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क्या पेरिस वाली गलती करने जा रही दिल्ली! जानें 1880 में यहां कुत्तों के साथ क्या हुआ था, मेनका गांधी ने बताया इतिहास

सुप्रीम कोर्ट ने कुत्तों को लेकर जो आदेश दिया है, उसका लोग जमकर विरोध कर रहे हैं. वहीं, एनिमल एक्टिविस्ट मेनका गांधी ने इस फैसले को पेरिस के उस फरमान से जोड़ा, जब 1800 के दशक में इस देश ने कुत्तों को हटाने का फैसला लिया.

क्या पेरिस वाली गलती करने जा रही दिल्ली! जानें 1880 में यहां कुत्तों के साथ क्या हुआ था, मेनका गांधी ने बताया इतिहास
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( Image Source:  Meta AI: Representative Image )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 13 Aug 2025 12:06 PM IST

कुत्ते हमेशा से इंसानों के सबसे अच्छे और वफादार साथी रहे हैं. वे न केवल हमारे घरों की रखवाली करते हैं, बल्कि कई बार हमें इमोशनली सहारा भी देते हैं. सड़कों पर रहने वाले ये आवारा कुत्ते भी हमारे समाज का हिस्सा हैं. ये न सिर्फ गली-मोहल्लों की निगरानी करते हैं. लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने इन बेज़ुबान जानवरों के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.

दरअसल एससी ने कहा कि दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद की सड़कों से सभी आवारा कुत्तों को हटाकर शेल्टर होम भेजा जाए. कोर्ट के इस फैसले से लोग खुश नहीं है. वहीं, इस मामले पर एक्स यूनियन मिनिस्टर और एनिमल राइट एक्टिविस्ट मेनका गांधी ने बताया कि अगर सरकार ऐसा करती है, तो भारत का हाल पेरिस जैसा हो जाएगा, जिन्होंने साल 1880 के दशक में ऐसा ही फैसला लिया था, जिसका असर उल्टा हुआ था.

मेनका ने कहा 'यह कदम उल्टा पड़ सकता है'

मेनका गांधी ने इस आदेश की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि ' यह आदेश सही नहीं है. इसके कारण न केवल आर्थिक बोझ बढ़ेगा बल्कि सबसे बड़ी परेशानी यह पर्यावरण से छेड़छाड़ है, क्योंकि इससे बैलेंस बिगड़ सकता है. 'उन्होंने चेतावनी दी कि यदि दिल्ली से सभी कुत्ते हटा दिए जाते हैं, तो दूसरे इलाकों जैसे गाजियाबाद और फरीदाबाद से लाखों कुत्ते दिल्ली की ओर खिंचे चले आएंगे क्योंकि यहां खाना आसानी से मिल जाता है.

पेरिस में 1880 के दशक में क्या हुआ था?

इतिहास भी इस बात की गवाही देता है कि ऐसे फैसले के खतरनाक नतीजे हो सकते हैं. दरअसल 1800 के दशक में पेरिस की सड़कों पर बड़ी संख्या में कुत्ते घूमते थे. प्रशासन ने उन्हें रेबीज़ और गंदगी का कारण मानते हुए हटाने का फैसला किया. इसके तहत 1880 के दशक में बड़ी संख्या में कुत्तों और बिल्लियों को मार दिया गया. पर नतीजा? सड़कों से जानवर तो हट गए, लेकिन जल्द ही शहर चूहों से भर गया. ये चूहे घरों तक घुस आए और बीमारियां फैलने लगीं. इस समय शहर में कोई भी ऐसा प्राकृतिक शिकारी नहीं बचा था जो चूहों को खा सके, क्योंकि कुत्ते और बिल्लियां तो पहले ही खत्म कर दिए गए थे.

सरकार क्या कर सकती है?

कुत्तों की जनसंख्या पर मानवीय तरीके से नियंत्रण किया जा सकता है, जैसे कि नसबंदी. लोगों को बताया जाए कि कुत्तों के साथ कैसे बर्ताव करना चाहिए. शेल्टर होम बनाए जाएं, लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा कुत्तों को वहां बंद न किया जाए.



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