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महिला की बॉडी पर कमेंट करना यौन उत्पीड़न के बराबर... केरल हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी

केरल हाईकोर्ट ने एक मामले में बड़ा फैसला लेते हुए कहा है कि महिला की बॉडी पर कमेंट करना भी यौन उत्पीड़न के समान है. यह मामला केरल का है, जहां महिला ने अपने साथ काम करने वाले शख्स पर आरोप लगाया था, जहां आरोपी ने पहले उसके खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया और फिर बाद में आपत्तिजनक मैसेज और वॉयस कॉल भेजना शुरू कर दिया.

महिला की बॉडी पर कमेंट करना यौन उत्पीड़न के बराबर... केरल हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी
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हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 8 Jan 2025 2:53 PM IST

केरल हाई कोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान बड़ा फैसला लिया, जिसमें जस्टिस ए बदरुद्दीन ने कहा कि महिला की शारीरिक बनावट पर किया गया कमेंट यौन उत्पीड़न के बराबर माना जाएगा. यह फैसला केरल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (KSEB) के एक पूर्व कर्मचारी की याचिका को खारिज करते हुए सुनाया.

बता दें कि व्यक्ति पर उसी के साथ काम करने वाली महिला ने यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया था. जहां महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने सबसे पहले 2013 से उसके खिलाफ गलत भाषा का इस्तेमाल किया और फिर 2016-17 में गंदे मैसेज और वॉयस कॉल भेजना शुरू कर दिया.

क्या है मामला?

महिला ने दावा किया कि KSEB और पुलिस में उसके खिलाफ शिकायत करने के बावजूद वह उसे आपत्तिजनक मैसेज भेजता रहा. महिला की शिकायतों के बाद आरोपी पर धारा 354ए (यौन उत्पीड़न) और 509 (महिला की गरिमा का अपमान करना) और केरल पुलिस अधिनियम की धारा 120(ओ) (अवांछित कॉल, लेटर, राइटिंग, मैसेज और कम्यूनिकेशन के किसी भी जरिए से उपद्रव करना) के तहत मामला दर्ज किया गया.

आरोपी ने की मामला खारिज करने की मांग

इस मामले को खारिज करने की मांग करते हुए आरोपी ने दावा किया कि किसी व्यक्ति के शरीर का अच्छा बॉडी स्ट्रक्चर होने का मात्र उल्लेख आईपीसी की धारा 354 ए और 509 तथा केरल पुलिस अधिनियम की धारा 120 (ओ) के दायरे में सेक्सुअली कलर्ड रिमार्क के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

आरोपी भेजता था गंदे मैसेज

दूसरी ओर महिला ने तर्क दिया कि आरोपी के कॉल और मैसेज में गंदे कमेंट्स थीं, जिनका मकसद उसे परेशान करना था. इस मामले में प्रॉसिक्यूशन की दलीलों से सहमति जताते हुए केरल उच्च न्यायालय ने आईपीसी की धारा 354ए और 509 तथा केरल पुलिस अधिनियम की धारा 120 (ओ) के तहत अपराध के लिए सही सबूत सामने आए हैं.

अदालत ने क्या कहा?

अदालत ने 6 जनवरी के अपने आदेश में कहा कि "मामले के तथ्यों पर गौर करने के बाद यह साफ है कि प्रॉसिक्यूशन का मामला खासतौर से पहली नजर में कथित अपराधों को आकर्षित करने के लिए बनाया गया है. ऐसे में यह आपराधिक विविध मामला खारिज हो जाता है. पहले से दिया गया अंतरिम आदेश निरस्त माना जाएगा."

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