'शरीयत से नहीं कानून से बनेगी बात', मुस्लिम कपल के तलाक पर भड़का मद्रास हाई कोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने एक मुस्लिम कपल के तलाक मामले पर सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि जब कोई पत्नी अपने मुस्लिम पति से मिले तलाक के बाद विवाद करती हैं, तो ये जरूरी है कि पति इसका लीगल अनाउंसमेंट करे. वह कोर्ट और कानून के हिसाब से ये सार्वजनिक करें कि उनकी शादी टूट गई है.

Madras High Court: भारत ने तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन इसके बाद भी मु्स्लिम समुदाय में पुरुष अपनी पत्नी को शरीयत कानून का हवाला देकर तलाक देते हैं. अब ऐसे ही एक मामले पर मद्रास कोर्ट ने सुनवाई की. कोर्ट ने कहा कि भारत में तलाक शरीयत के हिसाब से मान्य नहीं होगा बल्कि डिवोर्स पेपर पर कोर्ट का स्टांप जरूरी है.
हाईकोर्ट ने कहा कि जब कोई पत्नी अपने मुस्लिम पति से मिले तलाक के बाद विवाद करती हैं, तो ये जरूरी है कि पति इसका लीगल अनाउंसमेंट करे. वह कोर्ट और कानून के हिसाब से ये सार्वजनिक करें कि उनकी शादी टूट गई है.
तलाक मामले पर कोर्ट में सुनवाई
कोर्ट ने शरीयत परिषद के तलाक प्रमाण पत्र को चौंकाना वाला और गैरकानूनी बताया, जिसमें तलाक में सहयोग करने के लिए पत्नी को दोषी ठहराया था. कोर्ट ने कहा कि शरीयत परिषद की ओर से जारी ये सर्टिफिकेट वैध नहीं है क्योंकि केवल कोर्ट ही तलाक पर निर्णय ले सकती है. पति को दूसरी शादी करने की स्वतंत्रता थी, लेकिन उसने कोई न्यायिक घोषणा नहीं की थी कि उसकी पहली शादी कानूनी रूप से भंग हो गई है. इसलिए पत्नी हर्जाना मांगने की हकदार है.
क्या है मामला?
एक मुस्लिम महिला ने पति के खिलाफ याचिका दायर की. जिसमें उसने पत्नी को मुआवजा देने की बात कही थी. पत्नी ने घरेलू हिंसा से महिलाओं को संरक्षण अधिनियम की धाराओं में केस दर्ज कराया था. इस संबंध में मजिस्ट्रेट ने पति को पत्नी को मुआवजे के रूप में 5 लाख रुपये और उनके बच्चे के भरण-पोषण के लिए 25,000 रुपये महीने देने का निर्देश दिया. पति ने इस आदेश को चुनौती दी. उसने कहा कि तलाक बोलकर पहली शादी को खत्म करने के बाद दूसरी शादी कर ली. पत्नी ने इस पर आपत्ति जताई और हाईकोर्ट का दरवजा खटखटाया.
कोर्ट जा सकती हैं महिलाएं
मद्रास हाईकोर्ट ने बादर सईद बनाम भारत संघ, 2017 मामले में अंतरिम रोक लगा दी. कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तहत महिला फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर विवाह को खत्म करने के अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकती है. ये प्रक्रिया जमात के कुछ सदस्यों के स्वघोषित निकाय के समक्ष नहीं हो सकती है.
कोर्ट ने रद्द किया प्रमाणपत्र
कोर्ट ने शरीयत काउंसिल द्वारा जारी किया गया. खुला प्रमाणपत्र रद्द कर दिया. हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता और उनकी पत्नी को निर्देश दिया कि वे अपने विवादों को सुलझाने के लिए फैमिली कोर्ट से संपर्क करें.