औरंगजेब की कब्र से उठी चिंगारी, खुल्दाबाद को रत्नापुर बनाने की तैयारी! जानें पूरा इतिहास
महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर जिले में मुगल सम्राट औरंगज़ेब की कब्र स्थित खुल्दाबाद का नाम बदलकर 'रत्नापुर' रखने की मांग ज़ोर पकड़ रही है. राज्य के मंत्री संजय शिरसाट ने दावा किया है कि औरंगज़ेब के आगमन से पहले इस क्षेत्र को रत्नापुर कहा जाता था और ऐतिहासिक प्रमाण भी इसका समर्थन करते हैं. वहीं, इस मांग का कुछ लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है.

महाराष्ट्र की धरती एक बार फिर सियासी संग्राम का अखाड़ा बन चुकी है और इस बार दांव पर है औरंगजेब की आखिरी निशानी – खुल्दाबाद! अब इसे 'रत्नापुर' नाम देने की मांग जोर पकड़ चुकी है, और इस मांग के पीछे सिर्फ नाम नहीं, बल्कि इतिहास, अस्मिता और सत्ता की राजनीति की पूरी पटकथा चल रही है.
क्या है बवाल?
महाराष्ट्र सरकार के मंत्री संजय शिरसाट ने हाल ही में बयान दिया कि खुल्दाबाद का नाम "रत्नपुर" किया जाएगा. वो कहते हैं ये कोई नई मांग नहीं, बल्कि इतिहास को उसकी असली पहचान दिलाने की कोशिश है. यानी, औरंगजेब की कब्र जहां आज है- वो जमीन असल में रत्नापुर थी, और नाम बदलना सिर्फ न्याय है, बदला नहीं.
अब ज़रा सोचिए – जिस जगह को मुगल क्रूरता की याद माना जाता है, जहां औरंगजेब की कब्र मौजूद है, उसे फिर से प्राचीन मराठा गौरव के नाम से जोड़ा जाए – ये सिर्फ नाम नहीं, पूरे हिंदवी स्वराज की पुन- स्थापना जैसी बात हो गई.
खुल्दाबाद बनाम रत्नापुर का इतिहास
खुल्दाबाद को पहले रत्नपुर कहा जाता था. यह जगह यादव वंश और बाद में बहमनी सुल्तानों के अधीन रही. यह क्षेत्र देवगिरी किले (आज का दौलताबाद) के नज़दीक है, जिसे पहले ही 'देवगिरी' के नाम से वापस बुलाया जाने लगा है.माना जाता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब जब यहां आया, उसने न सिर्फ राज किया बल्कि जगहों के नामों को भी अपने हिसाब से इस्लामी रंग दिए. रत्नपुर को उसने बदलकर "खुल्दाबाद" कर दिया, जिसका अर्थ है "स्वर्ग का बाग़". यानी, नाम भी ऐसा दिया कि लगे जैसे उसने कोई पवित्र भूमि जीत ली हो.
कब्र और करंट पॉलिटिक्स
आज यही खुल्दाबाद उस औरंगजेब की कब्र का घर है, जिसे हिंदू कट्टरता और मराठा गौरव की नजरों में एक क्रूर शासक माना जाता है. छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या का जिम्मेदार, हिंदू मंदिरों के विध्वंसक, और जज़िया कर लगाने वाला बादशाह. अब सवाल ये है – क्या ऐसे शासक की याद को संरक्षित रखा जाए या उस ज़मीन को फिर से अपनी मूल पहचान दी जाए?