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खुद की बेटी का घर बसाया तो दूसरों को क्यों बना रहे संन्यासी? सद्गुरू से मद्रास HC का सवाल

ईशा फाउंडेशन पर कोयंबटूर के कृषि यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने केस किया है कि सद्गुरू ने उनकी बेटियों को संन्यासी बनने के लिए मजबूर किया है. कोर्ट ने मामले की जांच का आदेश दिया है और सद्गुरू से सवाल भी किया है कि जब उन्होंने खुद अपनी बेटी की शादी करवाई है तो और लड़कियों को संन्यासी की तरह जीने के लिए क्यों बढ़ावा दे रहे है?

खुद की बेटी का घर बसाया तो दूसरों को क्यों बना रहे संन्यासी? सद्गुरू से मद्रास HC का सवाल
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Sadguru Pic Credit- ANI
प्रिया पांडे
Edited By: प्रिया पांडे

Published on: 1 Oct 2024 12:59 PM

मद्रास हाई कोर्ट के जज एस एम सुब्रमण्यम और जज वी शिवगणनम की बेंच ने ईशा फाउंडेशन के फाउंडर सद्गुरू से सवाल पूछा है कि जब उन्होंने अपनी बेटी की शादी कराई है तो वो और लड़कियों को संन्यासियों की तरह जीने को क्यों बढ़ावा दे रहे हैं. एक रिटायर्ड प्रोफेसर ने सद्गुरू पर ये आरोप लगाया है कि उनकी दो बेटियों का ब्रेनवॉश कर उनको ईशा योगा सेंटर में रहने के लिए मजबूर किया गया है.

एस कामराज, कोयंबटूर में तमिलनाडु कृषि यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर है. प्रोफेसर ने अपनी बेटियों को अदालत में पेश होने की मांग के लिए अर्जी दायर की है. उन्होंने पहले भी अपनी बेटियों को पेश होने के लिए कोर्ट में मामला दायर किया था.

बेटियों की गवाही

प्रोफेसर की दोनों ही बेटियां सोमवार को कोर्ट में पेश हुई थी. दोनों, जिनकी उम्र 42 और 39 है, ने कहा कि वो अपनी मर्जी से ईशा फाउंडेशन में रह रही है. उन पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया गया है. इसके पहले भी दोनों ने कोर्ट में ऐसे ही गवाही दी थी क्योंकि इनके पेरेंट्स का दावा था कि उनकी जिंदगी इनके न रहने से नरक बन गई है.

कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने आगे मामले की जांच का आदेश दिया है और साथ ही पुलिस को ये निर्देश भी दिया है कि ईशा फाउंडेशन से संबंधित सभी मामलों की लिस्ट तैयार करें.

कोर्ट की टिप्पणी

जज शिवगनम ने कहा कि, "हम जानना चाहते हैं कि जिस व्यक्ति ने अपनी बेटी की शादी की है और उसे जीवन में सही तरीके से सेटल कर दिया, वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और संन्यासिनी का जीवन जीने के लिए क्यों बढ़ावा दे रहा है."

ईशा फाउंडेशन का जवाब

ईशा फाउंडेशन ने दावा किया कि महिलाएं अपनी इच्छा से संस्था के साथ रहना चाहती हैं. उन्होंने कहा, "हमारा मानना ​​है कि एडल्ट्स के पास अपना रास्ता चुनने की फ्रीडम है. उनके पास इसे तय करने के लिए दिमाग भी है. हम शादी और संन्यासी बनने के लिए किसी पर दबाव नहीं बना सकते. ये सबका अपना निजी विकल्प है. ईशा योग सेंटर में हजारों ऐसे लोगों को जगह मिलती है जो संन्यासी नहीं हैं, साथ ही कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने ब्रह्मचर्य या संन्यासी बनने का तय कर लिया है."

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