कर्नाटक में स्विगी-जोमैटो से खाना मंगाना होगा महंगा, सरकार लगाने जा रही है एडिशनल शुल्क
सरकार ने जोमैटो, स्विगी, ओला, उबर जैसी कंपनियों पर नया शुल्क लगाने की योजना बना रही है. न्यूज एजेंसी द्वारा ट्वीट किए एक बयान में श्रम मंत्री संतोष लाड ने कहा कि यह पैसा गिग वर्कर्स के लिए बने स्पेशल वेलफेयर फंड में जाएगा, ताकि उनकी सुरक्षा और सुविधाओं का ख्याल रखा जा सके.

न्यूज एजेंसी द्वारा ट्वीट किए एक बयान में लाड ने कहा कि यह पैसा गिग वर्कर्स के लिए बने स्पेशल वेलफेयर फंड में जाएगा, ताकि उनकी सुरक्षा और सुविधाओं का ख्याल रखा जा सके. हालांकि यह शुल्क प्रोडक्ट्स या कंस्यूमर पर्चेस के लिए चार्ज नहीं करेंगे बल्कि ट्रांसपोर्ट सर्विस के लिए चार्ज किया जाएगा.
यह फैसला कर्नाटक सरकार की घोषणा केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया द्वारा लाखों ऐसे वर्कर्स को हेल्थ इंस्युरेन्स और पेंशन जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने के लिए गिग और प्लेटफ़ॉर्म वर्कर्स के कर्मचारी संघों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता करने के एक दिन बाद आया.
कीमत थोड़ी बढ़ सकती है
यह शुल्क केवल ट्रांसपोर्ट सर्विस पर लगाया जाएगा यानी ग्राहकों द्वारा खरीदी गई वस्तुओं पर नहीं. इस स्कीम के तहत सरकार इन प्लेटफॉर्म्स से 1-2 फीसदी चार्ज लेगी, जिसका इस्तेमाल गिग वर्कर्स की मदद के लिए किया जाएगा. हालांकि यह संभावना है कि ये शुल्क अंततः ग्राहकों पर डाला जाएगा, जिससे सर्विस की कीमत थोड़ी बढ़ सकती है. इस फैसले के पीछे कर्नाटक सरकार का गोल गिग वर्कर्स को बेहतर सुरक्षा और सुविधाएं प्रदान करना है, क्योंकि वे अनॉर्गनाइज़्ड सेक्टर में काम करते हैं और उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
बदलाव से कोई लाभ नहीं
गिग वर्कर्स बेस्ड प्लेटफ़ॉ (सामाजिक सुरक्षा और कल्याण) बिल, 2024 के लिए राज्य सरकार की मसौदा अधिसूचना में शुल्क का एक्सेक्यूशन शामिल है. हालांकि एक बार बिल पास हो जाने के बाद प्लेटफ़ॉर्म शुल्क इकट्ठा करेंगे और इसे सीधे वेलफेयर बोर्ड को ट्रान्सफर्ड कर देंगे. लेकिन कंपनियों को इस बदलाव से कोई लाभ नहीं होगा, लेकिन लागत में 1-2% की मामूली वृद्धि के कारण ग्राहक बार-बार ऑर्डर देने से परेशान हो सकते हैं.'
इससे पहले, NASSCOM ने गिग वर्कर्स बिल में कुछ नियमों के बारे में चिंता जताई थी, यह देखते हुए कि वे एग्रीगेटर बिजनेस पर निगेटिव प्रभाव डाल सकते हैं. IAMAI ने बिजनेस ऑप्रेशन में संभावित बाधाओं और राज्य की व्यवसाय करने में आसानी रैंकिंग का हवाला देते हुए मसौदा कानून के बारे में भी अपनी आपत्ति व्यक्त की. इसके विपरीत, आईएफएटी और विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी सहित अन्य यूनियनों ने विधेयक का स्वागत किया है.