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ना स्टाफ, ना सफाई, ना सिस्टम! जिस सिरप से गई 16 से ज्यादा मासूमों की जान, वहां ऐसे बन रही थी मौत की दवा

यह कहानी है एक ऐसी फैक्ट्री की, जहां ना तो स्टाफ था, ना हाइजीन और ना ही कोई सिस्टम, लेकिन वहां बनाई जा रही थी एक खतरनाक सिरप जिसने 16 से ज्यादा मासूमों की जान ले ली. इस दुर्घटना ने साफ कर दिया है कि नियमों की अनदेखी और लापरवाही कैसे जानलेवा बन सकती है.

ना स्टाफ, ना सफाई, ना सिस्टम! जिस सिरप से गई 16 से ज्यादा मासूमों की जान, वहां ऐसे बन रही थी मौत की दवा
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( Image Source:  AI SORA )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 7 Oct 2025 11:26 AM IST

16 मासूमों की मौत... दो राज्यों में फैली दहशत और अब सामने आई एक ऐसी रिपोर्ट, जिसने पूरे देश को हिला दिया है. तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित श्री सन फार्मास्युटिकल की एक फैक्ट्री से बना कफ सिरप कोल्ड्रिफ ही इन मौतों की जड़ बताया जा रहा है.

इंडिया टूडे टीवी के पास तमिलनाडु सरकार की 26 पन्नों की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट आई है, जिसने कंपनी के अंदर की सच्चाई उजागर कर दी. 350 से ज्यादा गंभीर खामियां, गंदगी, और जानलेवा लापरवाही. रिपोर्ट साफ कहती है कि अगर ये कंपनी बुनियादी नियमों का पालन करती, तो शायद बच्चों की जानें बच सकती थीं. चलिए जानते हैं कैसे फैक्ट्री में कैसे बन रही थी मौत की दवा.

जनहित याचिका हुई दायर

मध्य प्रदेश में कथित तौर पर कफ सिरप पीने से हुई बच्चों की मौत की सीबीआई जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है. एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका में दूषित कफ सिरप के निर्माण, विनियमन, परीक्षण और वितरण की सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में जांच और पूछताछ की मांग की गई है.

कहां हुआ हादसा: मध्य प्रदेश और राजस्थान में फैला मातम

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कुछ हफ्ते पहले अचानक बच्चों की तबीयत बिगड़ने लगी. कई में उल्टियां, दौरे और सांस लेने में परेशानी देखी गई. जांच के बाद पता चला कि सभी ने एक ही दवा कोल्ड्रिफ कफ सिरप पी थी. देखते ही देखते 16 बच्चों की मौत हो गई. राजस्थान में भी दो बच्चों ने दम तोड़ दिया. जब जांच आगे बढ़ी तो सारा सुराग तमिलनाडु की उसी फैक्ट्री तक पहुंचा, जहां यह सिरप तैयार किया गया था.

कैसे खुला मामला: तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट की छापेमारी

घटना के बाद तमिलनाडु सरकार ने ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट को जांच के आदेश दिए. निरीक्षण टीम जब श्री सन फार्मास्युटिकल के प्लांट पहुंची, तो जो नज़ारा सामने आया, वह किसी डरावने सपने से कम नहीं था. रिपोर्ट के मुताबिक, फैक्ट्री में 350 से ज्यादा खामियां मिलीं, जिनमें से कई को “क्रिटिकल” (अत्यंत गंभीर) बताया गया है.

रिपोर्ट में क्या मिला?

निरीक्षकों ने बताया कि सिरप गंदे और अस्वच्छ माहौल में तैयार किया जा रहा था. एयर हैंडलिंग यूनिट (AHU) पूरी तरह से खराब थी. वेंटिलेशन की कोई व्यवस्था नहीं थी. मशीनों पर जंग लगी थी और पाइप लीक कर रहे थे. फैक्ट्री का डिज़ाइन ही ऐसा था कि वहां पर प्रदूषण और संक्रमण का खतरा लगातार बना रहता था. फैक्ट्री में न तो क्वालिटी एश्योरेंस विभाग था और न ही किसी अधिकृत व्यक्ति को दवा की बैच रिलीज़ के लिए नियुक्त किया गया था. यानी बिना जांच के ही सिरप बाजार में भेजा जा रहा था.

