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सच होती बिल्लियों और बंदर की कहानी! कांग्रेस और शिवसेना की लड़ाई में कैसे शरद पवार की पार्टी को हो रहा फायदा

Maharashtra Election: कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) के बीच सीटों को लेकर खींचतान के बीच शरद पवार अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए 85 सीटें अपने पाले में लाने में कामयाब रहे. उनकी एनसीपी अब महा विकास अघाड़ी (MVA) के महाराष्ट्र चुनाव जीतने पर अपना मुख्यमंत्री बनाने की दावेदारी में सबसे आगे होगी.

सच होती बिल्लियों और बंदर की कहानी! कांग्रेस और शिवसेना की लड़ाई में कैसे शरद पवार की पार्टी को हो रहा फायदा
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Maharashtra Election
सचिन सिंह
Edited By: सचिन सिंह

Updated on: 28 Oct 2024 3:08 PM IST

Maharashtra Election: एक बंदर और दो बिल्लियों की कहानी तो आपने बचपन में खूब सुनी होगी. अब आप सोच रहे होंगे कि राजनीति में हम इस कहानी की बात क्यों कर रहे हैं, लेकिन आपको बता दें कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी ऐसी ही कहानी नजर आ रही है. विपक्षी महा विकास अघाड़ी (MVA) के पार्टनर्स 288 सीटों को आपस में बराबर-बराबर बांट लेते हैं. इसमें तीनों सहयोगियों में से किसी एक का मास्टरस्ट्रोक शामिल है और इसका महाराष्ट्र की राजनीति पर लंबे समय तक प्रभाव पड़ सकता है.

कहानी में दो बिल्लियां एक गोल रोटी के लिए लड़ रही हैं और मदद के लिए एक बंदर के पास जाती हैं. बिल्लियां बंदर से कहती हैं कि वह रोटी को दोनों के बीच बराबर-बराबर बांट दे. बंदर उसे दो टुकड़ों में फाड़ देता है और एक टुकड़ा दूसरे से बड़ा हो जाता है. वह बड़े टुकड़े को काटता है ताकि वह दूसरे टुकड़े के बराबर हो जाए. अब दूसरा टुकड़ा बड़ा लगता है और बंदर उसमें से खा लेता है और ये चलता रहता है. अंत में बंदर पूरी रोटी खा लेता है और आपस में लड़ने वाली बिल्लियों को कुछ नहीं मिलता है.

बिल्लियों के बीच शरद पवार की पार्टी बनी बंदर

महाराष्ट्र की राजनीति की बात करें तो गठबंधन सहयोगी कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UTB) सीट बंटवारे पर सहमत नहीं हो पाए. जब बातचीत में गतिरोध पैदा हुआ तो उन्होंने अपने तीसरे सहयोगी शरद पवार के प्रमुख से संपर्क किया.

एनसीपी (SP) चीफ शरद पवार ने तीनों एमवीए सहयोगियों को 85-85-85 सीटें देकर गतिरोध खत्म कर दिया. 10 सीटें छोटे सहयोगियों के लिए छोड़ी गईं और बाकी 23 सीटों पर फैसला लंबित रखा गया है. महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं. इसके साथ ही शरद पवार ने अपनी पार्टी एनसीपी को कांग्रेस के बराबर ला खड़ा कर दिया. ये इसलिए देखने में आश्चर्य वाला है क्योंकि कांग्रेस ने 2000 के दशक से ही महाराष्ट्र में एनसीपी को एक जूनियर पार्टनर के रूप में देखा जाता है.

कांग्रेस-शिवसेना के बीच एनसीपी को फायदा

बात 2019 के विधानसभा चुनाव की करें तो कांग्रेस ने 147 सीटों पर और एनसीपी ने 121 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें अजीत पवार भी साथ थे. 2019 के विधानसभा चुनावों में एनसीपी का स्ट्राइक रेट 45% रहा, जो कांग्रेस के 30% से कहीं बेहतर था. एनसीपी ने 55 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 44 सीटें मिली थी.

शरद पवार ने अतिरिक्त सीटें निकालने के लिए कांग्रेस और शिवसेना के बीच सीट बंटवारे के विवाद तथा हरियाणा विधानसभा चुनाव में मिली हार का इस्तेमाल किया. शरद पवार की एनसीपी के लिए 10-15 सीटें जीतना बड़ी जीत है. इससे कांग्रेस भी मंच से नीचे गिरकर बराबरी पर आ गई है.

मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी हैं शरद पवार

शरद पवार का इतिहास रहा है कि वे हमेशा से ही नुकसानदेह स्थिति से सत्ता में वापस आते रहे हैं. वह एक मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी हैं. कई लोग उन्हें इस महाराष्ट्र चुनाव में एक्स-फैक्टर मान रहे हैं. अगर शरद पवार की एनसीपी विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर लेती है और एमवीए 145 का जादुई आंकड़ा हासिल कर लेती है, तो मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान करने का पहला अधिकार उनकी पार्टी को है.

यह एक ऐसा अधिकार है जिसे कांग्रेस और शिवसेना भी नकार नहीं सकती हैं, क्योंकि वे सबसे बड़ी पार्टी के फॉर्मूले पर बार-बार जोर देती रहती हैं. इससे न केवल इस सवाल का जवाब मिल जाएगा कि असली एनसीपी कौन है? बल्कि पवार सीनियर को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी स्थापित करने में भी मदद मिलेगी.

अगर यह 23 नवंबर सच हो जाता है तो बंदर और दो बिल्लियों की कहानी राजनीतिक स्थिति के लिए इससे बेहतर नहीं होगी. कांग्रेस और शिवसेना के बीच लड़ाई के बावजूद एनसीपी को रोटी मिल ही जाएगी.

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