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1960 का मॉडल, 2026 की दुनिया... इकोनॉमिस्ट संजीव सान्याल ने शिक्षा मॉडल पर उठाए सवाल; क्या सच में UPSC है समय की बर्बादी?

UPSC समय की बर्बादी? अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने पारंपरिक शिक्षा मॉडल पर उठाए सवाल अर्थशास्त्री Sanjeev Sanyal ने UPSC और डिग्री-केंद्रित शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा किया है. उनका कहना है कि AI और तकनीक के दौर में पारंपरिक पढ़ाई पुरानी हो चुकी है. स्किल, अप्रेंटिसशिप और कम उम्र में काम शुरू करने की जरूरत क्यों बढ़ रही है, इस रिपोर्ट में विस्तार से पढ़ें.

1960 का मॉडल, 2026 की दुनिया... इकोनॉमिस्ट संजीव सान्याल ने शिक्षा मॉडल पर उठाए सवाल; क्या सच में UPSC है समय की बर्बादी?
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( Image Source:  X/sanjeevsanyal )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 31 Dec 2025 11:17 AM

भारत में UPSC जैसी परीक्षाओं को दशकों से सफलता, सम्मान और सुरक्षित भविष्य की गारंटी माना जाता रहा है. लाखों युवा सालों-साल किताबों में डूबकर एक ही परीक्षा की तैयारी करते हैं. लेकिन अर्थशास्त्री Sanjeev Sanyal का कहना है कि आज के दौर में सिर्फ जॉब सिक्योरिटी के लिए UPSC की तैयारी करना “समय की बर्बादी” बन चुका है. उनका तर्क है कि दुनिया तेजी से बदल चुकी है, लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था अब भी अतीत में अटकी हुई है.

सान्याल के मुताबिक, सरकारी नौकरी और डिग्री-केंद्रित सोच उस दौर में सही थी, जब विकल्प सीमित थे. 1960–70 के दशक में सरकारी सेवा ही सामाजिक सुरक्षा का सबसे मजबूत जरिया थी. लेकिन आज निजी क्षेत्र, स्टार्टअप्स, ग्लोबल रिमोट जॉब्स और फ्रीलांस इकॉनमी ने रोजगार की परिभाषा ही बदल दी है. इसके बावजूद छात्र अब भी उसी पुराने रास्ते पर चल रहे हैं.

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AI ने बदल दिया सीखने का पूरा तरीका

उन्होंने साफ कहा कि आज ज्ञान पाने के लिए क्लासरूम और लेक्चर ही इकलौता रास्ता नहीं हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑनलाइन कोर्स, यूट्यूब और इंटरएक्टिव प्लेटफॉर्म्स ने सीखने को आसान, सस्ता और तेज बना दिया है. ऐसे में रटने वाली पढ़ाई और एग्जाम-सेंट्रिक सिस्टम तेजी से अप्रासंगिक होता जा रहा है.

हर छह महीने में बदल रही टेक्नोलॉजी

सान्याल ने याद दिलाया कि यूनिवर्सिटी शिक्षा कभी सिर्फ समाज के एलीट वर्ग तक सीमित थी. 20वीं सदी में यह आम हुई, लेकिन अब इसकी संरचना सवालों के घेरे में है. चार-चार साल की डिग्री, वही पुराना सिलेबस और धीमी अकादमिक प्रक्रिया जबकि टेक्नोलॉजी हर छह महीने में बदल रही है.

टूट रही स्किल और डिग्री के बीच की दीवार

उनका कहना है कि पहले “स्किल” को लो-लेवल और “डिग्री” को हाई-लेवल माना जाता था. प्लंबर, टेक्नीशियन जैसे कामों को कमतर समझा गया, जबकि यूनिवर्सिटी शिक्षा को प्रतिष्ठा मिली. आज यह फर्क तेजी से खत्म हो रहा है. अब कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हाई-एंड स्किल सीखकर बेहतर कमाई कर सकता है.

नौकरी व पढ़ाई साथ-साथ क्यों नहीं?

सान्याल ने मौजूदा सिस्टम पर बड़ा सवाल उठाते हुए कहा कि युवाओं को 22–23 साल तक पढ़ाई में ही रोके रखना गलत है. उनका सुझाव है कि 18 साल की उम्र में ही युवाओं को काम शुरू करना चाहिए और डिग्री को “साइड में” जारी रखना चाहिए. इससे अनुभव, स्किल और आत्मनिर्भरता तीनों एक साथ विकसित होंगी.

इंडस्ट्री आगे, एकेडमिक दुनिया पीछे

उन्होंने कहा कि असली समस्या यह है कि इंडस्ट्री की रफ्तार अकादमिक संस्थानों से कहीं आगे निकल चुकी है. कॉलेज आज भी वही पढ़ा रहे हैं, जिसकी बाजार में मांग खत्म हो चुकी है. इसी वजह से डिग्रीधारी युवा भी स्किल गैप की समस्या से जूझ रहे हैं.

AI से डर नहीं, बदलाव को अपनाने की जरूरत

सान्याल मानते हैं कि AI बड़े पैमाने पर नौकरियां बदलेगा और कुछ खत्म भी करेगा, लेकिन यह खतरा नहीं बल्कि मौका है. AI उन लोगों को भी सक्षम बनाएगा जिनके पास बड़ी डिग्रियां नहीं हैं. जो लोग इसे जल्दी अपनाएंगे, वही खुद को अपग्रेड कर पाएंगे और भविष्य में टिक पाएंगे.

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