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पीड़ित पक्ष नाकाम: 8 साल बाद मिला इंसाफ, जज ने लड़की को नाबालिग साबित न कर पाने पर पॉक्सो आरोपी को किया बरी

मुंबई विशेष कोर्ट के न्यायाधीश एनडी खोसे ने कहा कि मेरे विचार से अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूत कम हैं. कमजोर सबूत आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. यदि ऐसा होता, तो मेरे विचार से, आरोपी संदेह का लाभ पाने का हकदार है. इसलिए, उसे बरी किया जाता है.

पीड़ित पक्ष नाकाम: 8 साल बाद मिला इंसाफ, जज ने लड़की को नाबालिग साबित न कर पाने पर पॉक्सो आरोपी को किया बरी
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( Image Source:  ANI )

मुंबई में पॉक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों में लड़की का उम्र साबित करना सबसे अहम फैक्टर माना जाता है. एक ऐसा ही मामला न्यायिक एंगल से बड़ा मोड़ लेता दिखा, जब पीड़ित पक्ष लड़की की उम्र नाबालिग साबित करने में असफल रहा. अदालत ने उम्र, मेडिकल और डॉक्यूमेंट्री साक्ष्यों की कमी को गंभीर मानते हुए 8 साल से जेल में बंद आरोपी को बरी कर दिया. फैसले में कोर्ट ने कहा कि 'संदेह का लाभ आरोपी को दिया जाना चाहिए.”

आठ साल जेल में रहने के बाद 56 साल के एक ड्राइवर पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर जज ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने सबूत पेश किए हैं, वो आरोपी को दोषी साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं कहे जा सकते. पॉक्सो कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष पीड़ित की उम्र और मानसिक क्षमता को साबित करने में विफल रहा. वहीं, बचाव पक्ष ने पिछले विवाद के कारण झूठे केस में फंसाए जाने का तर्क दिया.

विशेष न्यायाधीश एनडी खोसे ने कहा, "मेरे विचार से, अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए सबूत कम हैं और आरोपी के अपराध को उचित संदेह से परे साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. यदि ऐसा होता, तो मेरे विचार से, आरोपी संदेह का लाभ पाने का हकदार है."

आरोपी को साजिशन फंसाया

आरोपी का बचाव करने वाले वकील कलाम शेख और वैशाली सावंत ने कहा कि लड़की के परिवार और उसके बीच पिछले विवाद के कारण उसे झूठा फंसाया गया था. वकीलों ने कहा, "ऐसा कोई दस्तावेजी सबूत रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया है जो यह दिखाए कि पीड़िता असामान्य है. मेडिकल सबूत भी अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं कर रहे हैं."

POCSO एक्ट में दर्ज हुआ था मामला

मुंबई पुलिस ने इस मामले में FIR 24 अगस्त, 2017 को दर्ज की गई थी. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि यह घटना 23 अगस्त, 2017 को रात 8 बजे से 8.30 बजे के बीच एक झुग्गी बस्ती में हुई थी. पुलिस पीड़ित की शिकायत पर पॉक्सो एक्ट में मुकदमा दर्ज किया था.

लड़की मां साबित नहीं कर पाई दावा

लड़की की मां ने दावा किया कि जब वह बाजार में थी और उसके बेटे बाहर थे, तो आरोपी, जो एक पड़ोसी था, उनके घर में घुस गया। कथित तौर पर 17 साल की "कम समझ" वाली लड़की ने बाद में अपनी मां को बताया कि आरोपी ने उसे चूमा था और शारीरिक संबंध बनाए थे.

लड़की के नाबालिग होने का सबूत पर्याप्त नहीं

जज ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन "पक्का, भरोसेमंद और असली दस्तावेजी सबूत" देने में नाकाम रहा, जिससे यह साबित हो सके कि लड़की 18 साल से कम उम्र की थी. "मेरे हिसाब से, (जन्म) सर्टिफिकेट... कई वजहों से प्रॉसिक्यूशन के लिए फायदेमंद नहीं कहा जा सकता... इतना ही नहीं, सर्टिफिकेट से... यह पता चलता है कि लड़की के माता-पिता के नाम वैसे नहीं लिखे हैं जैसे एक रिपोर्ट में बताए गए हैं... ऐसे में, मेरे हिसाब से, यह कहा जा सकता है कि प्रॉसिक्यूशन ने घटना की कथित तारीख पर लड़की की सही उम्र साबित करने के लिए कोई भरोसेमंद दस्तावेजी सबूत रिकॉर्ड पर पेश नहीं किया है."

जज ने कहा कि FIR में जन्म का साल 2000 बताया गया था. जबकि स्कूल सर्टिफिकेट में 2002 लिखा था. हालांकि प्रॉसिक्यूशन ने यह साबित करने की कोशिश की कि लड़की का IQ 36 था, लेकिन जज को यह दावा साबित नहीं लगा.

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