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आखिर क्यों बदला पोर्ट ब्लेयर का नाम? जानें श्री विजयपुरम की कहानी

भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने 13 सितंबर को घोषणा कर बताया कि पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम रखा जाएगा. इस शहर का इतिहास बेहद पुराना है. इस शहर पर चोल साम्राज्य से लेकर बिटिश सरकार ने शासन किया था. यह शहर कई भयावह घटनाओं का भी साक्षी है.

आखिर क्यों बदला पोर्ट ब्लेयर का नाम? जानें श्री विजयपुरम की कहानी
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हेमा पंत
by: हेमा पंत

Updated on: 14 Sept 2024 1:25 PM IST

पोर्ट ब्लेयर, भारत के अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी है. इस राज्य पर चोल और ब्रिटिश साम्राज्य ने शासन किया है. हाल ही में नरेंद्र मोदी की सरकार ने पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलने की घोषणा की है. क्या आप जानते हैं पोर्ट ब्लेयर का नाम कैसे पड़ा. साथ ही, इस शहर का इतिहास कैसा रहा?

अमित शाह ने ट्विट कर दी जानकारी

देश को औपनिवेशिक छापों से मुक्त करने के प्रधानमंत्री @narendramodi जी के नजरिए से प्रेरित होकर, आज हमने पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर "श्री विजया पुरम" करने का फैसला किया है। जबकि पहले के नाम में औपनिवेशिक विरासत थी, श्री विजया पुरम हमारे स्वतंत्रता संग्राम में मिली विजय और उसमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अद्वितीय भूमिका का प्रतीक है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का हमारे स्वतंत्रता संग्राम और इतिहास में एक अद्वितीय स्थान है। यह द्वीप क्षेत्र जो कभी चोल साम्राज्य के नौसैनिक अड्डे के रूप में कार्य करता था, आज हमारी रणनीतिक और विकास आकांक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण आधार बनने के लिए तैयार है। यह वह स्थान भी है जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी ने पहली बार हमारा तिरंगा फहराया था और यह वह सेलुलर जेल भी है जहां वीर सावरकर जी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने एक स्वतंत्र राष्ट्र के लिए संघर्ष किया था।

क्या है चोल साम्राज्य की कहानी

माना जाता है कि चोल साम्राज्य की शुरुआत 9वीं सदी के आस-पास हुई थी.यह साम्राज्य दक्षिण भारत के चोलवंशीय शासकों द्वारा स्थापित किया गया. चोलों का इतिहास कावेरी नदी के डेल्टा क्षेत्र में बसा था, जो आज के तमिलनाडु राज्य में स्थित है.चोल साम्राज्य के पूर्वज वीर चोल थे, जिन्होंने साम्राज्य की नींव रखी और इस क्षेत्र को एक संगठित राज्य में बदलने की ओर काम किया.वहीं, चोल साम्राज्य का पतन 13वीं सदी के शुरुआत से होना शुरू हुआ.राजराजा चोल I, चोल साम्राज्य का सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली शासक था. उन्होंने अपने शासनकाल में साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया और चोल साम्राज्य को एक प्रमुख शक्ति बना दिया. राजराजा चोल I ने अपनी सैन्य शक्ति से कर्नाटिक, श्रीलंका (एलारा) और दक्षिणी भारत के कई हिस्सों को जीता. यही नहीं, राजा चोल की सेनाओं ने श्रीलंका के राजा को भी लड़ाया था.

जानें ब्रिटिश काल के शासन की कहानी

यह बात 19वीं सदी के मध्य की है, जब ब्रिटिश साम्राज्य ने इस राज्य के महत्व को समझा और इसे अपनी कॉलोनी के रूप में विकसित करने की योजना बनाई. वहीं, साल 1857-58 में हुए भारतीय विद्रोह में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध भारत में एक बड़ा विद्रोह छिड़ गया था, जो ब्रिटिश क्राउन की ओर से एक संप्रभु शक्ति के रूप में कार्य करती थी. इसके बाद से ही इस क्षेत्र को भयावह सजाओं के लिए चुना. उन्होंने यहां कई कैदियों को भेजा और पोर्ट ब्लेयर का विकास इसी समय शुरू हुआ.

अंग्रेजों ने क्यों किया था अंडमान पर कब्जा?

अंग्रेजो का इस राज्य पर कब्जा करने के कई कारण थे. इनमें से एक है इस राज्य का बंगाल की खाड़ी के मध्य में स्थित होना है. इसके कारण यह समुद्री मार्ग का एक अच्छा रास्ता बन जाता है.

स्वतंत्रता संग्राम से है संबंध

पोर्ट ब्लेयर का संबंध स्वतंत्रता संग्राम से है. यहां सेलुलर जेल बनाई गई, जिसे काला पानी की जेल भी कहा जाता था. यहां भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दंड दिया जाता था. इस जेल में बंधियों को ऐसी यातनाएं दी जाती थीं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. इस जेल में सिर्फ 1 खिड़की होती थी और दूर-दूर तक कुछ नहीं दिखता था. इस जेल में वीर सावरकर भी रहे हैं. इस कारण से इस जगह को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पीड़ा और बलिदान का प्रतीक माना जाता है.

किसके नाम पर रखा गया?

ब्रिटिश नौसेना और ईस्ट इंडिया कंपनी के ऑफिसर लॉर्ड ब्लेयर के नाम पर इस शहर का नाम रखा गया. कहा जाता है कि लॉर्ड ब्लेयर ने अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की खोज में अहम भूमिका निभाई थी.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने फहराया था झंडा

स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार पोर्ट ब्लेयर में ही भारतीय झंडा फहराया था. यह तिरंगा कांग्रेस का था, जिस पर बीच में चरखा बना था. इस समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान का नाम शहीद और निकोबार का नाम स्वराज रखा था.

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