क्रिकेट हो या कुश्ती, सब पर लगेगी लगाम! अब BCCI भी नहीं बचेगा जवाबदेही से... जानें क्या है नया नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल
भारत सरकार ने संसद में "नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल" पेश करने जा रही है, जिसमें अब BCCI समेत सभी खेल संस्थाओं को जवाबदेह बनाया जाएगा. बिल के तहत राष्ट्रीय खेल बोर्ड और पंचाट का गठन होगा, जो चुनावी अनियमितताओं, वित्तीय गड़बड़ियों और चयन विवादों की निगरानी करेगा. इसका मकसद खिलाड़ियों का कल्याण और खेल प्रशासन में पारदर्शिता लाना है.

भारत सरकार अब देश के खेल संगठनों को ‘खेल’ के दायरे से निकालकर जवाबदेही के दायरे में लाने जा रही है. लंबे समय से खिलाड़ियों के अधिकारों की अनदेखी, चुनाव में धांधली और चयन में पक्षपात जैसे मुद्दों को नजरअंदाज किया जाता रहा है. लेकिन अब “नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल” के जरिए सरकार इन संगठनों की संरचना और प्रक्रिया पर स्पष्ट नियम थोपने जा रही है.
अब तक बीसीसीआई अपनी वित्तीय स्वतंत्रता का तर्क देकर किसी भी सरकारी निगरानी से खुद को अलग बताता रहा है. लेकिन क्रिकेट के ओलंपिक में शामिल होने के बाद वह भी खेल प्रशासनिक ढांचे का हिस्सा बनेगा. यह पहली बार होगा जब बीसीसीआई जैसे ताकतवर निकाय को कानूनी रूप से जवाबदेह बनाया जाएगा. भले ही वो सरकार से फंडिंग न ले.
क्या है नया नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल?
नेशनल स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल एक प्रस्तावित कानून है जिसका उद्देश्य भारत के सभी राष्ट्रीय खेल महासंघों (NSFs) और खेल संस्थाओं में पारदर्शिता, जवाबदेही और खिलाड़ी-केंद्रित प्रशासन सुनिश्चित करना है. इस बिल के तहत एक राष्ट्रीय खेल बोर्ड (NSB) और राष्ट्रीय खेल पंचाट (National Sports Tribunal) का गठन किया जाएगा जो चुनावी प्रक्रियाओं, वित्तीय गड़बड़ियों और चयन विवादों की निगरानी करेगा. अब BCCI जैसे स्वायत्त निकायों को भी इस कानून के तहत मान्यता लेनी होगी, भले ही वे सरकार से वित्तीय मदद न लेते हों. पंचाट का फैसला अंतिम होगा और केवल सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगा. साथ ही, खिलाड़ियों के हितों की रक्षा और खेल संघों की कार्यप्रणाली को दुरुस्त करने के लिए यह बिल एक महत्वपूर्ण बदलाव की शुरुआत मानी जा रही है.
राष्ट्रीय खेल बोर्ड: सरकार की नई आंखें
विधेयक के तहत स्थापित होने वाला “नेशनल स्पोर्ट्स बोर्ड (NSB)” खेल संघों के चुनाव, प्रशासन और वित्तीय मामलों पर नज़र रखेगा. बोर्ड यह तय करेगा कि किसी संस्था को मान्यता दी जाए या निलंबित किया जाए. यह वही व्यवस्था है जो पहले अदालतों या आंतरिक समितियों के भरोसे थी. अब यह शक्ति एक सशक्त सरकारी निकाय को सौंपी जाएगी.
खेल पंचाट में हल होंगे खेल से जुड़े विवाद
खेल से जुड़े विवाद, जैसे चयन में गड़बड़ी या आचार संहिता के उल्लंघन, अब अदालतों की बजाय “राष्ट्रीय खेल पंचाट” में हल किए जाएंगे. यह एक स्वतंत्र न्यायिक मंच होगा जिसकी सुनवाई तेज़, प्रभावी और खिलाड़ियों के अनुकूल होगी. इससे खिलाड़ियों का समय और करियर बचेगा, जो अब तक कानूनी जाल में उलझते रहे हैं.
प्रशासन से पहले खिलाड़ी
यह विधेयक सिर्फ प्रशासनों को कसा नहीं जा रहा, यह खिलाड़ियों को भी सशक्त बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है. निष्पक्ष चयन, सुरक्षित प्रशिक्षण वातावरण, पारदर्शी शिकायत तंत्र और कोचिंग सिस्टम को सुधारना इस कानून का मूल उद्देश्य है. पहली बार खेलनीति में खिलाड़ी को केंद्र में रखा गया है, न कि केवल पदाधिकारियों को.
आईओसी के साथ संतुलन साधा गया
पहले आशंका जताई जा रही थी कि यह विधेयक अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) के चार्टर का उल्लंघन करेगा और भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध झेलना पड़ सकता है. लेकिन खेल मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि IOC से सलाह लेकर ही ड्राफ्ट तैयार किया गया है और यह वैश्विक मानकों के अनुकूल है. इससे 2036 ओलंपिक मेज़बानी की संभावनाओं पर कोई संकट नहीं आएगा.
सीमित उम्र, स्पष्ट योग्यता
अब 75 वर्ष तक के प्रशासक चुनाव लड़ सकेंगे, बशर्ते अंतरराष्ट्रीय निकाय आपत्ति न करे। चयन समितियों में द्रोणाचार्य, अर्जुन, खेल रत्न जैसे सम्मान प्राप्त खिलाड़ियों को भी शामिल किया जाएगा. यानी अब खेलों में सिर्फ राजनीति नहीं, खेल के अनुभव और सम्मान को भी प्रतिनिधित्व मिलेगा.
कुर्सी नहीं, जिम्मेदारी तय होगी
यह विधेयक केवल कुर्सियां भरने का नहीं बल्कि जवाबदेही तय करने का ढांचा है. अब अगर कोई खेल संघ समय पर चुनाव न कराए, वित्तीय गड़बड़ी करे या खिलाड़ियों की उपेक्षा करे, तो उसकी मान्यता खत्म हो सकती है. यह भारत के खेल जगत में पारदर्शिता और संरचनात्मक सुधार की दिशा में सबसे बड़ा कदम साबित हो सकता है.