किस मामले में फंस गई माधवी पुरी बुच? कोर्ट ने दिया पूर्व सेबी चीफ समेत अन्य पांच के खिलाफ FIR का आदेश
Stock Market Fraud: मुंबई की एक अदालत ने एंटी-करप्शन ब्यूरो को सेबी की पूर्व अध्यक्ष माधवी पुरी बुच और पांच अन्य अधिकारियों के खिलाफ कथित शेयर बाजार धोखाधड़ी के मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. पीटीआई के मुताबिक, बुच समेत अन्य अधिकारियों की भी जांच की जाएगी.

Stock Market Fraud: मुंबई की एक अदालत ने एंटी-करप्शन ब्यूरो को सेबी की पूर्व अध्यक्ष माधवी पुरी बुच और पांच अन्य अधिकारियों के खिलाफ कथित शेयर बाजार धोखाधड़ी के मामले में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है. पीटीआई के मुताबिक, बुच समेत अन्य अधिकारियों की भी जांच की जाएगी.
2024 के अंत में अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग ने तत्कालीन सेबी प्रमुख माधवी पुरी बुच के खिलाफ एक रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अडानी ग्रुप के विदेशी फंड में माधवी पुरी बुच और उनके पति की हिस्सेदारी है. साथ ही, इसमें अडानी ग्रुप और सेबी के बीच मिलीभगत का भी आरोप लगाया गया था.
इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए माधवी पुरी बुच और उनके पति ने कहा कि ये सभी दावे बेबुनियाद हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि उन्होंने कोई भी जानकारी नहीं छुपाई और हिंडनबर्ग के आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है.
न्यायाधीशों ने कहा कि आरोपों में संज्ञेय अपराध का संकेत मिलता है, जिसके चलते जांच आवश्यक है. उन्होंने कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सेबी की निष्क्रियता को देखते हुए न्यायिक हस्तक्षेप को आवश्यक बताया. सेबी ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह आदेश को चुनौती देने के लिए उचित कानूनी कदम उठाएगा. सेबी का तर्क है कि जिन अधिकारियों के नाम लिए गए हैं, वे उस समय अपने-अपने पदों पर नहीं थे. उन्होंने कहा, "अदालत ने सेबी को कोई नोटिस जारी किए बिना और हमें अपना पक्ष रखने का अवसर दिए बिना ही आवेदन स्वीकार कर लिया.'
इसके अलावा, सेबी ने यह भी कहा, 'आवेदक एक तुच्छ और आदतन मुकदमाकर्ता के रूप में जाना जाता है, जिसके पहले के कई आवेदन अदालत द्वारा खारिज किए जा चुके हैं, और कुछ मामलों में उस पर जुर्माना भी लगाया गया है. माधवी पुरी बुच का तीन साल का कार्यकाल, जिसमें उन्होंने बाजार नियामक की पहली महिला प्रमुख के रूप में सेवाएं दीं, 1 मार्च को समाप्त हो गया. अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने इक्विटी में तेज़ निपटान, एफपीआई प्रकटीकरण में सुधार और 250 रुपये के एसआईपी के जरिए म्यूचुअल फंड की पहुंच बढ़ाने जैसे कई अहम सुधार किए. हालांकि, उनके कार्यकाल का आखिरी साल विवादों से घिरा रहा.