20 दिसंबर तक केरल HC ज्वाइन करना ही होगा... कौन हैं जस्टिस निशा बानो, जिन्हें राष्ट्रपति ने दिया ये आदेश?
मद्रास हाईकोर्ट की स्थायी जज न्यायमूर्ति जे. निशा बानो का केरल हाईकोर्ट ट्रांसफर अब संवैधानिक बहस का विषय बन गया है. ट्रांसफर के लगभग दो महीने बाद भी पदभार न संभालने पर राष्ट्रपति ने सीधे हस्तक्षेप करते हुए उन्हें 20 दिसंबर 2025 तक केरल हाईकोर्ट ज्वाइन करने का निर्देश दिया है. यह आदेश भारत के चीफ जस्टिस से परामर्श के बाद जारी किया गया.
मद्रास हाईकोर्ट की स्थायी जज न्यायमूर्ति जे. निशा बानो के ट्रांसफर को लेकर न्यायिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है. केरल हाईकोर्ट में ट्रांसफर हुए लगभग दो महीने बीत जाने के बावजूद उन्होंने अब तक नया पदभार ग्रहण नहीं किया, जिसके बाद राष्ट्रपति ने सीधे हस्तक्षेप करते हुए 20 दिसंबर, 2025 तक केरल हाईकोर्ट में कार्यभार संभालने का निर्देश जारी कर दिया है.
स्टेट मिरर अब WhatsApp पर भी, सब्सक्राइब करने के लिए क्लिक करें
कानून मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना में साफ कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति ने भारत के चीफ जस्टिस से परामर्श के बाद यह फैसला लिया है. यह मामला अब केवल एक प्रशासनिक देरी नहीं, बल्कि न्यायिक अनुशासन और संवैधानिक प्रक्रिया से जुड़ा बड़ा सवाल बन गया है.
राष्ट्रपति की अधिसूचना में क्या कहा गया?
कानून मंत्रालय द्वारा जारी नोटिफिकेशन के अनुसार “राष्ट्रपति, भारत के चीफ जस्टिस से परामर्श करने के बाद मद्रास हाईकोर्ट की जज न्यायमूर्ति जे. निशा बानो को 20 दिसंबर 2025 को या उससे पहले केरल हाईकोर्ट में अपना पदभार ग्रहण करने का निर्देश देते हुए प्रसन्न हैं.” यह निर्देश ऐसे समय आया है, जब जस्टिस बानो के पदभार न संभालने को लेकर केरल हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में असंतोष बढ़ता जा रहा था.
कब हुआ था जस्टिस बानो का ट्रांसफर?
केंद्र सरकार ने 14 अक्टूबर, 2025 को न्यायमूर्ति जे. निशा बानो के मद्रास हाईकोर्ट से केरल हाईकोर्ट ट्रांसफर की अधिसूचना जारी की थी. हालांकि, अधिसूचना जारी होने के बावजूद जस्टिस बानो ने न तो केरल हाईकोर्ट में पदभार संभाला और न ही मद्रास हाईकोर्ट में काम करना बंद किया.
देरी की वजह क्या बताई जस्टिस बानो ने?
पिछले महीने एक समाचार पत्र से बातचीत में जस्टिस बानो ने स्पष्ट किया था कि उन्होंने अपने बेटे की शादी के चलते अर्जित अवकाश के लिए आवेदन किया था. साथ ही उन्होंने अपने ट्रांसफर पर पुनर्विचार (Reconsideration) की भी मांग की थी. उनका कहना था कि वह इन दोनों प्रक्रियाओं के परिणाम का इंतजार कर रही थीं.
केरल हाईकोर्ट बार में क्यों बढ़ी बेचैनी?
जस्टिस बानो के लगातार मद्रास हाईकोर्ट में काम करते रहने से केरल हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में असमंजस की स्थिति बन गई. बार के सदस्यों का मानना था कि ट्रांसफर आदेश के बाद किसी जज का पुराने हाईकोर्ट में कार्यरत रहना संवैधानिक रूप से अस्पष्ट स्थिति पैदा करता है.
लोकसभा में उठा मामला, कांग्रेस सांसद ने पूछे तीखे सवाल
यह मुद्दा संसद के शीतकालीन सत्र में भी गूंजा. कांग्रेस सांसद केएम सुधा आर ने 13 दिसंबर को लोकसभा में सवाल उठाते हुए पूछा-क्या जस्टिस बानो अब भी मद्रास हाईकोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा हैं? क्या उन्होंने जजों की नियुक्ति से जुड़ी किसी अनुशंसा पर हस्ताक्षर किए हैं? क्या उन्होंने आधिकारिक रूप से ट्रांसफर पर पुनर्विचार की मांग की थी?
कानून मंत्री का जवाब: संविधान की व्याख्या, सीधे जवाब से परहेज़
इन सवालों पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सीधे जवाब देने के बजाय संवैधानिक ढांचे की व्याख्या की. उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 217 का हवाला देते हुए कहा कि जब किसी जज को दूसरे हाईकोर्ट में ट्रांसफर किया जाता है, तो उसका वर्तमान पद स्वतः रिक्त हो जाता है. उन्होंने स्पष्ट किया कि जस्टिस बानो का ट्रांसफर अनुच्छेद 217(1)(ग) के तहत किया गया है, जिसके अनुसार राष्ट्रपति द्वारा ट्रांसफर किए जाने पर जज का पद रिक्त माना जाता है.
न्यायिक व्यवस्था पर उठे सवाल, विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि जजों का ट्रांसफर न्यायिक स्वतंत्रता और संतुलन के लिए आवश्यक है. हालांकि, व्यक्तिगत कारणों से अत्यधिक देरी को अनुशासनहीनता के रूप में भी देखा जा सकता है. राष्ट्रपति का यह स्पष्ट निर्देश न्यायपालिका के भीतर एक मजबूत संदेश माना जा रहा है कि ट्रांसफर आदेश का पालन अनिवार्य है. अब सवाल सिर्फ एक है कि क्या न्यायमूर्ति जे. निशा बानो 20 दिसंबर, 2025 तक केरल हाईकोर्ट में पदभार संभालेंगी? या फिर यह मामला आगे किसी और संवैधानिक बहस की ओर बढ़ेगा?





