'घर का सपना या धोखा?' बिल्डरों और बैंकों की मिलीभगत पर अब CBI की नजर- SC ने दिया ये आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में देशभर के बिल्डरों और बैंकों के बीच कथित सांठगांठ की सीबीआई जांच का आदेश दिया है. दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़ और मोहाली, में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में बिल्डरों और बैंकों की मिलीभगत की जांच के लिए CBI को निर्देश दिया है.

निर्माण परियोजनाओं में हो रही देरी और खरीदारों के साथ बढ़ते धोखाधड़ी मामलों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है. कोर्ट ने दिल्ली, एनसीआर, मुंबई, चंडीगढ़, मोहाली और कोलकाता में बिल्डरों और बैंकों के बीच संभावित 'गठजोड़' की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को जांच के आदेश दिए हैं.
सालों से घर के इंतजार में फंसे लाखों लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने एक उम्मीद की किरण दिखाई है. कोर्ट ने देश के कई बड़े शहरों में रियल एस्टेट परियोजनाओं में बिल्डरों और बैंकों के गठजोड़ को लेकर गंभीर रुख अपनाते हुए CBI जांच के आदेश दिए हैं.
इन शहरों में होगी जांच की शुरुआत
दिल्ली-एनसीआर के नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, यमुना एक्सप्रेसवे और गुरुग्राम के साथ-साथ मुंबई, कोलकाता, चंडीगढ़ और मोहाली में शुरू होगी यह हाई-प्रोफाइल जांच. कोर्ट ने CBI को शुरुआती सात मामलों की जांच करने और इसके लिए एक विशेष जांच टीम (SIT) गठित करने को कहा है.
यूपी-हरियाणा पुलिस को भी मिला जिम्मा
CBI को सहयोग देने के लिए उत्तर प्रदेश और हरियाणा के डीजीपी से प्रशिक्षित पुलिस अफसर भेजने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि जांच में तेजी लाई जा सके.
सुपरटेक सबसे पहले रडार पर
जिन कंपनियों की जांच होनी है, उनमें सुपरटेक प्रमुख रूप से शामिल है. सुप्रीम कोर्ट को मिली जानकारी के अनुसार, सुपरटेक के देशभर में 21 से ज्यादा प्रोजेक्ट हैं और इनमें 19 फाइनेंशियल संस्थाएं जुड़ी हैं. कोर्ट को मदद कर रहे अमिकस क्यूरी ने सुपरटेक और आठ बैंकों के बीच संबंधों को 'तत्काल जांच' के लायक बताया है.
क्या है मामला?
कोर्ट के अनुसार, हजारों खरीदारों ने प्रोजेक्ट के वादों पर भरोसा कर ईएमआई देना शुरू किया था, लेकिन उन्हें अब तक घर नहीं मिला. ज़्यादातर मामले 2013 से 2015 के बीच शुरू हुए प्रोजेक्ट्स के हैं, जिनमें बिल्डरों ने 2018-19 के बाद निर्माण रोक दिया। बैंकों ने बिना कब्जा दिए भी ईएमआई वसूलनी जारी रखी और खरीदारों पर कानूनी दबाव बनाया.
तीन तरफा समझौते, एकतरफा नुकसान
कोर्ट ने बताया कि ज़्यादातर लोन बैंक, बिल्डर और खरीदार के बीच तीन पक्षीय समझौते के ज़रिए मंजूर हुए थे. लेकिन ज़िम्मेदारी निभाने में पूरी व्यवस्था नाकाम रही. न्यायालय ने 1,200 से ज्यादा घरों से जुड़े 170 से अधिक मामलों को सुनते हुए कहा कि यह सिर्फ आर्थिक धोखा नहीं, बल्कि एक प्रशासनिक विफलता भी है.