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OLO: साइंटिस्ट्स ने डिस्‍कवर किया इंसान की आंखों से छुपा नया रंग

UC Berkeley के वैज्ञानिकों ने ऐसा रंग खोजा है जो इंसानी आंखों की सीमाओं से बाहर है। यह रंग तकनीकी रूप से मौजूद है, लेकिन इसे प्रत्यक्ष रूप से देख पाना संभव नहीं

OLO: साइंटिस्ट्स ने डिस्‍कवर किया इंसान की आंखों से छुपा नया रंग
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हर दिन हम ढेरों रंग देखते हैं — लाल, नीला, पीला, हरा, बैंगनी... लेकिन सोचिए अगर कोई ऐसा रंग हो जो इस दुनिया में मौजूद तो हो, लेकिन इंसान उसे देख ही ना पाए? कोई ऐसा रंग जो आपके सामने हो, लेकिन आपकी आंख उसे कभी पहचान ही ना सके? ये कोई sci-fi imagination नहीं, बल्कि UC Berkeley के scientists की एक real discovery है — और इस रंग का नाम है: OLO.

OLO क्या है?

OLO एक ऐसा रंग है जो इंसानी आंखें perceive नहीं कर सकतीं. यानी ये color technically मौजूद है, लेकिन उसे देख पाना हमारे visual system के बस से बाहर है. ये कोई typical color code या screen पर दिखने वाला tone नहीं है. इसे ना तो HEX code में लिखा जा सकता है, ना ही आप इसे Google Images में ढूंढ सकते हैं.

OLO को scientists ने एक special visual experiment के दौरान महसूस किया — ये color हमारी आंख और दिमाग के बीच के connection को challenge करता है. इसी वजह से इसे कई लोग “forbidden color” भी कहते हैं — यानी ऐसा रंग जो theoretically possible है, लेकिन practically नजर नहीं आता.

इंसान रंग कैसे देखता है?

हमारी आंखों में तीन main types के photoreceptor cones होते हैं — red-sensitive, green-sensitive और blue-sensitive. इन्हीं की mix response से हम अलग-अलग रंग देख पाते हैं. लेकिन कुछ color combinations ऐसे होते हैं जिन्हें हमारी आंख simultaneously detect नहीं कर सकती — जैसे red और green को एक साथ.

OLO भी ऐसा ही एक visual phenomenon है. Scientists ने कुछ special optics और illusions का use करके brain को ऐसा signal भेजा, जिससे उसने एक ऐसा color “देखा” जो असल में आंखों की range में नहीं आता.

OLO को कैसे discover किया गया?

UC Berkeley के researchers ने एक visual setup तैयार किया, जिसमें complementary colors को ऐसी trick से combine किया गया कि आंख की cones confuse हो गईं. जब eyes इन signals को साफ-साफ नहीं पढ़ पाईं, तो brain ने खुद एक नया experience create किया — जो किसी भी known color से match नहीं करता था.

इस perception को ही नाम दिया गया — OLO.

क्या OLO असली है?

अब सवाल ये उठता है — अगर हम इसे देख नहीं सकते तो क्या ये real है?

Answer: हां, लेकिन थोड़ी twist के साथ. OLO एक physical color नहीं है, ये एक mental perception है. ये आपके brain की creation है — वो भी तब जब visual input unclear हो जाता है. इसका मतलब ये नहीं कि OLO fake है. बल्कि ये बताता है कि reality सिर्फ आंखों से नहीं, दिमाग से भी बनती है.

OLO क्यों important है?

Visual science को push करता है: ये discovery बताती है कि हम जो देखते हैं, उससे कहीं ज्यादा possible है.

Human limitations को expose करता है: हम सोचते हैं कि हम सब कुछ देख सकते हैं, लेकिन OLO जैसा unseen color हमें याद दिलाता है कि हमारी senses की भी boundaries हैं.

Tech future में काम आएगा: Augmented Reality, Virtual Reality और Neural Interfaces जैसे areas में ऐसे colors और experiences बहुत valuable साबित हो सकते हैं.

क्या हम कभी OLO को clearly देख पाएंगे?

शायद future में! Neuroscience और tech इतनी advance हो सकती है कि हम brain को directly stimulate करके ऐसे colors को “feel” करा सकें. चाहे वो special lenses हों, neural implants या digitally created environments — वो दिन दूर नहीं जब impossible colors possible बन जाएं.

OLO एक रंग नहीं, बल्कि एक reminder है — कि perception और reality के बीच की line बहुत blurry होती है. ये discovery ये भी दिखाती है कि imagination और science मिलकर वो चीजें भी दिखा सकते हैं, जो आंखें कभी नहीं देख पाईं.

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