SIR में खेला होबे! वोटर लिस्ट में मजदूर का बेटा निकला तृणमूल नेता, दफ्तरों के चक्कर काटने के बाद भी निल बट्टे सन्नाटा
पश्चिम बंगाल में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) का मकसद मतदाता सूची को दुरुस्त करना था. लेकिन इस प्रक्रिया ने काकद्वीप के एक बुजुर्ग मजदूर के जीवन में ऐसा डर पैदा कर दिया, जो वोट डालने के अधिकार से कहीं आगे है. 70 साल के बसुदेव दास आज इस बात को लेकर परेशान नहीं हैं कि उनका नाम मतदाता सूची में रहेगा या नहीं, बल्कि इस डर में जी रहे हैं कि कहीं कोई अजनबी उनके बेटे के नाम पर उनकी ज़मीन और घर पर दावा न कर दे. यही सवाल अब SIR प्रक्रिया पर भी खड़े हो रहे हैं. क्या यह सुधार है या आम लोगों की पहचान के साथ एक खतरनाक प्रयोग?
बंगाल में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के नाम पर मतदाता सूची को दुरुस्त करने की कवायद अब खुद सवालों के घेरे में आ गई है. काकद्वीप के एक साधारण मजदूर के लिए यह प्रक्रिया पहचान सुधारने की नहीं, बल्कि नई मुसीबत बनकर सामने आई है. वोटर लिस्ट देखने पर उसे पता चला कि कागजों में उसका ‘बेटा’ कोई और नहीं, बल्कि तृणमूल कांग्रेस का एक स्थानीय नेता है, जिसे वह न तो जानता है और न ही उससे कोई पारिवारिक रिश्ता रखता है.
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टेलीग्राफ ऑनलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे हैरानी की बात यह है कि इस गड़बड़ी को ठीक कराने के लिए बुजुर्ग मजदूर ने स्कूल शिक्षकों से लेकर बीडीओ, एसडीओ और यहां तक कि मुख्य निर्वाचन अधिकारी के दफ्तर तक चक्कर काटे, लेकिन अब तक उसे सिर्फ आश्वासन ही मिला है, समाधान नहीं है. वह इस बात से परेशान है कि भविष्य में वह उनकी जमीन पर अपना हक न मांग ले. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या SIR वाकई मतदाता सूची को सही करने का जरिया है, या फिर इसमें ऐसी चूकें हो रही हैं जो आम लोगों की पहचान, संपत्ति और भविष्य को खतरे में डाल रही हैं?
जब पिता के नाम पर जुड़ गए ‘अनजान बच्चे’
दक्षिण 24 परगना के काकद्वीप इलाके के पूर्व गोविंदपुर गांव में रहने वाले बसुदेव दास के लिए यह खुलासा किसी झटके से कम नहीं था. SIR के दौरान उन्हें बताया गया कि मतदाता सूची में उनके सिर्फ दो बेटे और एक बेटी ही नहीं, बल्कि कम से कम दो और बेटे दर्ज हैं और संभव है एक बेटी भी है. सबसे चौंकाने वाली बात यह कि इन नामों में एक नाम है संचय दास, जो उसी इलाके से तृणमूल कांग्रेस के जिला परिषद सदस्य हैं.
2002 से 2024 तक, वही वोटर आईडी, वही पिता
जांच करने पर सामने आया कि 2002 की मतदाता सूची में संजय दास को बसुदेव का बेटा बताया गया था. वहीं 2024 की लोकसभा चुनाव वाली वोटर लिस्ट में संचय दास को बसुदेव दास का पुत्र दिखाया गया. हैरानी की बात यह कि दोनों नामों के साथ वोटर आईडी नंबर भी एक ही है. यानी नाम बदल गया, लेकिन पहचान और ‘पिता’ वही रहे.
‘मेरे दो ही बेटे हैं, ये कौन है?’
अपने घर की देहरी पर बैठे बसुदेव का कहना है कि 'मैं पूरी जिंदगी यहीं रहा हूं. गांव का हर आदमी जानता है कि मेरे दो बेटे और एक बेटी हैं. फिर ये संजय या संचय मेरा बेटा कैसे हो गया? उनका डर सीधा और गहरा है. अगर मेरे मरने के बाद वह मेरी जमीन पर दावा कर दे तो? यही मेरी पूरी कमाई है. मैं मरने से पहले सच सामने लाना चाहता हूं.'
अधिकारियों ने भी नहीं दिया जवाब
बसुदेव ने पहले स्थानीय स्कूल के शिक्षकों से बात की, फिर ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (BDO) और सब-डिविजनल ऑफिसर (SDO) को लिखित शिकायत दी. 26 नवंबर को उन्होंने साफ लिखा कि उनका कोई बेटा संजय या संचय नाम का नहीं है. इसके बावजूद न तो कोई जवाब मिला और न ही कोई ठोस कार्रवाई. इस हफ्ते वे कोलकाता स्थित मुख्य निर्वाचन अधिकारी के दफ्तर भी पहुंचे, लेकिन वहां से भी सिर्फ खामोशी मिली.
SIR के आंकड़े और बढ़ते सवाल
- SIR पूरा होने के बाद चुनाव आयोग ने करीब 1.67 करोड़ मतदाताओं को “लॉजिकल फ्लॉ” के दायरे में रखा है.
- सबसे ज्यादा 8.16 लाख मामले दक्षिण 24 परगना में सामने आए हैं-मृत, लापता और डुप्लिकेट वोटरों के.
- 2002 की सूची के 24 लाख से ज्यादा मतदाताओं को 2025 की सूची में छह से ज्यादा लोग ‘पैरेंट’ बता रहे हैं.
- बसुदेव दास के मामले में अब तक पांच लोग खुद को उनका बेटा या संतान बता चुके हैं.
ये आंकड़े SIR की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं.
SIR पर सबसे बड़ा सवाल
यह मामला सिर्फ बसुदेव दास का नहीं है. यह उस प्रणाली का सवाल है, जहां “सुधार” के नाम पर आम आदमी की पहचान, रिश्ते और अधिकार दांव पर लग रहे हैं. अगर एक मजदूर को यह साबित करने के लिए दफ्तर-दफ्तर भटकना पड़े कि उसका बेटा कौन है और कौन नहीं, तो SIR सच में सुधार है या एक नई समस्या? बसुदेव आज भी इंतजार कर रहे हैं-इंसाफ का, जवाब का और उस डर से मुक्ति का, जो एक वोटर लिस्ट ने उनके जीवन में पैदा कर दिया.