'गाउनिंग, क्लीनिंग, वॉटर सिस्टम- कुछ नहीं'

जांच में यह भी पाया गया कि फैक्ट्री में न तो कर्मचारियों के लिए गाउनिंग प्रोसेस था, न GMP ड्रेन्स, न प्यूरीफाइड वॉटर सिस्टम, और न पेस्ट कंट्रोल. सामान गलियारों में पड़ा था, जहां हवा शुद्ध नहीं थी और एयर हैंडलिंग यूनिट्स बंद पड़ी थीं. इस वजह से धूल और कीटाणुओं से संक्रमण का खतरा हमेशा बना रहता था.

जहरीले केमिकल्स की मौजूदगी

रिपोर्ट का सबसे चौंकाने वाला हिस्सा 50 किलो प्रोपलीन ग्लाइकोल था, जो बिना किसी बिल या इनवॉइस के खरीदा गया था. यानी यह पूरी तरह अवैध खरीद थी. जब जांच टीम ने सिरप के नमूने लिए, तो उनमें Diethylene Glycol (DEG) के अंश मिले. एक ऐसा जहरीला इंडस्ट्रियल केमिकल जिसका इस्तेमाल ब्रेक फ्लुइड, पेंट और प्लास्टिक में होता है. DEG बेहद विषैला होता है. थोड़ी सी मात्रा भी मनुष्य के लिए घातक हो सकती है. इतिहास में कई देशों में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जहां DEG से मिली-जुली दवाओं ने सैकड़ों लोगों की जान ली.

कैसे बनता था जहरीला सिरप?

रिपोर्ट ने खुलासा किया कि कंपनी दवा के घोल को प्लास्टिक पाइपों से ट्रांसफर करती थी, जिनमें किसी तरह का फिल्टर सिस्टम नहीं था. केमिकल्स का कचरा सीधे सामान्य नालियों में फेंका जा रहा था. यहां तक कि जो प्यूरीफाइड वॉटर टैंक इस्तेमाल किए जा रहे थे, वे खुद गंदगी से भरे हुए और सफाई से कोसों दूर थे. रॉ मटीरियल्स बिना जांच के इस्तेमाल किए जा रहे थे, न किसी वेंडर की मंजूरी थी, न किसी क्वालिटी रिपोर्ट की जांच.

कहां-कहां फेल हुई निगरानी प्रणाली

निरीक्षण टीम ने पाया कि कंपनी के पास कोई फार्माकोविजिलेंस सिस्टम नहीं था. यानी अगर किसी दवा से रिएक्शन हो, तो उसे ट्रैक करने की कोई व्यवस्था ही नहीं थी. उत्पादन क्षेत्र में मक्खियां, कीड़े और चूहे तक रोकने के कोई इंतजाम नहीं थे. न एयर कर्टेन, न फ्लाई कैचर, न फिल्टर्ड एयर वेंटिलेशन. यह सब मिलकर एक ऐसा घातक माहौल बना रहे थे, जो किसी भी दवा को जहर में बदल सकता था.

सरकार की सख्ती: फैक्ट्री सील, सिरप बैन, अफसर सस्पेंड

तमिलनाडु सरकार ने रिपोर्ट मिलते ही एक्शन लिया. 1 अक्टूबर से कोल्ड्रिफ कफ सिरप की बिक्री पर पूरे राज्य में बैन लगा दिया गया. फैक्ट्री का उत्पादन तुरंत रोक दिया गया और सारे स्टॉक हटाने के आदेश दिए गए. सरकारी सूत्रों के अनुसार सैंपल की जांच में सिरप में मिलावट की पुष्टि हो चुकी है.वहीं मध्य प्रदेश सरकार ने तीन अधिकारियों को निलंबित किया और राज्य ड्रग कंट्रोलर का तबादला कर दिया है.

लापरवाही और नियमों की धज्जियां

रिपोर्ट की हर पंक्ति यह दिखाती है कि यह हादसा रोका जा सकता था. अगर कंपनी ने बेसिक मैन्युफैक्चरिंग प्रोटोकॉल का पालन किया होता. न जांच, न क्वालिटी सिस्टम, न सफाई, यह सब सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि अपराध था. तमिलनाडु सरकार की यह रिपोर्ट सिर्फ एक फैक्ट्री की गलती नहीं दिखाती, बल्कि यह बताती है कि जब मुनाफे की अंधी दौड़ में मानवीय संवेदनाएं पीछे छूट जाती हैं, तो दवा भी ज़हर बन जाती है.

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