बीरेन सिंह के इस्तीफे के चार दिन बाद मणिपुर में लगा राष्ट्रपति शासन, जानें क्या क्या होंगे बदलाव
मणिपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. राज्य में जारी जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह फैसला लिया गया. संविधान के अनुसार, विधानसभा की बैठक में छह महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए, लेकिन कोई सरकार बनाने का दावा नहीं हुआ, जिससे राष्ट्रपति शासन जरूरी हो गया.

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है. इससे पहले, 9 फरवरी को राज्य के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उनका यह इस्तीफा राज्य में जारी जातीय हिंसा के करीब दो साल बाद आया. इस हिंसा और अन्य प्रशासनिक मुद्दों को लेकर बीरेन सिंह की काफी आलोचना हो रही थी. उनके इस्तीफे के बाद से ही अटकलें लगाई जा रही थीं कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है, जो अब सच साबित हुआ.
संविधान के अनुसार, किसी भी राज्य की विधानसभा की दो बैठकों के बीच छह महीने से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए. मणिपुर विधानसभा के मामले में यह समय सीमा बुधवार को समाप्त हो गई थी. इसके अलावा, किसी भी पार्टी या गठबंधन ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया, जिससे राजनीतिक अनिश्चितता बनी रही. इसी स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय लिया.
राज्यपाल को मिलेगी पूरी प्रशासनिक शक्ति
राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्यपाल ही राज्य का एकमात्र प्रशासक होता है. राज्यपाल अब सीधे केंद्र सरकार के निर्देशों पर काम करेंगे और सभी फैसले वही लेंगे. प्रशासनिक व्यवस्था संभालने के लिए राज्यपाल को केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने की पूरी शक्ति दी जाएगी.
कानून व्यवस्था पर केंद्र का नियंत्रण
राज्य की पुलिस और सुरक्षा बलों का नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथ में आ जाएगा. राज्य में यदि हिंसा, दंगे या उग्रवाद जैसी समस्याएं बनी हुई हैं, तो केंद्र सरकार अधिक केंद्रीय सुरक्षा बलों (CRPF, BSF, Assam Rifles) की तैनाती कर सकती है. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कर्फ्यू, इंटरनेट प्रतिबंध या अन्य सख्त कदम उठाए जा सकते हैं.
राष्ट्रपति शासन के सकारात्मक प्रभाव
बेहतर कानून-व्यवस्था: राज्य में हिंसा, दंगे या उग्रवाद जैसी समस्याओं पर केंद्र सरकार तुरंत कार्रवाई कर सकती है.
प्रशासनिक स्थिरता: नौकरशाही के नियंत्रण में आने से प्रशासन अधिक सुचारू रूप से चल सकता है.
भ्रष्टाचार पर अंकुश: चुनी हुई सरकार के हटने से राजनीतिक भ्रष्टाचार में कमी आ सकती है.
विकास कार्यों की निगरानी: केंद्र सरकार सीधे विकास योजनाओं की देखरेख कर सकती है.
राष्ट्रपति शासन के नकारात्मक प्रभाव
जनप्रतिनिधित्व का अभाव: चुनी हुई सरकार नहीं रहने से जनता की आवाज दब सकती है.
राजनीतिक अस्थिरता: राजनीतिक दल विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं और राज्य में अशांति पैदा हो सकती है.
केंद्र पर निर्भरता: राज्य को हर छोटे-बड़े फैसले के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ेगा.
चुनाव में देरी: अगर हालात सुधरने में ज्यादा समय लगा, तो नए चुनाव में देरी हो सकती है.