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Life on Earth : हम सब परग्रही हैं? डार्विन ने समझाया अमीबा से इंसान, लेकिन अमीबा कहां से आया?

हम सब जानते हैं कि इंसान का अस्तित्व अमीबा से आया, लेकिन अमीबा की उत्पत्ति कैसे हुई? जीवन का जन्म धरती पर कैसे हुआ? क्या हम सब दरअसल परग्रही हैं? क्या जीवन का विकास सचमुच एक बाहरी ग्रह से हुआ था?

Life on Earth : हम सब परग्रही हैं? डार्विन ने समझाया अमीबा से इंसान, लेकिन अमीबा कहां से आया?
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करीब करोड़ों साल पहले, जब पृथ्वी जैसी कोई चीज़ भी नहीं थी, तब ब्रह्मांड में बस गैस, धूल और ऊर्जा का एक बड़ा समुद्र था. अंतरिक्ष में हर तरफ अंधेरा था. इसी अंधेरे में, एक मेटियोराइट बिना किसी दिशा के बस तैर रहा था. ये मेटियोराइट उस समय के कुछ पुरानी चीज़ों का हिस्सा था, जो शायद हम कभी समझ न पाएं. और इसी मेटियोराइट के अंदर था जीवन का एक गहरा राज—वो बिल्डिंग ब्लॉक्स यानी वो छोटे-छोटे कंपाउंड्स जो बाद में RNA और DNA का रूप लेंगे. लेकिन तब वो पूरी तरह से शांत थे, जैसे सो रहे हों.

ये ऑर्गनिक कंपाउंड्स, जो बाद में जीवन के रूप में दिखे, दूर के सितारों के फटने से बने थे. अब तक ये बिल्कुल निष्क्रिय थे, बस अंतरिक्ष में तैरते हुए अपने वक़्त का इंतजार कर रहे थे.

लाखों साल बाद, जब पृथ्वी बन रही थी, एक दिन ये मेटियोराइट धरती से टकरा गया. जब यह टकराया, तो अपने साथ एक क़ीमती खजाना लाया—वो थे जीवन बनाने के लिए जरूरी चीज़ें जैसे अमीनो ऐसिड्स, न्यूक्लियोटाइड्स, और दूसरे जैविक कंपाउंड्स, जो बाद में DNA और RNA जैसी जटिल संरचनाओं का हिस्सा बने.

समुद्र के गहरे तल में जीवन का जन्म

इन कंपाउंड्स ने धरती के शुरुआती समुद्रों में घुसते ही खुद को एक नया आयाम दिया. पृथ्वी की सतह पर बहुत बुरे हालात थे, लेकिन महासागर खाली नहीं थे. समुद्र की गहराई में, ज्वालामुखीय झरने गर्म पानी और खनिजों से भरपूर थे. यहीं, समुद्र के तल में, वो डेड कंपाउंड्स ने जल में घुले तत्वों के साथ मिलकर प्रतिक्रिया शुरू की. हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन—ये साधारण कंपाउंड्स अब एक नई यात्रा पर निकल पड़े. एक के बाद एक केमिकल रिएक्शंस ने इन कंपाउंड्स को जटिल संरचनाओं में बदल दिया.

समय के साथ, एक अद्भुत चीज़ हुई. RNA और DNA के राइबोन्यूक्लियोटाइड्स ने एक-दूसरे से मिलकर चैन बनानी शुरू कीं. अब वो अपने आप को रेप्लिकेट करने लगे. जो पहले छोटे-छोटे केमिकल मॉलिक्यूल थे, वे अब एक सॉलिड और स्ट्रक्चरड रूप में बदलने लगे थे, एक छोटी सी सेल बन कर. जो जीवन की शुरुआत थी.

जैसे-जैसे .केमिकल रिएक्शंस और जटिल होते गए, ये कंपाउंड्स अब अलग-अलग संरचनाएं बनाने लगे. एक साधारण RNA मॉलिक्यूल से अब पूरी एक सेल का निर्माण हो गया. यही थी जीवन की शुरुआत. वह जीव बहुत छोटा था, आंखों से नहीं दिखता था, लेकिन उसका अस्तित्व था.

यह जीवन उस छोटे से जीव से शुरू हुआ, जो बस एक साधारण सिंगल-सेल ऑर्गैनिज़्म था—जैसे एक छोटा सा अमीबा. और यहीं से जीवन की शुरुआत हुई. ये पहला कदम था, जिसे हम जीवन कह सकते हैं, और ये सभी बदलाव उस समय समुद्र में हो रहे थे.

अब जीवन बढ़ने लगा. शुरुआत में यह बहुत सिंपल था, लेकिन समय के साथ यह और जटिल होता गया. ये सिंगल-सेल ऑर्गैनिज़्म आपस में मिलकर और विकसित होते गए. फिर इनसे नए रूप सामने आए—पौधे, जानवर, इंसान. और ये सभी जीवन रूप उस पल से जुड़े हुए थे, जब वो मेटियोराइट धरती से टकराया था.

हम सब बाहरी ग्रहों से हैं

अब, सबसे बड़ी बात यह है कि हम सभी बाहरी ग्रहों से हैं. धरती पर जो भी जीवन है—चाहे वो बैक्टीरिया हो, पौधा हो, जानवर हो, या इंसान—यह सब उस मेटियोराइट से आया था, जो कभी एक खजाना लेकर पृथ्वी पर गिरा था. हम सभी के अंदर वही अंतरिक्षीय धूल और सितारों का जादू बसा हुआ है.

जैसे-जैसे हम अंतरिक्ष में और आगे बढ़ते हैं, नए ग्रहों और चांदों पर कदम रखते हैं, हो सकता है हमें और भी जीवन के संकेत मिलें. लेकिन फिलहाल, हम यही समझ सकते हैं कि हम सभी एक अनंत यात्रा का हिस्सा हैं, जो करोड़ों साल पहले सितारों से शुरू हुई थी और आज हमारे ग्रह पर जीवन के रूप में मौजूद है.

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