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रोजाना 100 रुपये कमाते थे मजदूर पिता! बेटा बना भारतीय सेना में 'लेफ्टिनेंट', संघर्ष की शानदार कहानी

23 साल के लेफ्टिनेंट काबिलन वी हाल ही में भारतीय सेना में शामिल हुए. उनके संघर्ष की कहानी की चर्चा अब लोगों की जुबां पर है. उनके स्ट्रगल का दिन आसान नहीं था. लेकिन इसके बावजूद अपने सपने को अधूरा नहीं छोड़ा और उसे पूरा किया.

रोजाना 100 रुपये कमाते थे मजदूर पिता! बेटा बना भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट, संघर्ष की शानदार कहानी
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( Image Source:  Social Media: X )
सार्थक अरोड़ा
Edited By: सार्थक अरोड़ा

Updated on: 15 Dec 2024 3:03 PM IST

कुछ लोग बड़े सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने का जज्बा भी रखते हैं. ऐसे ही छोटे से गांव में रहने वाले काबिलन वी की भी कहानी है. जिनके पिता मजदूरी करके अपना घर का गुजारा करते थे. कुछ ही साल पहले काबिलन की मां ने इस दुनिया को छोड़ दिया था. अपने सपने को पूरा करने की राह में काबिलन ने कई मुश्किलों का सामना तय किया. कई बार रिजेक्ट भी हुआ.

वहीं एक समय आया जब काबिलन ने NDRF के वॉलंटियर के रूप में काम किया और कई लोगों की जान बचाई. परिवार की जिम्मेदारी, वर्क बैलेंस और अपनी पढ़ाई को इस तरह संभाला कि आज उनकी चर्चा दूरो दूर हो रही है. काबिलन की कहानी ने कई लोगों के दिलों को छू लिया.

तीन साल पहले मां ने छोड़ा साथ

सेना में नियुक्त नए अधिकारियों में 23 साल के लेफ्टिनेंट काबिलन वी भी शामिल थे. टाइम्स ऑफ इंडिया कि रिपोर्ट के मुताबिक, अकादमी की पासिंग आउट मार्च परेड में मार्चिंग बूटों की गूंज रऔर गौरवान्वित परिवारों के जयकारों से भरी हुई थी. इस दौरान उनके बगल में ही उनके पिता वेट्रिसेल्वम पी, व्हीलचेयर से अपने बेटे को कामियाब होते देख रहे थे. तीन महीने पहले काबिलन के पिता को पैरालाइज्ड अटैक आया था. जिसके कारण वह सिर्फ अपने बेटे की जीत को चुपचाप देख सकते थे. वहीं इस दौरान काबिलन के हाथ में उनकी मां की तस्वीर दिखाई दी. जानकारी के अनुसार कैंसर और कोरोना महामारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी.

आसान नहीं था सफर

वहीं भले ही आज जीत के इस मुकाम तक पहुंचे हो. लेकिन यह जीत आसान नहीं थी. मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि कामयाबी के इस सफर में मैं कई बार फेल हुआ. जिस दौरान वो ये सब बता रहे थे, उनकी भरी आवाज से ये पता लग सकता था कि ये सफर सच में आसान नहीं था. उन्होंने कहा कि मुझे डिफेंस फोर्स में शामिल होना था और अपने इस सपने को मैंने पूरा भी किया.

काबिलन ने कहा कि ये मेरी व्यक्तिगत सफलता नहीं है. यह सफलता उन सभी को समर्पित हैं जो भारतीय सेना में शामिल होने की इच्छा और सपना रखते हैं. इस दौरान भावुक होकर उन्होंने बताया कि मेरे जैसा अगर दिहाड़ी मजदूर का बेटा जो सिर्फ 100 रुपये कमाता है. ऐसा शख्स अगर अपने सपने को पूरा कर सकता है तो कोई भी ऐसा कर सकता है.

तमिलनाडु के गांव में पले बढ़े

आपको बता दें कि तमिलनाडु के छोटे से गांव मेलू में काबिलन ने अन्ना विश्वविद्यालय से अपनी सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री की. इससे पहले एक सरकारी स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी की. वहीं सेना में शामिल होने का सपना उन्हें मुश्किल सा लग रहा था. लेकिन अपने इस सपने को पूरा करने का प्रयास छोड़ा नहीं और इसे जारी रखा.

परिवार के लिए बने सहारा

वहीं अपनी मां के निधन के बाद अपने परिवार की रीढ़ की हड्डी बनकर सभी की देखभाल की. अपने छोटे भाई की सिविल सेवा को पूरा करने के सपने में साथ दिया. अपनी जिम्मेदारियां और उसके साथ NDRF में जॉइन होकर वॉलेंटियर के रूप में काम किया. वहीं अपने सपने को पूरा करने के साथ-साथ अपने सपने को पूरा करना था. इसलिए ये आसान नहीं था.

200 लोगों की जान बचाई

वहीं चेन्नई और कन्याकुमारी बाढ़ में राहत बचान अभियान के दौरान काबिलन ने साहस दिखाते हुए लगभग 200 लोगों की जान बचाई. अपने पर्सनल लाइफ और वर्क लाइफ को बैलेंस करते हुए भी पढ़ाई का समय निकाला. इसकी जानकारी देते हुए कहा कि मैं सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक काम पर जाता था, और घर लौटने के बाद शाम 6 से 10 बजे तक, मैं सेना में शामिल होने के लिए इस प्रतिष्ठित परीक्षा को पास करने के इच्छुक छात्रों के एक समूह के साथ अपनी पढ़ाई करता था.

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