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जितना देश का बजट नहीं, उससे ज्‍यादा तो राज्‍यों पर है कर्ज का बोझ, 10 साल में तीन गुना बढ़ोतरी, इस राज्‍य ने ली है सबसे ज्‍यादा उधारी

भारत के 28 राज्यों पर कर्ज़ का बोझ 10 साल में तीन गुना बढ़कर 59.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जो उनकी कुल GSDP का 22.96% है. पंजाब, नागालैंड और पश्चिम बंगाल सबसे अधिक कर्ज़ग्रस्त राज्य हैं, जबकि ओडिशा, महाराष्ट्र और गुजरात पर सबसे कम बोझ है. कई राज्यों ने यह कर्ज़ पूंजीगत निवेश की बजाय राजस्व खर्च पर लगाया. CAG रिपोर्ट ने चेताया है कि इस रुझान से वित्तीय स्थिरता और विकास परियोजनाओं पर गंभीर असर पड़ सकता है.

जितना देश का बजट नहीं, उससे ज्‍यादा तो राज्‍यों पर है कर्ज का बोझ, 10 साल में तीन गुना बढ़ोतरी, इस राज्‍य ने ली है सबसे ज्‍यादा उधारी
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( Image Source:  Sora AI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 20 Sept 2025 4:28 PM IST

भारत के राज्यों की वित्तीय स्थिति पर एक गंभीर तस्वीर सामने आई है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की एक ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि 28 राज्यों का सार्वजनिक कर्ज़ पिछले एक दशक में 17.57 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 59.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. यह बढ़ोतरी तीन गुना से अधिक है और राज्यों की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव का संकेत देती है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह पहली बार है जब किसी आधिकारिक दस्तावेज़ में राज्यों की वित्तीय सेहत का पूरे दशक का तुलनात्मक विश्लेषण पेश किया गया है. रिपोर्ट शुक्रवार को राज्य वित्त सचिवों के सम्मेलन में CAG के संजय मूर्ति द्वारा जारी की गई.

राज्यों का कुल कर्ज़ और जीएसडीपी अनुपात

रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 के अंत तक 28 राज्यों का कुल सार्वजनिक कर्ज़ 59,60,428 करोड़ रुपये था. यह उनके संयुक्त सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) - 2,59,57,705 करोड़ रुपये - का 22.96 प्रतिशत है. 2013-14 में यह अनुपात 16.66 प्रतिशत था. यानी, सिर्फ 10 वर्षों में राज्यों का कर्ज़-से-GSDP अनुपात लगभग 6.3 प्रतिशत अंक बढ़ गया. यह रुझान दर्शाता है कि राज्यों का वित्तीय प्रबंधन राजस्व वृद्धि के बजाय कर्ज़ पर अधिक निर्भर हो रहा है.

किन राज्यों पर सबसे ज़्यादा कर्ज़?

कर्ज़-से-GSDP अनुपात में सबसे ऊपर पंजाब है, जहां यह आंकड़ा 40.35 प्रतिशत दर्ज किया गया. इसके बाद नगालैंड (37.15 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (33.70 प्रतिशत) का स्थान है. इसके उलट, सबसे कम अनुपात वाले राज्य हैं - ओडिशा (8.45 प्रतिशत), महाराष्ट्र (14.64 प्रतिशत) और गुजरात (16.37 प्रतिशत).

31 मार्च 2023 तक 8 राज्यों का कर्ज़ उनकी GSDP का 30 प्रतिशत से अधिक था, 6 राज्यों का 20 प्रतिशत से कम और 14 राज्यों का 20–30 प्रतिशत के बीच.

राष्ट्रीय जीडीपी पर प्रभाव

2022-23 में राज्यों का कुल कर्ज़ देश की जीडीपी का 22.17 प्रतिशत था. उस समय भारत की जीडीपी 2,68,90,473 करोड़ रुपये रही. यानी राज्यों का कर्ज़ न केवल उनकी खुद की अर्थव्यवस्था बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर रहा है.

कर्ज़ के स्रोत

रिपोर्ट में राज्यों के सार्वजनिक कर्ज़ को विभिन्न हिस्सों में बाँटा गया है. इसमें शामिल हैं:

  • खुले बाज़ार से उधारी (सिक्योरिटी, ट्रेज़री बिल, बॉन्ड)
  • भारतीय स्टेट बैंक और अन्य बैंकों से ऋण
  • भारतीय रिज़र्व बैंक से Ways and Means Advances (WMA)
  • वित्तीय संस्थाओं जैसे LIC और नाबार्ड से लिए गए ऋण

राजस्व बनाम कर्ज़ का बोझ

CAG रिपोर्ट बताती है कि राजस्व प्राप्तियों के अनुपात में राज्यों का कर्ज़ 2014-15 में 128 प्रतिशत से लेकर 2020-21 में 191 प्रतिशत तक रहा. यानी, कई राज्यों ने जितनी कमाई की उससे लगभग दोगुना कर्ज़ ले लिया. औसतन, सार्वजनिक कर्ज़ राज्यों की कुल गैर-कर्ज़ प्राप्तियों का 150 प्रतिशत रहा है. वहीं, कर्ज़-से-GSDP अनुपात 17–25 प्रतिशत के बीच रहा और औसत 20 प्रतिशत बना. कोविड वर्ष 2020-21 में यह अनुपात अचानक 21 से बढ़कर 25 प्रतिशत हो गया, क्योंकि उस समय GSDP में भारी गिरावट दर्ज की गई.

केंद्र सरकार की भूमिका

2020-21 से 2022-23 के बीच कर्ज़ में वृद्धि का एक बड़ा कारण केंद्र सरकार से मिलने वाले बैक-टू-बैक लोन थे. ये लोन जीएसटी मुआवजा घाटे को पूरा करने और पूंजीगत व्यय के लिए राज्यों को विशेष सहायता के तौर पर दिए गए.

कर्ज़ का गलत इस्तेमाल

रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि सरकार को उधारी सिर्फ निवेश या पूंजीगत खर्च के लिए करनी चाहिए, न कि राजस्व खर्च (ऑपरेटिंग कॉस्ट) के लिए. लेकिन वास्तविकता यह है कि 11 राज्यों - आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मिज़ोरम, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल - ने अपने कर्ज़ का इस्तेमाल वर्तमान खर्च पूरे करने के लिए किया. उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश में पूंजीगत खर्च कुल उधारी का सिर्फ 17 प्रतिशत रहा. पंजाब में यह 26 प्रतिशत और हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में लगभग 50 प्रतिशत रहा.

वित्तीय स्थिरता के लिए ख़तरा

CAG रिपोर्ट साफ़ तौर पर इशारा करती है कि यदि राज्यों ने कर्ज़ का यह असंतुलित इस्तेमाल जारी रखा, तो भविष्य में वे वित्तीय संकट का सामना कर सकते हैं. उच्च ब्याज दरों के कारण ऋण सेवा का बोझ लगातार बढ़ेगा और विकास परियोजनाओं के लिए पूंजीगत निवेश की गुंजाइश और कम हो जाएगी.

विशेषज्ञ मानते हैं कि राज्यों को कर्ज़ प्रबंधन में सख़्ती लाने, राजस्व बढ़ाने के नए उपाय खोजने और कर्ज़ को उत्पादक क्षेत्रों में लगाने की ज़रूरत है. गैर-कर राजस्व (जैसे रॉयल्टी, फीस, डिविडेंड) का विस्तार और केंद्र व राज्यों के बीच वित्तीय सहयोग को बेहतर करना, ऐसे उपाय हैं जो वित्तीय स्थिरता ला सकते हैं.

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