीं होती. इस प्रोसेस से निकलने वाली ऑक्सीजन न सिर्फ इन जीवों के लिए जरूरी है, बल्कि यह समुद्र के लाइफ सर्कल को बनाए रखने के लिए भी अहम है.
समुद्र में ऑक्सीजन का प्रोडक्शन: कैसे चलता है यह सब?
समुद्र में मौजूद माइक्रोऑर्गनिज़म जैसे कि 'फाइटोप्लांकटन' और कुछ दूसरे समुद्री पौधे फिर भी एक बड़ी भूमिका निभाते हैं. ये माइक्रोऑर्गनिज़म समुद्र की ऊपरी परतों में रहते हैं, जहां सूरज की रोशनी पहुंचती है. ये फोटोसिंथेसिस करके ऑक्सीजन बनाते हैं, और यह ऑक्सीजन न सिर्फ समुद्र के जीवों के लिए, बल्कि हमारे लिए भी बहुत जरूरी है. आपको जानकर हैरानी होगी कि समुद्र की इन छोटी-सी कोशिकाओं से पृथ्वी के एटमॉस्फियर में करीब 50% ऑक्सीजन का प्रोडक्शन होता है.
पृथ्वी पर ऑक्सीजन का रोल: कैसे बदलता है लाइफ?
समुद्र से ऑक्सीजन का प्रोडक्शन पौधों से पहले भी हो रहा था, लेकिन जब पहली बार धरती पर बड़े पौधे डेवलप हुए, तो ऑक्सीजन का लेवल आसमान तक पहुंचने लगा. पौधों ने भी फोटोसिंथेसिस करके ऑक्सीजन के प्रोडक्शन में योगदान देना शुरू किया, और तब से लेकर आज तक, यह प्रोसेस पृथ्वी पर लाइफ के लिए जरूरी बनी हुई है.
समुद्र के जीवों के पास जो केमिकल प्रोसेस हैं, वो उन्हें ऐसे कठिन कंडीशंस में भी लाइफ जीने का मौका देती हैं, जहां ऑक्सीजन का लेवल बहुत कम होता है. ये जीवों की अद्भुत एबिलिटी है, और इन्हीं प्रोसेस को समझकर हम भी नई तकनीकें डेवलप कर सकते हैं जो हमें ऑक्सीजन बनाने में मदद कर सकती हैं, खासकर जब हम स्पेस में या दूसरे मुश्किल वातावरण में रहेंगे.
कैसे बदल सकता है यह हमारी दुनिया?
समुद्र के गहरे हिस्सों में होने वाली इन प्रोसेस से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं. अगर हम इन तरीकों को समझने और डेवलप करने में कामयाब होते हैं, तो यह हमारे लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है. मान लीजिए, अगर हम किसी दूसरे ग्रह पर बसी दुनिया में रहते हैं, जहां न तो सूरज की रोशनी पहुंचती है, न ही वहां कोई पौधे होते हैं, तो ऐसे में इस 'केमोसिंथेसिस' और दूसरी जैविक प्रोसेस को अपनाकर हम लाइफ के लिए जरूरी ऑक्सीजन बना सकते हैं.
यह भी हो सकता है कि इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हमारे समुद्री मिशन्स या गहरे पानी में चल रहे रिसर्च में किया जा सके, जहां हम लंबी अवधि तक सबमरीन या दूसरे डिवाइसेज़ में रहकर ऑक्सीजन का प्रोडक्शन कर सकें.
समुद्र में रहने वाले जीवों की तरह, अगर हम भी इन प्रोसेस को समझकर लागू कर पाए, तो यह न सिर्फ हमारी धरती पर लाइफ के लिए फायदेमंद होगा, बल्कि यह स्पेस ट्रैवल और दूसरी मुश्किलों का सामना करने में भी हमारी मदद कर सकता है.