UCC लागू होना जरूरी, मुस्लिम महिला की संपत्ति पर हाईकोर्ट ने ये क्या कह दिया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकारों को यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) लागू करने की दिशा में कदम उठाने का सुझाव दिया है. अदालत का मानना है कि इससे जाति और धर्म की परवाह किए बिना भारत की सभी महिलाओं के लिए समानता का सपना साकार हो सकेगा. यह टिप्पणी मुस्लिम महिला की संपत्ति पर उत्तराधिकार से जुड़े एक मामले में की गई.

कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकारों को यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) लागू करने की दिशा में कदम उठाने का सुझाव दिया है. अदालत का मानना है कि इससे जाति और धर्म की परवाह किए बिना भारत की सभी महिलाओं के लिए समानता का सपना साकार हो सकेगा. यह टिप्पणी मुस्लिम महिला की संपत्ति पर उत्तराधिकार से जुड़े एक मामले में की गई.
4 अप्रैल को दिए गए आदेश में न्यायमूर्ति हंचटे संजीव कुमार ने यह बात उस स्थिति के संदर्भ में कही, जहां मृतक महिला की बहन को भाइयों की तुलना में कम हिस्सा मिला. उन्होंने कहा, 'इस मामले में मृतका शहनाज़ बेगम के दो भाई और एक बहन वादी हैं, लेकिन बहन को सिर्फ 'रेजिडुअरी' के रूप में हिस्सा मिलता है, न कि 'शेयरर' के तौर पर. यह भाई-बहन के बीच भेदभाव का उदाहरण है, जो हिंदू कानून में नहीं है. वहां भाई-बहनों को समान अधिकार प्राप्त हैं. यही समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को दर्शाता है.
UCC पर क्या बोले HC?
फैसले में कोर्ट ने कहा, "जैसे कि इस मामले में, मृतका शहनाज़ बेगम के दो भाई और एक बहन हैं. मुस्लिम कानून के अनुसार, बहन को भाई के बराबर हिस्सा नहीं मिलता – वह केवल 'residuary' हिस्सेदार होती है, न कि 'sharer'. यह भाई-बहन के बीच भेदभाव का उदाहरण है, जो हिंदू कानून में नहीं देखा जाता. वहां भाई-बहन को समान दर्जा और अधिकार प्राप्त हैं. इसलिए, यह उदाहरण यूनिफॉर्म सिविल कोड की आवश्यकता को दर्शाता है.'
महिला के पति ने दावा किया कि संपत्ति उन्होंने अपनी पत्नी के लिए अपने पैसे से खरीदी थी, इसलिए मृतका के भाई-बहन का उस पर कोई अधिकार नहीं बनता. जबकि भाई-बहनों ने इसे स्व-अर्जित संपत्ति बताया. कोर्ट ने पाया कि महिला और उनके पति दोनों शिक्षक थे और उन्होंने यह संपत्ति अपनी आय और पेंशन से संयुक्त रूप से खरीदी थी. मुस्लिम उत्तराधिकार कानून के अनुसार, महिला की मृत्यु के बाद उसके पति को 75% हिस्सा, दोनों भाइयों को 10-10% और बहन को सिर्फ 5% हिस्सा मिलना चाहिए.
कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का उल्लेख किया गया है और इसे लागू करना भारत को एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा. इससे महिलाओं को न्याय, समानता और अवसर प्राप्त होंगे और एकता, अखंडता और भाईचारे की भावना मजबूत होगी. कोर्ट ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि इस दिशा में ठोस कदम उठाया जाए.