पालक का पत्ता बनेगा आपके दिल का हिस्सा? बायोइंजीनियरिंग इनोवेशन से बनेगा हार्ट टिशू
रिसर्चर्स ने पालक के पत्तों का यूज़ करके एक अनोखा बायोइंजीनियरिंग तरीका ढूंढा है, जिससे हार्ट टिशू की ट्रीटमेंट की जा सकती है. ये रिसर्च इको-फ्रेंडली, किफायती और फ्यूचर में मेडिकल साइंस में रेवोलुशन ला सकता है.

इमेजिन यू आर ईटिंग लंच, और सामने रखा हुआ है एक पालक का पत्ता. आम तौर पर इसे आप खाने की चीज़ समझते हैं, लेकिन Worcester Polytechnic Institute (WPI) के रिसर्चर्स ने इसे हार्ट टिशू बनाने का बनाने का एक सोर्स बताया है.
कैसे? पालक के पत्तों में जो वेसल्स होती हैं, वो इंसान के ब्लड वेसल्स से काफी मिलती-जुलती हैं. बस यही स्ट्रक्चर ने साइंटिस्ट्स को एक आइडिया दे दिया. WPI के शोधकर्ताओं ने पालक के पत्ते को 'डीसेलुलराइज़' किया, यानी इसके सारे प्लांट सेल्स हटा दिए, और जो कुछ बचा वह एक मजबूत और डिटेल्ड सेलुलोज़ फ्रेमवर्क था. अब यह फ्रेमवर्क इतना मज़बूत और सटीक है कि इंसानी हार्ट के टिशू इसे अपने आधार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. इस रिसर्च से बायोइंजीनियरिंग के क्षेत्र में एक नई दिशा मिली है, और इसने मेडिकल साइंस को एक नया मोड़ दे दिया है.
हार्ट बचाने में कैसे मदद करेगा पालक?
जब किसी को हार्ट अटैक होता है, तो हार्ट के कुछ हिस्सों में ब्लड सप्लाई बंद हो जाती है और वहां के टिशू मरने लगते हैं. ऐसे में, ठीक होने के लिए ऐसे टिशू की जरुरत होती है, जिनमें एक अच्छा ब्लड वेसल नेटवर्क हो. और ये काम पालक के पत्ते से लिया गया यह नया बायोइंजीनियरिंग तरीका बहुत अच्छे से कर सकता है. पालक के पत्ते की वेसल्स में आसानी से फ्लुइड यानी खून को पास किया जा सकता है, और यही रीज़न है कि यह हार्ट टिशू के लिए एक बेहतरीन अल्टरनेटिव बन सकता है.
अब, रिसर्चर्स ने इस फ्रेमवर्क पर इंसानी हार्ट के सेल्स उगाए और चौंकाने वाली बात यह हुई कि ये सेल्स न सिर्फ बढ़े, बल्कि वे धड़कने भी लगे. इस एक्सपेरिमेंट से ये साबित हो गया कि अगर इस टेक्नोलॉजी का यूज़ बड़े पैमाने पर किया जाए, तो यह दिल की ट्रीटमेंट के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है. इससे न सिर्फ हार्ट अटैक से बचाव हो सकता है, बल्कि जिन लोगों को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत है, उनके लिए भी एक नयी उम्मीद का रास्ता खुल सकता है.
क्यों खास है ये इनोवेशन?
सस्टेनेबिलिटी: पालक के पत्ते का इस्तेमाल सिंथेटिक मटेरियल की बजाय किया जा सकता है, जो इको-फ्रेंडली और सस्ता है. इसके अलावा, पालक बायोडिग्रेडेबल है जिससे ये एनवायरनमेंट के लिए सेफ है.
क्रिएटिव अप्रोच: इस रिसर्च ने साइंस और नेचर के बीच के अंतर को खत्म करने का काम किया है. नॉर्मली, हम प्लांट्स को खाने तक ही सीमित रखते हैं, लेकिन अब यही प्लांट्स मेडिकल साइंस में एक बड़े चेंज का कारण बन सकते हैं.
मेडिकल अप्लीकेशन: ये टेक्नोलॉजी सिर्फ हार्ट तक ही लिमिटेड नहीं है. फ्यूचर में, इसे और भी टिशू और ऑर्गन्स के लिए भी कस्टमाइज़ किया जा सकता है. जैसे कि पार्सले, वुड और स्विट वॉर्मवुड जैसे पौधों पर भी रिसर्च हो रहा है, जिससे और ज्यादा काम्प्लेक्स ऑर्गन्स की सर्जरी की जा सके.
व्हाट्स नेक्स्ट?
इस रिसर्च के बाद, रिसर्चर्स पार्सले, वुड और स्विट वॉर्मवुड जैसी दूसरी पौधों पर भी काम कर रहे हैं. पार्सले की पतली डंडी आर्टरीज़ बनाने में मदद कर सकती है, जबकि वुड का वेस्कुलर सिस्टम बोन इंजीनियरिंग के लिए यूज़फूल हो सकते हैं. अगर यह एक्सपेरिमेंट्स सक्सेसफूल होते हैं, तो मेडिकल साइंस में एक नया रेवोलुशन आ सकता है.
तो अगली बार जब आप सलाद बनाने बैठें, तो याद रखिएगा कि ये पत्ते आपकी हेल्थ के लिए सिर्फ खाने तक ही नहीं, बल्कि मेडिकल इनोवेशन में भी काम आ सकते हैं. यह बात सच में हैरान करने वाली है कि कैसे नेचर का डिजाइन, साइंस के नए सॉलूशन्स और ट्रीटमेंट का रास्ता खोल सकता है.
आखिरकार, ये रिसर्च न सिर्फ हमें एक होप दे रहा है, बल्कि हमें ये भी बताता है कि नेचर में छिपी हुई कॉउंटलेस प्रोबेबिलिटीज़ का पूरा इस्तेमाल किया जा सकता है. यह नेचुरल प्रोसेस मेडिकल साइंस के हर पहलू में रेवोलुशन लाने की कैपेसिटी रखती है. और अगर यह टेक्नोलॉजी बड़े पैमाने पर लागू होती है, तो ये आने वाले समय में हार्ट की बीमारियों को हराने में एक अहम रोल निभा सकती है.