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गौर सिटी में जिसका दहन, उसी की जयकार! लगे 'होलिका मइया की जय' के नारे!

नोएडा एक्सटेंशन की गौर सिटी में भक्तगण होलिका जलाने आए थे या पूजने, यह अब तक स्पष्ट नहीं हुआ है! कहीं अगले साल दशहरे पर "लंकेश अमर रहें!" के नारे ना गूंजने लगें!

गौर सिटी में जिसका दहन, उसी की जयकार! लगे होलिका मइया की जय के नारे!
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नोएडा एक्सटेंशन की गौर सिटी, जहां लोग अब सिर्फ ऊंची इमारतों में नहीं, बल्कि अधूरी जानकारी और अंधभक्ति के टॉवर पर भी रह रहे हैं! सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें होलिका दहन के दौरान श्रद्धालु 'होलिका मइया की जय!' के नारे लगा रहे हैं. अब ज़रा कोई समझाए कि ये लोग होलिका को जलाने आए थे या पूजने?

मतलब, कहानी साफ़ है- होलिका, जो खुद बुराई का प्रतीक थी, जो अपने ही भतीजे को ज़िंदा जलाने का प्लान बना रही थी, वो अब कुछ भक्तों की ‘मइया’ बन गईं! वाह रे प्रगति! अब अगले साल से हिरण्यकश्यप के लिए भी जागरण करवाना पड़ेगा! एक तंबू लगेगा, जहां भक्तगण पूरी श्रद्धा से 'हिरण्यकश्यप बाबा की महिमा अपरंपार!' गाते हुए, ताली बजाते नजर आएंगे!

संस्कृति और धर्म का ऐसा कबाड़ा किया जा रहा है कि अगर खुद प्रह्लाद भी इस वीडियो को देख लें, तो अगली बार वो आग में बैठने से पहले चेक कर लें कि कहीं भक्तगण होलिका को फूल माला न पहना रहे हों!


भक्ति का नया ‘अपडेट’ – ज्ञान की बलि Must!

अब इस तरह के नारे सुनकर यह तो साफ़ है कि वो दिन दूर नहीं जब दशहरे पर 'रावण लीलाओं की अमर कहानी' सुनाई जाएगी, और महिषासुर की प्रतिमा बनाकर उसका विसर्जन रोकने की कोशिश की जाएगी! भक्तों की भक्ति अब ऐसा रूप ले चुकी है कि कोई कुछ भी बोले, बस नाम के आगे 'मइया' या 'बाबा' जोड़ दो, फिर चाहे वो बुराई का अवतार ही क्यों न हो, भक्ति चालू कर दो!

अब हो सकता है कि अगले साल 'दुर्योधन रक्षा समिति' बन जाए और लोग महाभारत में उसे सबसे बड़े ‘बलिदानी’ का दर्जा दे दें! लोग ये तक भूल जाएंगे कि यह वही दुर्योधन है जिसने द्रौपदी का चीरहरण करवाया था! पर क्या फर्क पड़ता है? अज्ञानता के दौर में, भक्तिभाव में लॉजिक का क्या काम!

धर्म की ठेकेदारी Vs. तर्कशक्ति का सूखा

दरअसल, इस पूरी घटना से यह साफ़ हो गया कि आजकल तर्क को तिलांजलि देना ही सच्ची भक्ति मान ली गई है! कोई कुछ भी कर सकता है, बस भक्ति की चाशनी चढ़ा दो, और हर चीज़ पवित्र हो जाएगी! लोग बिना सोचे-समझे 'होलिका मइया की जय!' चिल्ला रहे हैं, बिना इस बात का अंदाजा लगाए कि यही तो वो 'मइया' हैं जिन्होंने प्रह्लाद को जिंदा जलाने की साजिश रची थी!

अब इस हिसाब से तो अगले साल से कंस को ‘मथुरा नरेश श्री कंस महाराज’ बोलकर उसकी फोटो पर दूध चढ़ाया जाएगा! फिर कोई नया संगठन निकलेगा— 'हिरण्यकश्यप पुनरुद्धार मिशन', और फिर सोशल मीडिया पर नए मीम्स चलेंगे—

'रावण जी को जलाना बंद करो! उन्होंने अपनी बहन की इज्जत बचाने के लिए काम किया था!'

वाह रे भक्तों!

संस्कृति बचाइए, कॉमेडी मत बनाइए!

हमारा देश ज्ञान और तर्क की भूमि रहा है. लेकिन जब भक्ति को बुद्धिहीनता का प्रमाण पत्र बना दिया जाए, तो फिर त्योहार भी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के प्रोजेक्ट लगने लगते हैं, जहां जो भीड़ में दिखे, बस उसका जयकारा लगा दो!

तो भाइयों-बहनों, अगली बार होलिका दहन करने जाएं, तो कम से कम एक बार कहानी ठीक से पढ़ लीजिए! वरना हो सकता है कि अगले साल से ‘होलिका लीला महोत्सव’ मनाने की नौबत आ जाए, और भक्तों का नया नारा हो- 'लंकेश रक्षा दल ज़िंदाबाद!'

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