दोस्त के मरने के बाद सोचा नहीं था कि जिंदा घर लौटूंगा: रूस-यूक्रेन युद्ध से लौटे कर्नाटक के शख्स ने बताई पूरी दास्तां
कर्नाटक के रहने वाले तीन लड़कों को एजेंटों में धोखा दिया और रूसी सेना में भर्ती कराया। उन्हें यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए कहा जाता था। जान की गुहार लगा रहे तीनों युवक सैयद इलियास हुसैनी, मोहम्मद समीर अहमद और सुकैन मोहम्मद अब घर लौट आए हैं। वह विदेश मंत्रालय की मदद से सकुशल भारत आ गए हैं।

कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के रहने वाले तीन लड़कों को एजेंटों में धोखा दिया और रूसी सेना में भर्ती कराया। उन्हें यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए कहा जाता था। जान की गुहार लगा रहे तीनों युवक सैयद इलियास हुसैनी, मोहम्मद समीर अहमद और सुकैन मोहम्मद अब घर लौट आए हैं। तीनों ने बताया कि वह विदेश मंत्रालय की मदद से सकुशल भारत यानी अपने घर आ गए हैं।
ये तीनों पिछले साल दिसंबर में एक एजेंट के ज़रिए रूस गए थे, जिसने उन्हें 70,000 रुपये के वेतन पर सुरक्षा गार्ड की नौकरी दिलाने का वादा किया था। जैसे ही वे रूस पहुंचे तब एहसास हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए सैयद इलियास हुसैनी ने कहा कि 70 से ज़्यादा भारतीय अभी भी युद्ध प्रभावित इलाकों में फंसे हुए हैं और रूसी सेना के लिए काम कर रहे हैं।
24 साल के हुसैनी ने कहा, "मैंने अपने दोस्तों को अपनी आंखों के सामने मरते देखा। मैं हर पल अपनी जान के डर में जीता था और कभी नहीं सोचा था कि मैं भारत लौट पाऊंगा।" हुसैनी ने कहा कि सुरक्षा गार्ड की नौकरी के लिए हर माह 70,000 रुपये देने का वादा किया गया था, लेकिन नौ महीने में सिर्फ 80,000 रुपये ही मिले। हुसैनी ने पैसे नहीं मांगे क्योंकि पैसों से ज्यादा उसे अपनी जान प्यारी थी।
तीनों ने बताई खौफनाक दास्तां
19 दिसंबर 2023 को मैं मॉस्को पहुंचा। हमें रूसी भाषा में एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया। इसके बाद उन्हें मॉस्को से 400 किलोमीटर दूर ले जाया गया, जहां उनके पासपोर्ट और दूसरे दस्तावेज छीन लिए गए और उन्हें रूसी सेना की वर्दी दे दी गई। उन्होंने बताया कि हमें एक विमान में बिठाया गया और यूक्रेन की सीमा पर उतारा गया। हमें एक महीने तक प्रशिक्षण दिया गया, जिसके दौरान हमारे मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए। हमें ग्रेनेड, स्नाइपर और शॉर्ट-रेंज शूटिंग जैसे हथियारों का इस्तेमाल करना सिखाया गया। प्रशिक्षण के बाद तीनों को फरवरी में युद्ध क्षेत्र में भेजा गया, जहां उन्होंने प्रतिदिन 14 घंटे से अधिक काम किया। हम जंगलों में रहते थे। हमें खाइयाँ खोदने और बंकर बनाने के लिए छोड़ दिया गया था। हमें वहां हमारे मोबाइल फ़ोन मिले और मैंने अपने पिता और दूतावास को फ़ोन करके उनसे मदद की गुहार लगाई।
युद्ध में जाने को किया गया मजबूर
हुसैनी ने बातचीत में कहा कि उन्हें लगा था कि जिस दिन गुजरात के सूरत के हेमिल मंगुकिया की ड्रोन हमले में मौत हो गई थी, उस दिन उनके जीवित बचने की संभावना कम हो गई थी। वह मेरा दोस्त और रूममेट था। मैं वहां खाई खोद रहा था और वह जमीन पर खड़ा था जब ड्रोन ने उसे मार डाला। यही वह क्षण था जब मुझे लगा कि मैं वहीं मर जाऊंगा। जब हमने युद्ध में जाने से इनकार किया तब हमें मजबूर किया गया था।
पीएम मोदी ने बदली किस्मत
पीएम मोदी की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात के बाद कर्नाटक के तीन लोगों की किस्मत बदल गई। हुसैनी ने बताया कि पीएम मोदी की यात्रा के एक दिन बाद उनके कमांडिंग ऑफिसर को एक कॉल आया कि सभी भारतीयों को सेवा से मुक्त कर दिया जाना चाहिए और उन्हें मुख्यालय वापस भेज दिया जाना चाहिए। हुसैनी ने कहा, "इसके बाद हमें मॉस्को भेजा गया और फिर हम दिल्ली के लिए उड़ान भर गए। मैं आज भी यह सोचकर सिहर उठता हूं कि मैं कैसे बच गया।"