नॉमिनेशन में प्रस्तावक की क्या होती है भूमिका? उम्मीदवार का नामांकन तक करवा सकता है रद्द
Proposers key role in nomination: लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया में उम्मीदवारों को आधिकारिक रूप से किसी सीट के लिए चुनाव लड़ने के लिए कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होती हैं. ऐसी ही एक अनिवार्य आवश्यकता नामांकन प्रक्रिया है. उम्मीदवार प्रस्तावकों के समर्थन के बिना अपना नामांकन दाखिल नहीं कर सकते है.

Proposers key role in nomination: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बरहेट विधानसभा क्षेत्र के नामांकन पर हस्ताक्षर करने वाले प्रस्तावक के हालिया आचरण ने 13 नवंबर और 20 नवंबर को होने वाले मतदान से कुछ ही हफ्ते पहले राज्य में हलचल मचा दी है. इस बीच लोगों के मन में प्रस्तावक को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. आइए यहां जानते हैं कि आखिर प्रस्तावक का काम क्या होता है और वह इतना जरूरी क्यों होता है?
किसी भी चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों पर प्रस्तावक का हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होती है, जो किसी विशेष लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र में पंजीकृत मतदाता होते हैं. उन्हें उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होती है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के मुताबिक, मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दलों के खड़े किए गए उम्मीदवारों को एक प्रस्तावक की आवश्यकता होती है, जबकि स्वतंत्र उम्मीदवारों या गैर-मान्यता प्राप्त दलों के उम्मीदवारों को 10 प्रस्तावकों की आवश्यकता होती है.
कौन बन सकता है प्रस्तावक?
प्रस्तावक को पार्टी का सदस्य होना ज़रूरी नहीं है. जब नामांकन पत्र रिटर्निंग ऑफिसर (RO) के सामने पेश किए जाते हैं तो उम्मीदवार या प्रस्तावक को मौजूद रहना होता है. RO को यह सुनिश्चित करना होता है कि उम्मीदवार और प्रस्तावक दोनों का नाम और मतदाता सूची संख्या सही है. एक उम्मीदवार एक ही निर्वाचन क्षेत्र के लिए अधिकतम चार नामांकन पत्र दाखिल कर सकता है, केवल एक ही स्वीकार किया जा सकता है और एक ही प्रस्तावक उम्मीदवार के एक से ज़्यादा नामांकन पत्रों पर हस्ताक्षर कर सकता है.
क्या प्रस्तावक के कारण नामांकन हो सकता है अस्वीकृत?
नामांकन पत्रों की जांच करते समय अगर नामांकन समय सीमा के भीतर जमा नहीं किया जाता है या उम्मीदवार या प्रस्तावक के अलावा किसी और के द्वारा जमा किया जाता है तो आरओ नामांकन को अस्वीकार कर सकता है. उम्मीदवार या प्रस्तावक के हस्ताक्षर नकली पाए जाने पर भी नामांकन खारिज किया जा सकता है. प्रस्तावक के प्रतिद्वंद्वी दलों से मिलने या किसी अन्य पार्टी में शामिल होने से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
सूरत से कांग्रेस की उम्मीदवारी हुई थी खारिज
लोकसभा चुनाव में प्रस्तावकों की अहम भूमिका तब सामने आई जब सूरत से कांग्रेस के उम्मीदवार नीलेश कुंभानी के तीन प्रस्तावकों ने कहा कि जब आरओ ने उनसे पूछा तो उन्होंने कागजों पर हस्ताक्षर नहीं किए. कुंभानी का नामांकन खारिज कर दिया गया और भाजपा उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध निर्वाचित हुए. इस घटना के बाद कांग्रेस ने आरोप लगाया कि भाजपा ने प्रस्तावकों पर समर्थन वापस लेने का दबाव बनाया था.