Begin typing your search...

बजट इकोनॉमिक्‍स को लेकर क्या थी महात्मा गांधी की सोच? स्वदेशी और खादी के थे पक्षधर

महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर उनके आर्थिक दृष्टिकोण को समझना महत्वपूर्ण है. गांधीजी ने आत्मनिर्भरता, स्वदेशी और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया. उनका मानना था कि विकास का असली उद्देश्य मानवता और खुशहाली होना चाहिए, न कि केवल भौतिक संपत्ति. उन्होंने गरीबों और अमीरों के बीच असमानता को समाप्त करने का आह्वान किया. उनका सपना था 'हर हाथ को काम'.

बजट इकोनॉमिक्‍स को लेकर क्या थी महात्मा गांधी की सोच? स्वदेशी और खादी के थे पक्षधर
X
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 30 Jan 2025 7:00 AM IST

भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि आज पूरे देश में मनाई जा रही है. यह दिन खास है क्योंकि परसों यानी 1 फरवरी को देश का बजट पेश होगा. ऐसे में यह समझना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि गांधीजी ने अर्थव्यवस्था के बारे में किस तरह की सोच रखी थी.

गांधीजी का सपना था कि देश की अर्थव्यवस्था ऐसी हो, जिसमें हर गांव में उद्योग हों, समाज में अमीर-गरीब की असमानता खत्म हो, और हर व्यक्ति को रोजगार मिले. उन्होंने जो आर्थिक विचार प्रस्तुत किए थे, वे आज भी प्रासंगिक हैं.

समाज का हो लाभ

गांधीजी का मानना था कि अर्थव्यवस्था का लक्ष्य सिर्फ संपत्ति जुटाना नहीं, बल्कि मानवता और खुशहाली की ओर बढ़ना होना चाहिए. उनके अनुसार, जब भी कोई कार्य शुरू करें, यह ध्यान रखें कि उसका लाभ समाज के सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति तक पहुंचे. उनके विचार में, समावेशी विकास ही सही मार्ग है. ठीक वैसे ही जैसे आज की सरकारें 'सबका साथ, सबका विकास' का मंत्र देती हैं.

समग्र प्रगति के थे पक्षधर

गांधी जी का एक प्रसिद्ध कथन था 'सादा जीवन, उच्च विचार'. गांधीजी भौतिक समृद्धि के खिलाफ नहीं थे, लेकिन उन्होंने हमेशा कहा कि भौतिक विकास का लक्ष्य केवल खुशहाली होना चाहिए, न कि सिर्फ धन की बढ़ोतरी. वे ऐसे समाज में विश्वास करते थे, जहां समग्र प्रगति के साथ-साथ सामाजिक न्याय भी हो. उनका कहना था कि अगर विकास सिर्फ एक वर्ग तक ही सीमित रहे, तो वह विकास अधूरा है.

आत्मनिर्भर भारत की कल्पना

गांधीजी का एक प्रमुख विचार था अपरिग्रह और स्वराज. अपरिग्रह का अर्थ था जरूरत से अधिक संपत्ति का संग्रहण न करना, जबकि स्वराज का मतलब था आत्मनिर्भरता और विकेंद्रीकरण. उनका मानना था कि जब तक लोग आत्मनिर्भर नहीं होंगे, तब तक वे अपने जीवन के सही दिशा में निर्णय नहीं ले पाएंगे. स्वराज की परिकल्पना में हर व्यक्ति को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए.

स्वदेशी आंदोलन

स्वदेशी आंदोलन ने गांधीजी को खास पहचान दिलाई थी. उन्होंने यह महसूस किया कि ब्रिटिश राज में भारत का कच्चा माल बाहर भेजा जाता था और फिर वही माल तैयार कर भारत में बेचा जाता था, जिससे भारत को आर्थिक नुकसान हो रहा था. गांधीजी ने स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया, ताकि देश आत्मनिर्भर बने और धन का बहाव बाहर जाने के बजाय देश के विकास में लगे. उन्होंने कहा था कि खादी गरीबी से मुक्ति का साधन है.

कुटीर उद्योग को मिले बढ़ावा

गांधीजी का मानना था कि कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए, क्योंकि देश में गांवों की अधिकता है और शहरों में कम जनसंख्या. उन्होंने सोचा था कि छोटे-छोटे उद्योग जो गांव-गांव में स्थापित हों, वे बेरोजगारी को कम कर सकते हैं और देश को सशक्त बना सकते हैं. उनका कहना था कि पूंजीवादी, मशीन आधारित उद्योगों के बजाय गांवों में छोटे-छोटे उद्योगों की स्थापना जरूरी है, जो स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल करें और लोगों को रोजगार दें.

आर्थिक असमानता हो ख़त्म

गांधीजी का उद्देश्य था कि देश में आर्थिक असमानता को खत्म किया जाए. उनका मानना था कि जब तक देश में चंद अमीरों और लाखों गरीबों के बीच खाई बनी रहेगी, तब तक कोई शासन सफल नहीं हो सकता. उन्होंने यह भी कहा था कि स्वतंत्र भारत में गरीबों को भी वही अधिकार मिलेंगे जो देश के सबसे अमीर व्यक्ति को प्राप्त होंगे. उनका सपना था कि हर गांव और छोटे शहर को आत्मनिर्भर बनाया जाए और वहां छोटे उद्योगों के माध्यम से रोजगार सृजित किया जाए. उनका मंत्र था 'हर हाथ को काम मिले' यानी हर व्यक्ति को काम दिया जाए ताकि देश का प्रत्येक नागरिक खुशहाल और सम्मानजनक जीवन जी सके.

India News
अगला लेख