दो कूबड़ वाले ऊंट लगाएंगे बॉर्डर पर गश्त, पाकिस्तान-चीन की निकल जाएगी हेकड़ी
दो कूबड़ वाले ऊंट का अत्यधिक ऊंचाई (15,000 फीट से अधिक) पर बोझा ढोने के लिए परीक्षण किया जा रहा हैं. लद्दाख के लेह में स्थित रक्षा उच्च उन्नतांश अनुसंधान संस्थान (DIHAR) इन जंगली ऊंटों को आज्ञाकारी पशु बनने के लिए प्रशिक्षित कर रहा है.

2-Humped Camels For Border Patrolling: अत्यधिक ऊंचाई, बिगड़े मौसम और पानी की कमी में पाकिस्तान और चीन से सटे भारत के बॉर्डर पर गश्त लगाने के लिए थार का जहाज तैयार है. दरअसल, बॉर्डर पर गश्त लगाने के लिए दो कूबड़ वाले ऊंट को ट्रेंड किया जा रहा है.
लद्दाख के लेह में स्थित रक्षा उच्च उन्नतांश अनुसंधान संस्थान (DIHAR) इन जंगली ऊंटों को आज्ञाकारी पशु बनने के लिए प्रशिक्षित कर रहा है. इन्हें बैक्ट्रियन ऊंट भी कहा जाता है. बैक्ट्रियन ऊंट बहुत ही मजबूत होते हैं. वे ऊंचाई पर जीवित रह सकते हैं. इसके साथ ही खास बात तो ये है कि वे लगभग दो सप्ताह तक बिना खाए रह सकते हैं.
150 का वजन उठा सकता है दो कूबड़ वाला ऊंट
मध्य एशिया में उन्हें बड़े पैमाने पर बोझ ढोने वाले जानवरों के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है और वे ठंडे, विरल वातावरण में आसानी से 150 किलोग्राम से अधिक भार उठा सकते हैं. पहाड़ों पर ड्रोन, क्वाडकॉप्टर और ऑल-टेरेन वाहनों या एटीवी की क्षमताएं अब तक नहीं पहुंच पाती है. ऐसे में दो कूबड़ वाले ऊंट का उपयोग करने की तैयारी की जा रही है.
ऊंट को किया जा रहा है ट्रेंड
लेह, लद्दाख में रिमाउंट वेटनरी कोर के कर्नल रविकांत शर्मा ने कहा कि पहले के समय में दो कूबड़ वाले ऊंटों का उपयोग सामान ढोने के लिए किया जाता था. लेकिन हाल के दिनों में उन्हें ट्रेंड करना जरूरी है, ताकि वह लोगों के आज्ञा का पालन कर सकें.' उन्होंने ये भी कहा कि विशेष रूप से अंतिम मील तक कनेक्टिविटी के लिए दोहरे कूबड़ वाले ऊंट एक अच्छा विकल्प हैं.
अंतिम मील तक जा सकता है ये ऊंट
भारतीय सेना की उत्तरी कमान ने कहा कि दो कूबड़ वाला ऊंट महत्वपूर्ण भार को अंतिम मील तक पहुंचाने और पठार के रेतीले इलाकों में घुड़सवार गश्त के लिए एक साधन प्रदान करता है. ऊंटों के उपयोग से स्थानीय लोगों के लिए रोजगार पैदा हो रहा है और इनके संरक्षण प्रयासों को मदद मिल रही है.