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गुजरात में अनोखी ‘घर वापसी’ : 11 साल बाद 300 लोग लौटे अपने गांव, पुलिस ने मिटाई दुश्मनी

गुजरात के बनासकांठा जिले में 11 साल पहले हत्या के एक मामले के बाद ‘चडोतारू’ परंपरा के तहत गांव छोड़ने वाले कोदारवी समाज के 300 लोग अपने घर लौट आए. पुलिस की पहल पर पंचायत समझौता हुआ और पुनर्वास के लिए 70 लाख रुपये जुटाए गए. जमीन को खेती योग्य बनाया गया और घरों का निर्माण शुरू हो गया. यह पहल ASP सुमन नाला और SP अक्षयराज मकवाना के प्रयास से संभव हुई.

गुजरात में अनोखी ‘घर वापसी’ : 11 साल बाद 300 लोग लौटे अपने गांव, पुलिस ने मिटाई दुश्मनी
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( Image Source:  Screengrab )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 18 July 2025 9:34 AM

गुजरात के बनासकांठा जिले में इंसाफ की एक पुरानी आदिवासी परंपरा के चलते 11 साल पहले 29 परिवारों को अपने ही गांव से बेदखल होना पड़ा था. यह कहानी शुरू होती है साल 2014 से, जब एक मर्डर केस ने मोटा पिपोदरा गांव में कोदारवी समाज के 300 लोगों को ‘चडोतारू’ नामक रिवाज के तहत रातों-रात गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया. इस प्रथा के अनुसार, हत्या के मामले में दोषी परिवार या तो पीड़ित परिवार को भारी मुआवजा देता है या फिर पूरा कुटुंब गांव से निर्वासित हो जाता है. कोदारवी समाज ने दूसरे विकल्प को चुना और 11 साल तक परदेस की जिंदगी जी.

इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इन वर्षों में ये लोग कभी खेतिहर मजदूर बने, तो कभी सूरत में डायमंड पॉलिशिंग यूनिट्स में काम करते रहे. मगर किस्मत बदली एक महिला, अलका, और एक संवेदनशील IPS अधिकारी के बीच हुई एक साधारण बातचीत से. इस बातचीत ने पुलिस प्रशासन को झकझोर दिया और शुरू हुआ पुनर्वास का सबसे बड़ा अभियान. आखिरकार 20 दिनों की अथक कोशिशों, बातचीत और पंचायत समझौतों के बाद गुरुवार को ये परिवार अपने गांव लौटे. इस मौके पर गुजरात के गृह राज्य मंत्री हर्ष सांघवी भी मौजूद थे. यह सिर्फ ‘घर वापसी’ नहीं थी, बल्कि 11 साल पुराने जख्म भरने की कोशिश थी.

कैसे शुरू हुई निर्वासन की कहानी?

साल 2014 में मोटा पिपोदरा गांव में एक पार्टी के दौरान विवाद हुआ और हत्या का मामला सामने आया. आरोपी कोदारवी समाज का था. इसके बाद ‘चडोतारू’ परंपरा के तहत समाज को दो विकल्प मिले - या तो पीड़ित पक्ष को ‘खून का पैसा’ दें या गांव छोड़ दें. परिवारों ने दूसरा रास्ता चुना और रातों-रात 29 परिवारों के 300 लोग गांव छोड़कर अलग-अलग जगहों पर जा बसे.

गांव से दूर, संघर्ष की जिंदगी

गांव में खेती की जमीन छोड़कर ये लोग सूरत, पालनपुर और दूसरे इलाकों में मजदूरी करने लगे. कई डायमंड पॉलिशिंग यूनिट्स में काम करने लगे. उनकी 8.5 हेक्टेयर जमीन बंजर हो गई. गरीबी, बेघरपन और असुरक्षा इनकी जिंदगी का हिस्सा बन गई.

एक बातचीत ने बदल दी किस्मत

ASP सुमन नाला ने अपनी कुक अलका से यूं ही पूछ लिया कि वह ससुराल क्यों नहीं जाती. अलका का जवाब था - “हमारा गांव छोड़ना पड़ा था.” यह सुनकर अफसर हैरान रह गईं और उन्होंने SP अक्षयराज मकवाना को जानकारी दी. इसके बाद शुरू हुआ पुलिस का सबसे बड़ा सामाजिक मिशन.

पुलिस ने संभाली कमान

सब-इंस्पेक्टर जे.आर. देसाई ने पूरी जानकारी जुटाई, पंचायत से बातचीत की और दोनों पक्षों में सुलह कराने की पहल की. 20 दिनों तक लगातार मीटिंग्स हुईं. पुलिस ने दोनों समाजों को आश्वस्त किया कि शांति बनी रहेगी.

हत्या का आरोपी पहले ही बरी

बातचीत के दौरान पुलिस को पता चला कि हत्या के केस में आरोपी को 2017 में बरी कर दिया गया था और वह पहले ही गांव लौट चुका था, जबकि बाकी 300 लोग अब भी दर-दर भटक रहे थे.

पुनर्वास के लिए पुलिस का मास्टर प्लान

पुलिस ने 8.5 हेक्टेयर जमीन को चिह्नित किया, मापी की और उसे फिर से खेती योग्य बनाया. दो नए घर बनाए जा चुके हैं. बाकी 27 परिवारों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना और NGOs की मदद से घर बनाए जाएंगे. पुलिस ने 70 लाख रुपये का फंड इकट्ठा किया - 30 लाख NGOs से और 40 लाख सरकारी योजनाओं से. चूंकि गांव दुर्गम क्षेत्र में है, वहां सड़क बनाने के लिए भी फंड जारी हुआ है.

गुरुवार को जब ये परिवार गांव लौटे, तो माहौल भावुक था. महिलाएं मिट्टी को चूम रही थीं, पुरुषों की आंखों में आंसू थे. 11 साल बाद अपने घर लौटना किसी सपने से कम नहीं था.

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