मणिपुर में अशांति के बीच सियासी संकट! सहयोगी NPP ने BJP का छोड़ा साथ, क्या सत्ता में रहेगी बीरेन सिंह सरकार?
Manipur violence fallout: मणिपुर में हिंसक विरोध प्रदर्शन के बीच बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. सहयोगी एनपीपी ने बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. हाल की हिंसक घटनाओं में जिरीबाम जिले में उग्रवादियों की ओर से तीन महिलाओं और तीन बच्चों की हत्या से आक्रोशित लोगों ने राज्य के तीन मंत्रियों और छह विधायकों के आवासों पर हमला किया था.

Manipur violence fallout: मणिपुर में हिंसा ने राज्य में अशांति तो फैलाई ही थी, लेकिन सियासी संकट भी तेज हो गई है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सहयोगी कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) ने बीरेन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया है. मणिपुर विधानसभा चुनाव 2022 में NPP के सात विधायक जीते थे.
एनपीपी का समर्थन वापस लेने के बाद सरकार का बहुमत कम हो गया है, फिर भी सरकार सुरक्षित है क्योंकि बीजेपी के पास कुल 32 विधायक हैं (ECI के आंकड़ों के अनुसार), जो आवश्यक बहुमत संख्या (31) से एक अधिक है. इसके अलावा BJP को नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) के पांच विधायकों, JD(U) के एक विधायक और तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है.
'बीरेन सिंह हो गई फेल'
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को आधिकारिक पत्र में NPP चीफ कोनराड संगमा ने संकट को हल करने में विफल होने के लिए सरकार पर कड़ी टिप्पणी की है. संगमा ने लिखा, 'हमें लगता है कि बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर राज्य सरकार संकट को हल करने और सामान्य स्थिति बहाल करने में पूरी तरह विफल रही है. मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए, नेशनल पीपुल्स पार्टी ने मणिपुर राज्य में बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार से अपना समर्थन तत्काल प्रभाव से वापस लेने का फैसला किया है.'
गठबंधन सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली NPP के मणिपुर विधानसभा में विधायक की लिस्ट
- शेख नूरुल हसन - क्षेत्रिगाओ विधानसभा क्षेत्र
- खुराइजम लोकेन सिंह - वांगोई विधानसभा क्षेत्र
- इरेंगबाम नलिनी देवी - ओइनम विधानसभा क्षेत्र
- थोंगाम शांति सिंह - मोइरांग विधानसभा क्षेत्र
- मयंगलामबम रामेश्वर सिंह - काकचिंग विधानसभा क्षेत्र
- एन. कायिसि - ताडुबी विधानसभा क्षेत्र
- जंगहेमलुंग पनमेई - तामेंगलोंग विधानसभा क्षेत्र
हिंसा रोकने में बीजेपी असफल?
हिंसा के कारण 2023 में कुकी और मीतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में अब तक कम से कम 250 लोगों की जान जा चुकी है और लगभग 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं. बीजेपी के नेतृत्व वाली राज्य और केंद्र सरकारें इस मुद्दे को सुलझाने और हिंसा को नियंत्रण में लाने में विफल रहने के कारण आलोचनाओं का शिकार हो रही हैं.