महाराष्ट्र में किसी पार्टी को अकेले दम पर नहीं मिलता बहुमत, आखिर कब तक जारी रहेगी गठबंधन की राजनीति?
Maharashtra Coalition Politics: महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बनाने का सिलसिला 1995 से शुरु हुआ है, जो अभी तक जारी है. आगे भी गठबंधन की ही सरकार बनने की संभावना है. यहां पिछले 34 सालों में किसी भी पार्टी को अकेले दम पर बहुमत नहीं मिला. देखें यह खास रिपोर्ट...

Maharashtra Coalition Politics: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे. महायुति और महाविकास आघाड़ी, दोनों गठबंधन अपनी सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं. सरकार किसी भी गठबंधन की बने, लेकिन यह बात साफ है कि किसी भी पार्टी को अकेले दम पर पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा. उसे सरकार बनाने के लिए अन्य पार्टियों पर निर्भर रहना पड़ेगा.
महाराष्ट्र में पिछले 34 सालों से किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है... यानी कोई भी पार्टी 145 सीटें नहीं हासिल कर पाई है. राज्य में गठबंधन सरकार बनाने का जो सिलसिला 1995 में शुरू हुआ, वह अभी तक जारी है. इस बार यहां 66.05 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 1995 के बाद सबसे ज्यादा है.
बीजेपी ने सबसे ज्यादा 148 सीटों पर लड़ा चुनाव
महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा सीटें हैं. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने सबसे ज्यादा 148 सीटों पर चुनाव लड़ा. उसे सरकार बनाने के लिए एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी पर निर्भर रहना पड़ेगा. इसी तरह कांग्रेस को भी उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी पर निर्भर रहना होगा. कांग्रेस 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
1962 में हुआ पहला विधानसभा चुनाव
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र का गठन 1 मई 1960 को हुआ, जिसके बाद 1962 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में कांग्रेस ने 215 सीटें हासिल करते हुए पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. इसके बाद 1967 में भी कांग्रेस की सरकार बनी. कांग्रेस को 203 सीटें मिलीं.
1978 के चुनाव में कांग्रेस का विभाजन होने के बाद जनादेश खंडित हो गया. इस चुनाव में कांग्रेस को 69, कांग्रेस (आई) को 62 और जनता पार्टी को 99 सीटें मिलीं. शरद पवार ने तब सीएम वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार का दामन छोड़कर 40 बागियों के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) का गठन किया. उन्होंने जनता पार्टी और पीजेंट एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया की मदद से प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार बनाई.
38 साल की उम्र में सीएम बने शरद पवार
शरद पवार 38 साल की उम्र में सीएम बने. हालांकि वे ज्यादा दिन तक इस पद पर नहीं रह सके. 1980 में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद हुए मध्यावधि चुनावों में कांग्रेस ने 186 सीटों पर जीत दर्ज किया, जबकि उसके गुट INC (U) को 47 सीटें हासिल हुईं. बाद में INC (U) का कांग्रेस में विलय हो गया.
6 अप्रैल 1980 को बीजेपी जनसंघ की राजनीतिक शाखा के रूप में सामने आई. शिवसेना यूं तो 19 जनवरी 1966 से ही अस्तित्व में थी, लेकिन उसने खुद को स्थानीय निकायों के चुनाव तक ही सीमित रखा. शिवसेना ने 1989 के बाद बीजेपी के साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ना शुरू किया.
1995 में शिवसेना के मनोहर जोशी बने सीएम
महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस का दबदबा 1962 से 1990 तक जारी रहा. 1990 के चुनाव में उसने 141 सीटें जीतीं, जबकि शिवसेना को 52 और भाजपा को 42 सीटें मिलीं. 1995 में शिवसेना को 73 और भाजपा को 65 सीटें मिलीं, जिसके बाद 40 बागियों को साथ लेकर दोनों पार्टियों ने सरकार बनाई. शिवसेना नेता मनोहर जोशी सीएम और भाजपा के गोपीनाथ मुंडे डिप्टी सीएम बने. इस चुनाव में कांग्रेस महज 80 सीटों पर सिमटकर रह गई.
शरद पवार ने 10 जून 1999 को कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया. उस समय राज्य में दो सक्रिय राजनीतिक मोर्चे थे: कांग्रेस-एनसीपी बनाम शिवसेना-बीजेपी. 1999 से 2019 तक महाराष्ट्र में लगातार गठबंधन सरकारें बनीं. 1999 से 2009 के बीच कांग्रेस-एनसीपी ने राज्य पर शासन किया और शिवसेना-बीजेपी विपक्ष में रहीं.
बीजेपी को देवेंद्र फडणवीस के रूप में मिला पहला सीएम
2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 122 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. उसने63 सीटें जीतने वाली शिवसेना की मदद से सरकार बनाई और भाजपा को देवेंद्र फडणवीस के रूप में महाराष्ट्र का पहला मुख्यमंत्री मिला. इस सरकार ने पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
2019 में उद्धव ठाकरे बने सीएम
2019 के विधानसभा चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे भाजपा से अलग होकर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में शामिल हो गए और मुख्यमंत्री बन गए. इसके बाद ऑपरेशन लोटस हुआ, जिसके बाद शिवसेना दो हिस्सों में बंट गई. जून 2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बीजेपी और शिवसेना ने सरकार बनाई.
एक साल बाद, जुलाई 2023 में अजित पवार के अपने चाचा शरद पवार से अलग होकर महायुति में शामिल होने के बाद एनसीपी दो गुटों में विभाजित हो गई. इस तरह गठबंधन की सरकार आगे भी जारी रहने की संभावना है, क्योंकि दोनों गठबंधन में तीन-तीन प्रमुख पार्टियां शामिल हैं.